कानपुर। चेक बाउंस के एक मामले कोर्ट ने एक व्यक्ति को एक साल की सजा और तीन लाख रुपये का जुर्माने अदा करने की सजा सुनाई है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पैसा प्रधान समाज में आज रिश्तों की कोई अहमियत नहीं रह गई है। भाई की मौत के बाद बेसहारा हुई महिला को उसका जेठ छह साल तक कोर्ट- कचहरी के चक्कर लगवाता रहा। अदालत महसूस करती है कि लोग पारिवारिक जिम्मेदारी से दूर भागते हैं। किसी भी प्रकार धन उगाही हो यही कोशिश रहती है जो सही नहीं है।
विशेष महानगर मजिस्ट्रेट जेपी अग्रवाल की कोर्ट में सुमन मालवीय बनाम प्रताप नारायन मालवीय का मुकदमा चल रहा था। सुमन ने अपने जेठ प्रताप नारायन के खिलाफ केस दायर किया है। जिसमें कहा था कि उनका पैतृक मकान चौक नंबर 33/166 है। जेठ ने उससे अपना हिस्सा खरीदने को कहा। इस पर उसने 7 नवंबर 2004 को डेढ़ लाख रुपये चेक के जरिए दे दिया। इसके बावजूद बैनामा नहीं किया और बच्चों से मारपीट की। इसकी रिपोर्ट नौबस्ता थाने में दर्ज कराई थी। 6 फरवरी 2006 को कुछ लोगों ने समझौता कराते हुए डेढ़ लाख रुपये का चेक दिलवाया। समझौते में लिखा था कि चेक का भुगतान न होने पर वह धोखाधड़ी, चेक बाउंस का केस चलाने को स्वतंत्र होगी। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि भाई की मौत के बाद प्रताप नारायन की नैतिक जिम्मेदारी थी कि बहु का जीवन अच्छा बनाता पर ऐसा नहीं हुआ। अभियुक्त का कृत्य क्षमा योग्य नहीं है। जब जेठ ने बहू पर दया नहीं की तो कोर्ट से उसे यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए।