पलियाकलां। पीलीभीत के हरिपुर जंगल में बाघ कहां से आए? बाघों की मौत के बाद अब एक और नई बहस छिड़ गई। जानकारों के मुताबिक हरिपुर जंगल की परिस्थितियों बाघों के अनुकूल नहीं हैं, जिसके चलते वहां बाघों के रहने पर विराम लग जाता है। यह बात दीगर है कि किशनपुर के बाघ यदा कदा हरिपुर के जंगलों की ओर चले जाते हैं।
इन बातों ने पीलीभीत हरिपुर के जंगल में एक-एक कर मरे पाए गए बाघों के निवास से दुधवा टाइगर रिजर्व के किशनपुर पर फिर से उंगली उठा दी है। जानकारों का अनुमान है कि इन दोनों बाघों को किशनपुर की हरिपुर सीमाओं से लगे इलाके में शिकारियों नेे जहर दिया हो और जहर खाने के बाद बाघ तड़पन में हरिपुर की ओर भाग निकले होंगे, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया। जानकारों के इन अनुमानों और दलील को देखा जाए तो दुधवा टाइगर रिजर्व की मुश्किलें और भी बढ़ सकती हैं। इन पर अगर तकनीकि नजर डाली जाए तो अनुमानों में काफी दम दिखता है।
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एक दिन में 20 किलो मीटर तक चल सकता है बाघ
जानकारों की मानें तो बाघ एक दिन में करीब 20 से 25 किलोमीटर चल सकता है और किशनपुर से हरिपुर की दूरी भी करीब इतनी ही बताई जाती है।
वर्जन
हरिपुर जंगल में बाघों का वास ही नहीं है। वहां की परिस्थितियां भिन्न हैं और जंगल में लोगों की आवाजाही बनी रहती है। कभी कोई जलौनी लेने जाता है तो कई यहां के रास्तों से गुजरता है। इन परिस्थितियों में बाघ वहां कहां ठहरेंगे। किशनपुर के ही बाघ वहां आया जाया करते हैं। हरिपुर में मारे गए बाघ किशनपुर के हो सकते हैं, ऐसा अनुमान है।
डा. वीपी सिंह, सदस्य राज्य वन्य जीव सलाहकार परिषद