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लोने सिंह की अगुवाई में लड़ी आजादी की पहली लड़ाई
राजनरायन मिश्र हंसते-हंसते झूल गए फांसी के फंदे पर
संसारपुर के रंपा तेली ने सीने पर खाई गोली
लखीमपुर खीरी। खीरी जिले ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक आजादी के लिए कड़ा संघर्ष किया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मितौली के राजा लोने सिंह ने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। धौरहरा के जांगड़ा राजा इंद्र विक्रम सिंह ने देश की आजादी के लिए अपनी जान दी। खिलाफत आंदोलन के दौरान नसीरुद्दीन मौजी और राजनरायन की शहादत को पूरा देश याद करता है। वहीं कुछ ऐसे भी शहीद हैं जिन्हें पूरी तरह भुला दिया गया।
सन 1856 के फरवरी महीने मेें अवध की नवाबी समाप्त कर दी गई। उसका पूरा इलाका कंपनी सरकार में मिला लिया गया। मोहम्मदी को जिला मुख्यालय बनाया गया। जेम्स थामसन को मोहम्मदी का पहला जिलाधीश नियुक्त किया गया। इस बदलाव के कारण जिले के सभी जमींदारों ने स्वतंत्र होने के लिए एकजुट होकर संघर्ष की तैयारी शुरू कर दी।
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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में राजा लोने सिंह ने दी कुर्बानी
जिले में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अगुवाई राजा लोने सिंह ने की। उन्होंने अंग्रेजों से लड़ाई जारी रखी। अक्तूबर 1858 में अंग्रेजी सेना ने मितौली पर हमला कर दिया। राजा लोने सिंह ने अपने मुट्ठी भर सैनिकों के साथ अंग्रेजों से लोहा लिया। आखिर आठ नवंबर को अंग्रेजों ने मितौली पर कब्जा कर लिया। उनके राज्य को अंग्रेजों ने अपने चाटुकारों में बांट दिया।
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खूब लड़ा धौरहरा का जांगड़ा राजा
राजा लोने सिंह की तरह धौरहरा के जांगड़ा राजा इंद्र विक्रम सिंह भी बड़ी बहादुरी के साथ अंग्रेजों से लड़े, लेकिन आखिर उन्हें भी पराजय का मुंह देखना पड़ा। राजा इंद्र विक्रम सिंह और उनके भाई सुरेंद्र विक्रम सिंह के साथ बंदी बना लिए गए। उनकी रियासत को जब्त कर अंग्रेज कप्तान जान हिरसी को पुरस्कार स्वरूप दे दिया गया। राजा इंद्र विक्रम सिंह की जेल में ही मौत हो गई।
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अंग्रेज कलेक्टर को काटकर फांसी पर चढ़ गए मौजी
खिलाफत आंदोलन से प्रेरित होकर 26 अगस्त 1920 को नसीरुद्दीन उर्फ मौजी ने अपने दो साथियों बशीर और माशूक अली के साथ मिलकर अंग्रेज कलेक्टर विलोबी की तलवार से काटकर हत्या कर दी। तीनों भाई पकड़े गए और उनपर मुकदमा चला। आखिरकार उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। नसीरुद्दीन मौजी भवन उनकी इस कुर्बानी की यादगार है।
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राजनरायन ने दी स्वतंत्रता के यज्ञ में अंतिम आहुति
भीखमपुर के युवा राजनरायन मिश्र आजादी की लड़ाई के लिए महमूदाबाद रियासत के जिलेदार से बंदूक मांगने गए थे। जिलेदार ने उनपर बंदूक तान दी। इस पर राजनरायन ने उसे गोली मार दी और फरार हो गए। लंबे समय तक फरार रहने के बाद पकड़े गए। उन पर मुकदमा चला और 27 जून 1944 को उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। 24 साल की भरी जवानी में 9 दिसंबर 1944 को लखनऊ जेल में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। शहादत के जोश में उनका वजन नौ पौंड बढ़ गया था। राजनरायन मिश्र की शहादत स्वतंत्रता संग्राम के यज्ञ में अंतिम आहुति थी।
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वह वीर शहीद जिन्हें भुला दिया गया
जिले के संसारपुर निवासी रंपा तेली भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुकुहापुर गोली कांड में वीरगति को प्राप्त हुए। करौहुंआ गांव निवासी देवतादीन को असहयोग आंदोलन के दौरान सन 1921 में दो साल की कैद और 100 रुपये जुर्माने की सजा मिली। सजा काटने के दौरान जेल में ही वह शहीद हो गए। ग्राम भैठिया के नत्थूलाल सत्याग्रह आंदोलन के दौरान 1940 में एक साल की कैद की सजा काटते समय जेल में ही शहीद हुए। इन सेनानियों का जिले में स्मारक होना तो दूर, उन्हें आजादी की रोशनी में लोगों ने भुला दिया है।