कानपुर। बारह साल की इस मासूम बच्ची के साथ हुआ क्या है। पांच दिन से वह किस दर्द से तड़प रही है? पुलिस और प्रशासन के अफसरों को उसकी कराहटें क्यों नहीं सुनाई पड़ रहीं? बेजार पिता आरोप लगा रहा है तो पुलिस अपना दामन बचाने के लिए कहानियां गढ़ रही है। बच्ची की हालत देखकर डॉक्टर कहते हैं रेप केस है। सीधे भर्ती नहीं कर सकते। पुलिस के जरिए ही लड़की को भर्ती करेंगे। बच्ची के इलाज के लिए परेशान मां हर डॉक्टर को भगवान समझकर हाथ-पैर जोड़ रही है। लेकिन इस परिवार की सुनने वाला कोई नहीं। बच्ची के दर्द और तड़प की सच्चाई क्या है? कोई यह पता करने की कोशिश भी नहीं कर रहा।
बेटियों वाले एक गरीब परिवार के साथ ये कैसा अजीबोगरीब खेल हो रहा है। थानेदार से डीआईजी और आईजी तक, किसी को मासूम की तकलीफों से वास्ता नहीं है। पिता कहते हैं बेटी के साथ वहशियाना खेल खेला गया है। पुलिस कहती है बकवास। जो किया पिता ने ही किया। लेकिन सच क्या है? यह कोई नहीं जानना चाहता। इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका शुरू से ही लीपापोती वाली रही। पहले बच्ची को घंटों थाना में बैठाए रखा। बाद में उसे उर्सला में भर्ती कराया और जबरन डिस्चार्ज करा दिया। इतना ही नहीं, अस्पताल में भर्ती और डिस्चार्ज से संबंधित कागजात भी पुलिस ले गई। बच्ची की हालत बिगड़ने पर परिजन उसे मंगलवार को हैलट लेकर आए। यहां घंटों बैठे रहे। पर्चा बनवाया पर डॉक्टरों ने रेप केस होने की बात कहकर उसे भर्ती करने से इंकार कर दिया। छह घंटे बच्ची जमीन पर पड़ी दर्द से तड़पती रही। वह जितना कराहती, परिजन उतने बार दौड़कर डॉक्टरों के हाथ-पैर जोड़ते। लेकिन डॉक्टर उसे भर्ती करके उपचार करने के बजाए कानूनी औपचारिकताओं का हवाला देते रहे। डॉक्टरों ने कहा लड़की को पुलिस ही भर्ती कराएगी। दोपहर करीब तीन बजे परिजन निराश होकर लौट गए। पिता ने कहा बहुत कोशिश कर ली। डॉक्टर जांच नहीं करेंगे तो पता कैसे लगेगा क्या हुआ? पुलिस सवाल नहीं करेगी तो असली बात कैसे सामने आएगी? उपचार नहीं होगा तो बच्ची ठीक कैसे होगी? वह कहते हैं, कौन करेगा मेरी बच्ची की मदद। आखिर उसकी खता क्या है? हैलट अस्पताल के ओपीडी में जमीन पर पड़ी इस लड़की की आखों में भी यही सवाल हैं।
सबसे पहले बच्ची के उपचार की व्यवस्था की जाएगी। क्या हुआ है? कैसे हुआ है? यह बाद में देखा जाएगा। मैं संबंधित पुलिस अफसरों को इस बाबत निर्देश दूंगा कि बच्ची को अस्पताल में भर्ती कराकर उपचार शुरू कराया जाए।
पियूष आनंद, आईजी जोन