आढ़त, आटा मिल ही नहीं, क्रय केंद्रों पर भी खुलेआम शोषण
लखीमपुर खीरी। ब्लाक पलिया के ग्राम मकनपुर निवासी किसान और पूर्व प्रधान विक्की कपूर हो या फिर ब्लाक पसगवां के ग्राम सेमराघाट निवासी एवं माले नेता क्रांति कुमार सिंह। अक्सर किसान हित की लड़ाई में आगे दिखने वाले इन दोनों लोगों को खुद अपना सैकड़ों क्विंटल गेहूं बेचने को लाले पड़े हैं। सरकारी क्रय केंद्रों पर कोई भी इनका गेहूं निर्धारित मूल्य पर खरीदने को तैयार नहीं है। माले नेता क्रांति कुमार सिंह की माने तो पूरे जिले में चाहे वो सरकारी क्रय केंद्र हो या फिर व्यापारी किसानों का गेहूं 1050 से लेकर 1100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है और प्रशासनिक मशीनरी मूक दर्शक बनी हुई है।
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आटा मिल, क्रय केंद्रों में नहीं कोई अंतर
किसानों की माने तो चाहे वह आढ़त पर अपना गेहूं बेचे या आटा मिल अथवा सरकारी क्रय केंद्रों पर तीनों ही स्थानों पर शोषण कुछ इस तरह किया जा रहा है कि किसान को मिले दाम में तीनों स्थानों पर कोई अंतर नजर नहीं आ रहा। आरोप है कि सरकारी क्रय केंद्रों पर भी किसानों का गेहूं क्रय केंद्र प्रभारी कहीं घटतौली कर तो कहीं गर्दे और कूड़े के नाम पर उनसे अधिक गेहूं लेकर शोषण कर रहे हैं। यही नहीं अधिकतर स्थानों पर किसानों का गेहूं 1100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदा जा रहा है। आढ़ती और आटा मिल मालिक भी कुछ इसी तरह किसानों का शोषण कर रहे हैं। कुल मिला कर किसानों को यह फर्क करना मुश्किल है कि कहां उनका शोषण अधिक हो रहा है और कहां कम।
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बोरा ही नहीं भुगतान का भी टोटा
जिले में गेहूं खरीद शुरू होने के साथ ही क्रय केंद्रों पर वारदाने के अभाव की समस्या खड़ी हो गई थी, जो अभी भी जारी है। बोरों की किल्लत के साथ अधिकतर क्रय एजेंसियों के पास धन का टोटा भी सामने आ चुका है। इसका खामियाजा किसानों को ही भुगतना पड़ रहा है। ब्लाक पसगवां निवासी किसान सुखवंत सिंह की माने तो उन्होंने करीब 20 दिन पहले अपना गेहूं मैगलगंज मंडी स्थित पीसीएफ के क्रय केंद्र पर बेचा था, लेकिन भुगतान अब तक नहीं मिला। कमोवेश यही स्थिति जिले के सभी सरकारी क्रय केंद्रों पर गेहूं बेचने वाले किसानों की है। कहीं भी किसानों को 15 दिन से पहले भुगतान नहीं मिल पा रहा है।