पुराने तालाबों को ही बना दिया गया आदर्श तालाब
जंगली जानवर पानी के लिए आ रहे आबादी में
लखीमपुर खीरी। सूरज धरती पर आग बरसा रहा है। कड़ी धूप और भीषण गर्मी से तालाब और पोखर ही नहीं सूखे, नदियां भी सूख चुकी हैं। हालात यह हैं कि पशु-पक्षियों के लिए पानी का संकट पैदा हो गया है। प्यास से बेहाल पशु-पक्षी दम तोड़ रहे हैं। डीएम के आदेश के बावजूद अभी तक किसी भी तालाब में पानी नहीं भरवाया गया है। और तो और गांवों में मनरेगा के तहत खोदे गए आदर्श तालाब भी पानी के बिन प्यासे नजर आ रहे हैं।
बैसाख माह की गर्मी पशु-पक्षियों पर भारी पड़ रही है। उन्हें पीने के लिए पानी तक नही मिल रहा है। गर्मी के कारण तमाम तालाब और पोखर सूख चुके हैं। यहां तक कि छोटी नदियां भी प्यासी हैं। उनका पानी भी सूख चुका है। अब गांवों में पशु-पक्षियों के लिए प्याऊ बनाने की परंपरा भी खत्म हो गई है। हालात यह हैं कि पशु पानी के अभाव में मौत के मुंह में समा रहे हैं। पक्षियों तक को पानी मिलना मुश्किल हो रहा है।
हालात यह हैं कि जंगल के तालाब भी सूख गए हैं। और तो और दुधवा नेशनल पार्क की लाइफ लाइन कही जाने वाली सुहेली नदी भी सूख चुकी है। हालात यह हैं कि जंगली जानवरों को पानी की तलाश में जंगल से बाहर आबादी में आना पड़ रहा है। इससे उनका जीवन खतरे में पड़ रहा है।
राजस्व रिकार्ड के मुताबिक 15 साल पहले तक जिले में करीब 4600 तालाब थे। इनकी संख्या घटकर अब 2400 के आसपास रह गई है। लोगों ने तालाब पाट कर घर बना लिए। जो तालाब बचे भी हैं उनपर भूमाफिया की नजर है। अगर अतिक्रमण की यही रफ्तार रही तो आने वाले कुछ वर्षों में यह तालाब भी गांवों के नक्शे से गायब हो जाएंगे। इनके साथ ही गायब हो जाएगी गांवों की हरियाली भी।
गांवों से गायब होते तालाबों को बचाने और बरसाती पानी को संचित कर वाटर रिचार्ज सिस्टम को बनाए रखने के लिए शासन ने प्रत्येक ग्राम पंचायत में आदर्श तालाब योजना शुरू की थी। मनरेगा के तहत तालाब खुदवाने के पीछे मकसद यह था कि मनरेगा मजदूरों को काम मिले और पशु-पक्षियों को पूरे साल पानी भी उपलब्ध रहे। हुआ यह कि गांवों में जो तालाब बचे थे उन्हीं तालाबों को पंचायतों ने गहरा करा कर आदर्श तालाब का रूप दे दिया। नए तालाब बहुत कम खोदे गए।
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मकसद हल नहीं हुआ आदर्श तालाबों से
जिले की 995 ग्राम पंचायतों में अब तक कुल 1164 आदर्श तालाब बनाए जा चुके हैं। 286 तालाब अभी निर्माणाधीन हैं। यह आदर्श तालाब न तो प्यासे जानवरों को पानी देने में कामयाब हुए न ही वाटर रिचार्ज सिस्टम को ही बनाए रख सके। तालाबों के किनारे ऊंचे कर दिए जाने से इन तालाबों में बरसाती पानी इकट्ठा नही हो पाता। इससे न तो जानवरों को साल भर पानी मिल पाता है न ही वाटर रिचार्ज होता है। इन तालाबों को खुद की प्यास बुझाना मुश्किल है, पशुओं की क्या प्यास बुझाएंगे।
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ग्रामीणों के लिए पर्यटन स्थल भी नही बन सके
आदर्श तालाब के चारों और रेलिंग बनाकर उसमे खूबसूरत फूलों के पौधे लगाकर ग्रामीणों के लिए मनोरम स्थल का निर्माण करना भी था, लेकिन बहुत कम ही ऐसे तालाब है जिन्हें मानक के अनुसार विकसित किया गया है। इन तालाबों में केवल बरसात के मौसम में ही पानी दिखाई देता है। बाकी दिन सूखे ही रहते हैं। ऐसे में तालाबों के इर्द-गिर्द खूबसूरत वातावरण मिल पाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
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तालाब भरवाने के निर्देश दिए जा चुके हैं
भीषण गर्मी के चलते तालाब और नदियों के सूखने की सूचना मिली है। सभी पंचायतों को सूखे तालाब भरवाने के निर्देश दिए जा चुके हैं। कुछ गांवों में तालाब भरवा दिए गए है। जल्दी ही और तालाबों में पानी भरवा दिया जाएगा ताकि पशु पक्षियों के लिए पानी की समस्या न हो।
-अभिषेक प्रकाश, डीएम खीरी