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भाजपा-सपा, कांग्रेस और पीस पार्टी में घमासान
समर्थन देने में सपा के छूट रहे पसीने
सिटी रिपोर्टर
लखीमपुर खीरी। कांग्रेस, भाजपा और पीस पार्टी के उम्मीदवार घोषित होने के बाद इन पार्टियों में बगावत के स्वर फूटने लगे हैं। भाजपा की अधिकृत प्रत्याशी नीरू पुरी के मुकाबले जहां पार्टी की पूर्व अध्यक्ष डॉ. इरा श्रीवास्तव सामने आ डटी हैं वहीं कांग्रेस में तृप्ति अवस्थी के सामने कांग्रेस के ही डॉ. डीएन वर्मा ने ताल ठोंक दी है। उधर पीस पार्टी में रमेश अग्रवाल का नाम फाइनल होने के बाद भी कुछ लोग अभी तक टिकट के लिए जोड़ तोड़ में लगे हुए हैं।
भाजपा के टिकट को पार्टी की पूर्व अध्यक्ष डॉ. इरा श्रीवास्तव शुरुआत से ही प्रबल दावेदार मानी जा रही थीं। वह पिछले चार महीने से चुनाव की तैयारियों में जुटी थीं। ऐन मौके पर उनकी जगह नीरू पुरी को टिकट दे दिया गया। फिर भी डॉ. इरा श्रीवास्तव ने चुनाव मैदान में बने रहने का फैसला किया है। वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना भाग्य अजमाने जा रही हैं।
कांग्रेस ने लखीमपुर नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए महिला कांग्रेस अध्यक्ष तृप्ति अवस्थी को अपना उम्मीदवार बनाया है। यहां पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष व पूर्व सभासद डॉ. डीएन वर्मा भी पार्टी टिकट के प्रबल दावेदार थे। तृप्ति अवस्थी को टिकट मिलने से नाराज डीएन वर्मा ने खुद भी अध्यक्ष पद के लिए ताल ठोंक दी है।
उधर पीस पार्टी ने रमेश अग्रवाल को अपना अधिकृत उम्मीदवार बनाया है। पूर्व जिला पंचायत राज अधिकारी देवेंद्र नाथ मिश्रा की पत्नी चित्रा मिश्रा ने अपना दावा वापस ले लिया लेकिन कुछ लोग अभी तक पीस पार्टी के टिकट के लिए जोड़ तोड़ में लगे हुए हैं। इस तरह भाजपा, कांग्रेस और पीस पार्टी तीनों में बगावत के बिगुल बज चुका है। यह बगावत अधिकृत उम्मीदवारों के लिए मुसीबत बनती जा रही है।
समाजवादी पार्टी का समर्थन पाने के लिए जोड़ तोड़ का सिलसिला और तेज हो गया है। सैधरी की पूर्व प्रधान व समाजवादी पार्टी की वरिष्ठ नेता दिव्या सिंह ने एक बार फिर लखीमपुर नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया है। उधर हाल ही में कांग्रेस छोड़ सपा में आए अजय गुप्ता भी चुनाव मैदान में डटे हैं। पार्टी समर्थन के अन्य दावेदारों में रूपम तिवारी, देवांशु पांडे उर्फ चंकी तथा मयंक बाथम के नाम शामिल हैं।
सपा ने अभी तक किसी भी दावेदार को समर्थन देने के बारे में कोई फैसला नहीं किया है। इसके चलते दावेदारों में उहापोह की स्थिति बनी हुई है। सत्तारूढ़ दल होने के नाते पार्टी के समर्थन के लिए दावेदारों की संख्या काफी ज्यादा है। बगावत के डर से सपा को समर्थन देने का निर्णय लेने में कठिनाई आ रही है। सपा को डर है कि यदि पार्टी ने किसी एक को समर्थन दिया तो पार्टी में बगावत हो सकती है।
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उधर सपा जिलाध्यक्ष का कहना है कि किसी के नाम पर आम सहमति बनने पर ही उसे समर्थन देने का फैसला किया जाएगा। अन्यथा पार्टी किसी भी उम्मीदवार को अपना समर्थन नहीं देगी। फिलहाल सहमति बनाने का प्रयास किया जा रहा है। निकाय चुनाव में सभी पार्टियों को बगावत का डर सता रहा है। इसके चलते उम्मीदवार और राजनीतिक पार्टियां दोनों ही बेहद परेशान हैं। इस बगावत की स्थिति से उबरने की राह निकालने की कवायद में जुटे हैं।
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