रजा शास्त्री
कानपुर। बाल नेत्र रोगियों पर काम कर रही अमेरिका की विश्व स्तरीय संस्था ऑरबिस इंटरनेशनल इस बात पर चिंतित है कि भारत में कमजोर निगाह के बच्चों की संख्या पिछले दस वर्षों में बीस गुना बढ़ गई है। इसका बड़ा कारण बच्चों का कंप्यूटर और मोबाइल पर लगातार गेम खेलना पाया गया है। देश में मायोपिया नामक आखों की बीमारी के 1 करोड़ 42 लाख बच्चे हैं। इस बीमारी में उम्र बढ़ने के साथ ड्राय आई की शिकायत आती है, जो आंखों की रोशनी भी छीन सकती है। अमेरिकी संस्था ने इस बात पर और भी ज्यादा चिंता जताई है कि यह आंकड़ा अस्पतालों में आए मरीजों के रजिस्ट्रेशन के आधार पर है, जबकि हकीकत में रोगियों की संख्या कहीं अधिक है।
10 साल पहले मायोपिया केकुल रोगियों में 15 साल की उम्र तक केबच्चों की संख्या सिर्फ डेढ़ से दो फीसदी केबीच होती थी। लेकिन इसमें गुणात्मक वृद्धि हुई है। ऑरबिस इंटरनेशनल के फैकल्टी और खैराबाद नेत्र चिकित्सालय के निदेशक सीनियर आई सर्जन डॉ. मनीष महेंद्रा कहना है कि मायोपिक बालरोगियों की संख्या 20 से 22 गुना बढ़ी है। पहले यह जेनेटिक समस्या मानी जाती थी। लेकिन अब सामान्य नौनिहाल भी इसकी गिरफ्त में हैं।
डॉ. महेंद्रा ने बताया कि इस संबंध में अमेरिका में हुए कई अध्ययनों के अनुसार वीडियो गेम, मोबाइल गेम, टीवी की लत बच्चों की आंखों को कमजोर बनाती है। अभिभावक बच्चों को जांच के लिए आम तौर पर बहुत देर में अस्पताल लाते हैं। मायोपिया का प्रभाव बच्चे की पूरी शख्सियत पर पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि बालरोगियों को आगे चल कर ड्राई आई की समस्या का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसके साथ ही आंखों का टेंशन बढ़ना, आंसू की ग्रंथि का संक्रमण और नासूर, आंख केपरदे का अल्सर समेत कई दिक्कतें हो सकती हैं।
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ऐसे पहचानें रोगियों को
- मोबाइल पर निगाह गड़ाए रखें
- आंखें भारी-भारी दिखें
- टीवी नजदीक से देखने लगें
- आंखें खुजलाते रहें
- आंखें मिचमिचाएं
- सिर दर्द बताएं
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यह है ड्राई आई
- पलकें बहुत देर तक न झपकने से सूखापन आ जाता है। आंसू कम बनते हैं। इससे आंखों में करकराहट, सूखापन, खुजली, जलन, भारीपन, आंख की कमजोरी आदि दिक्कत हो जाती है। चिकित्सकों के अनुसार, सामान्य तौर पर व्यक्ति को एक मिनट में 40 बार पलक झपकाना चाहिए।
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