सोरों। तीर्थनगरी के गंगा घाटों हरिपदी, लहरा व कछला पर पालीथिन व प्लास्टिक की वस्तुएं प्रदूषण का मुख्य कारक बनी हुई है। तमाम अभियानों के बावजूद गंगाजल से प्रदूषण दूर नहीं हो पा रहा।
तमाम समाजसेवी संस्थाओं व प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा द्वारा गंगा को निर्मल बनाने के लिए देशव्यापी आंदोलन चलाए गए। जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने अक्टूबर 2010 में आकर जहां गंगाभक्तों में गंगा की पवित्रता बनाए रखने को चेतना जगाने का कार्यक्रम चलाया था। वहीं, भाजपा नेता उमा भारती ने तीर्थनगरी में दो वर्ष के अंतराल पर दो बार आकर मां गंगा की आरती उतारकर इसकी पवित्रता को अक्षुण्ण बनाए रखने का संकल्प व्यक्त किया था। लेकिन गंगा के पवित्र जल में प्रदूषण बेल की तरह बढ़ता ही चला गया। निर्मल गंगा-अविरल गंगा अभियान के प्रदेश संयोजक डा. राधाकृष्ण दीक्षित कहते हैं स्नान पर्वों पर हजारों की संख्या में लोग गंगा स्नान को आते हैं और तमाम निष्प्रयोज्य चीजें गंगा में बहा देते हैं। तीर्थपुरोहित भारत किशोर दुबे, धनकुमार शर्मा व प्रदीप भारद्वाज का कहना है कि शास्त्रों में गंगा को पतित पावनी कहा गया है। लेकिन गंगोत्री से गंगासागर तक न जाने कितनी औद्योगिक इकाईयों का विषैला कचरा इसमें बहा दिया जाता है। ज्योतिर्विद सुधांशु निर्भय ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गंगा घाटों पर पालीथिन के प्रयोग पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके बावजूद गंगा घाटों पर व्यवसायिक लोग निरंतर पालीथिन प्रयोग कर रहे हैं। जिला प्रशासन उच्चतम न्यायालय के आदेश का अनुपालन कराने में विफल साबित हो रहा है। गंगाभक्त समिति के अध्यक्ष सतीश भारद्वाज का कहना है गंगा अवतरण दिवस पर मां गंगा की आरती कर और गंगा में दूध चढ़ाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। लेकिन गंगा में प्रदूषण न फैले इसके प्रति कोई जागरूक नहीं है।
सोरों। तीर्थनगरी के गंगा घाटों हरिपदी, लहरा व कछला पर पालीथिन व प्लास्टिक की वस्तुएं प्रदूषण का मुख्य कारक बनी हुई है। तमाम अभियानों के बावजूद गंगाजल से प्रदूषण दूर नहीं हो पा रहा।
तमाम समाजसेवी संस्थाओं व प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा द्वारा गंगा को निर्मल बनाने के लिए देशव्यापी आंदोलन चलाए गए। जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने अक्टूबर 2010 में आकर जहां गंगाभक्तों में गंगा की पवित्रता बनाए रखने को चेतना जगाने का कार्यक्रम चलाया था। वहीं, भाजपा नेता उमा भारती ने तीर्थनगरी में दो वर्ष के अंतराल पर दो बार आकर मां गंगा की आरती उतारकर इसकी पवित्रता को अक्षुण्ण बनाए रखने का संकल्प व्यक्त किया था। लेकिन गंगा के पवित्र जल में प्रदूषण बेल की तरह बढ़ता ही चला गया। निर्मल गंगा-अविरल गंगा अभियान के प्रदेश संयोजक डा. राधाकृष्ण दीक्षित कहते हैं स्नान पर्वों पर हजारों की संख्या में लोग गंगा स्नान को आते हैं और तमाम निष्प्रयोज्य चीजें गंगा में बहा देते हैं। तीर्थपुरोहित भारत किशोर दुबे, धनकुमार शर्मा व प्रदीप भारद्वाज का कहना है कि शास्त्रों में गंगा को पतित पावनी कहा गया है। लेकिन गंगोत्री से गंगासागर तक न जाने कितनी औद्योगिक इकाईयों का विषैला कचरा इसमें बहा दिया जाता है। ज्योतिर्विद सुधांशु निर्भय ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गंगा घाटों पर पालीथिन के प्रयोग पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके बावजूद गंगा घाटों पर व्यवसायिक लोग निरंतर पालीथिन प्रयोग कर रहे हैं। जिला प्रशासन उच्चतम न्यायालय के आदेश का अनुपालन कराने में विफल साबित हो रहा है। गंगाभक्त समिति के अध्यक्ष सतीश भारद्वाज का कहना है गंगा अवतरण दिवस पर मां गंगा की आरती कर और गंगा में दूध चढ़ाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। लेकिन गंगा में प्रदूषण न फैले इसके प्रति कोई जागरूक नहीं है।