कानपुर। केसीए की लीग में ऑब्जर्वर तीसरी आंख के रूप में लगाए गए थे। पर इसका फायदा न तो लीग को हुआ और न ही संघ को। 12 मई के बाद इन्हें अचानक हटा दिया गया। केसीए के सूत्रों की माने तो ऑब्जर्वर अपनी भूमिका का सही निर्वहन नहीं कर सकें। इस वजह से यह फैसला लिया गया। प्रत्येक मैच के लिए ऑब्जर्वर को 300 रुपये भुगतान किया गया। इस तरह करीब 52 हजार रुपये बेकार चले गए।
कानपुर क्रिकेट एसोसिएशन (केसीए) की वार्षिक आमसभा 18 सितंबर 2011 को हुई थी। जिसमें तय हुआ था कि लीग मैचों में ऑब्जर्वर लगाए जाएंगे। तय हुआ कि 55 वर्ष से अधिक उम्र के अंपायरों को यह भूमिका दी जाएगी। इसकी संस्तुति चेयरमैन संजय कपूर ने की थी। तय हुआ था कि ऑब्जर्वर मैच सकुशल कराने के साथ अपनी रिपोर्ट केसीए को प्रस्तुत करेंगे। उनके सुझावों पर भी विचार किया जाना था। पर इसका फायदा लीग को नहीं हुआ। कई मैचों में विवाद की स्थिति होने पर यह हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। एक्जीक्यूटिव कमेटी ने 12 मई को ऑब्जर्वर व्यवस्था समाप्त कर दी। हालांकि केसीए के कर्ताधर्ता इसकी सही वजह नहीं बता रहे हैं। पर इसके पीछे वजह ऑब्जर्वर को अपनी भूमिका की सही जानकारी नहीं होना है।
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छह आब्जर्वर हैं
एसएन सिंह, अशोक मिश्रा, रवींद्र राय, सरताज आलम, प्रकाश मिश्रा और गिरीश कपूर। इसमें अशोक मिश्रा और रवींद्र कपूर का अंपायरिंग से कोई लेना देना नहीं है। दोनों कार्यकारिणी सदस्य है।
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केस एक-
पिछले दिनों रोवर्स मैदान में वीएससीए के मैच में अंपायर के देर से पहुंचने पर ऑब्जर्वर ने उसे अंपायरिंग से रोक दिया था। हालांकि बाद में सचिव के हस्तक्षेप के बाद दो ओवर बाद अंपायरिंग करने दी गई। इससे साफ पता चलता है कि ऑब्जर्वर ने मैच में अपनी भूमिका का सही निर्वहन नहीं किया।
केस दो-
एचबीटीआई में गीतांजलि क्लब के प्रकरण में एक खिलाड़ी को गलत तरीके से खिलाया गया था। ऑब्जर्वर के बजाए गीताजंलि क्लब ने ही कार्रवाई कर उस खिलाड़ी और अपने कप्तान पर कार्रवाई की। इसमें ऑब्जर्वर ने अपनी भूमिका का सही निर्वहन नहीं किया।
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जिम्मेदार बोले
आब्जर्वर को एक प्रयोग के तौर पर लगाया गया था। जिन्होंने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। जिसपर विचार किया जाना है। रही बात अब मैचों में ड्यूटी नहीं लगाने की तो यह एक्जीक्यूटिव कमेटी ने तय किया है।
एसएन सिंह सचिव केसीए