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वन, वन्यजीव ही नहीं, प्राचीन धरोहर भी देख सकेंगे पर्यटक

Lakhimpur Updated Wed, 16 May 2012 12:00 PM IST
दुधवा ही नहीं पर्यटकों के लिए जिले में और भी बहुत कुछ

धार्मिक, ऐतिहासिक लिहाज से भी महत्वपूर्ण है खीरी
छोटी काशी के साथ खैरीगढ़ किला भी लुभाएगा पर्यटकों
लखीमपुर खीरी। प्रदेश के इकलौते दुधवा नेशनल पार्क घूमने आए पर्यटक जिले के विभिन्न धार्मिक व ऐतिहासिक स्थलों को भी देख सकेंगे। जिले को टूरिस्ट कॉरीडोर बनाने को मिली हरी झंडी के साथ ही यहां धार्मिक पर्यटन विकास की संभावनाएं भी काफी बढ़ गई हैं। जिले के गोला गोकर्णनाथ में जहां प्राचीन शिव मंदिर व कसबा ओयल में मंडूक तंत्र पर आधारित प्राचीन शिव मंदिर है वहीं सिंगाही क्षेत्र में बौद्ध कालीन कलाकृति के श्रेष्ठ प्रतीक खैरीगढ़ किला व औरंगाबाद क्षेत्र में औरंगजेब के समय का निर्मित किला व मस्जिद भी।
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हिरणों की सर्वाधिक प्रजातियां हैं यहां
उत्तराखंड के अलग राज्य हो जाने के बाद से ‘दुधवा’ प्रदेश का इकलौता पार्क रह गया है। इस जिले के जंगल कभी अवध साम्राज्य में सबसे कीमती जंगल समझा जाता था। यही वजह थी कि देश के दूरस्थ राज्यों के राजा अवध नवाबों से लकड़ी पाने के लिए संपर्क करते रहते थे। दुधवा, अपने टाइगर प्रोजेक्ट तथा गैंडा पुनर्वास योजना के लिए तो विख्यात है ही, साथ ही इसी पार्क में विश्व के सर्वाधिक प्रजाति के हिरण पाए जाते हैं। भारत-नेपाल सीमा पर बहने वाली ‘मोहाना नदी’ कभी नेपाल और ब्रिटिश राज्य की सीमा मानी गई थी।

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छोटी काशी:
प्राचीन शिव मंदिर स्थापित होने के कारण गोलागोकर्णनाथ छोटी काशी के नाम से विख्यात है। यहां ‘शिवलिंग’ मंदिर में करीब 1.2 मीटर गहराई में स्थापित है। मंदिर प्रांगण में अनेक बौध प्रतिमाएं-टैराकोटा तथा कुछ मूर्तियां भी खनन में प्राप्त हो चुकी हैं। यह मंदिर देश के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में शुमार है।
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मेढ़क मंदिर:
सीतापुर रोड स्थित कस्बा ओयल में मेढ़क मंदिर स्थापित है। ‘ओयल’ कभी चाहमानों (चौहानों) की राजधानी थी। इतिहास के जानकारों के मुताबिक उन्हीं के वंशज बख्त सिंह व राजा अनिरुद्ध सिंह ने यहां मंडूक तंत्र पर आधारित प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण कराया, जो ‘मेढ़क मंदिर’ के नाम से विख्यात है। मंदिर की दीवालों पर शव साधना में रत यक्षणियों की मूर्तियां मंदिर को तांत्रिकों का केंद्र स्थल सिद्ध करती हैं।
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देवकली मंदिर:
कभी प्राचीन नगरी रही ‘देवकली’ आज एक गांव है। यहां कई प्रसिद्ध सूर्यकुंड अभी भी अस्तित्व में हैं। बताया जाता है कि राजा जनमेजय ने नागयज्ञ यहीं किया था। यहां मौजूद ताल की मिट्टी अभी भी दूर-दूर से आए लोग नाग पंचमी को ले जाते हैं। लोगों का मानना है कि इस मिट्टी को घर के आसपास डाल देने से घर में सांप नहीं आते हैं।
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खैरीगढ़ किला:
सिंगाही क्षेत्र में 1379 ई. में सुल्तान फिरोज तुगलक के समय में यह किला निर्मित हुआ था। देश के इस चर्चित किले से सम्राट समुद्र गुप्त की एक मुद्रा तथा कन्नौज के राजा भोजदेव की अनेक मुद्राएं प्राप्त हुई थीं जो लखनऊ के म्यूजियम में सुरक्षित हैं। मुगल सम्राट अकबर के समय में यह क्षेत्र खैराबाद सरकार के अंतर्गत था। अबुल फजल के ‘आइने अकबरी’ के मुताबिक इस किले में 300 घुड़सवार तथा 1500 सैनिक प्रत्येक समय सजग रहते थे। इस किले पर हर साल मेला लगता है।
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लिलौटीनाथ मंदिर:
जिला मुख्यालय से नौ किमी दूर स्थिति जंगल के बीच स्थिति इस मंदिर की भी खासी विशेषता है। यहां महाभारत काल के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा ने शिव लिंग स्थापित किया था। मान्यता है कि सुबह मंदिर का पट खोलने पर शिव लिंग पूजा किया हुआ मिलता है।
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गिद्ध-गिद्धिन का भी है मंदिर
जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर शारदा नगर रोड पर कोठियां गांव में यह मंदिर है। मंदिर के भीतर देवी देवताओं की मूर्ति के बजाय गिद्ध-गिद्धिन की मूर्ति स्थापित हैं। मान्यता है कि करीब 50 साल पहले इस स्थान पर एक गिद्ध की मौत हो गई थी, जिसके वियोग में उसके मादा जोड़े गिद्धिन ने भी अन्न जल त्याग अपने प्राण भी त्याग दिए। उस दिन बसंत पंचमी थी। सो हर साल बसंत पंचमी से एक माह तक यहां मेला लगता है।
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कई राजाओं की स्टेट भी रही है यहां
राजशाही के दौैरान यहां अनेक भव्य इमारतों का निर्माण हुआ जो वास्तुकला के दृष्टिकोण से अनूठे हैं। इनमें सबसे प्राचीन खैरीगढ़ स्टेट की राजधानी सिंगाही में बना राजभवन, काली मंदिर तथा सरजू नदी किनारे बना भूल भुलैया शिव मंदिर दर्शनीय है। इनके अलावा राजा ओयल, महेवा स्टेट और कोटवारा स्टेट के भवन भी पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जा सकते हैं।
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