कानपुर। ‘देख जिंदां (जेल) से परे रंग-ए-चमन, जोश-ए-बहार रश्क (नृत्य) करना है तो पांव की जंजीर न देख।’ गरीबों के बेटों ने तंगहाली की जंजीर को तोड़ सपनों को हकीकत में तब्दील कर दिया। आईआईटीजेईई में सफल होकर गुरबत झेल रहे इन बच्चों ने घरवालों की उम्मीदों को नई रोशनी दे दी। महाराजपुर के सैबसी गांव के कृष्ण कुमार अवस्थी के पिता कैलाश अवस्थी ब्रेन ट्यूमर के मरीज हैं और एसजीपीजीआई में भरती हैं। ऐेेसे मानसिक तनाव की स्थिति में कृष्ण कुमार ने मनोबल बनाए रखा और 11980वीं रैंक हासिल कर ली है।
इन गुदड़ी के लालों के ख्वाबों को परवाज दी है सुपर 35 ने। गाजियाबाद के मुरादनगर के प्रशांत सिद्धार्थ को देखिये पिता मंशाराम दिन में 140-150 रुपए कमाते हैं। फिर भी सिद्धार्थ जुटे रहे और अब आईआईटीयन हो जाएंगे। कच्ची मड़ैया निवासी दिहाड़ी मजदूर राम कुमार के 17 वर्षीय राहुल गौतम का चयन भी जेईई में हुआ है। उनकी रैंक 839वीं हैं। रोजाना की 120-130 रुपए की आय से परिवार चलाने वाले राम कुमार को बेटे की पढ़ाई कराने में दिक्कत जरूर हुई। कहते हैं कि अब दिन बहुरेंगे।
गांधी नगर के हिमांशु वाधवानी का किस्सा भी अजीब है। पिता हरी किशन सेल्स मैन हैं, लंबे समय से बीमार हैं। बहन इंदु वाधवानी ने बीए किया है, वही ट्यूशन करके परिवार चला रही हैं। हिमांशु को पढ़ाने में उन्हीं का योगदान है। हाईस्कूल, इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए फीस नहीं थी। इसे लेकर ओंकारेश्वर के प्रधानाचार्य से बात की तो उन्होंने फीस माफ कर दी। रावतपुर निवासी अमरजीत मैथ्यू (449 रैंक) ने तंगहाली की वजह से पिता से कभी जेब खर्च नहीं मांगा। कामयाबी ने कल्पना को पंख दे दिए। पढ़ाई और फीस का इंतजाम बैंक लोन से करेंगे।
रितेश सिंह चौहान (13794 रैंक) शुक्रवार सरेशाम से छोटे से औरास गांव की शान बन गए। पिता बलराम सिंह किसान हैं। तीन बीघा जमीन है। उसी से घर का खर्च चलता है। दो बड़े भाई बेरोजगार हैं। लेकिन रितेश ने हालात से उबरने के लिए हौसले को कम न होने दिया। सीमिक संसाधनों में जूझे और आज आगे निकल गए। ख्वाहिश एयरोनॉटिकल, मैकेनिकल या सिविल ब्रांच मिलने की है। थोड़ी फिक्र भी है कि आगे की पढ़ाई कैसे होगी। लेकिन हौसले बुलंद है। रितेश के दोस्त रोहित कुमार (2708 रैंक एससी) ने बताया कि उसके गांव में अभी तक कोई आईआईटी तक नहीं पढ़ा।
विकास कुमार को 1772वीं रैंक मिली है। यहीं काकादेव में मामा शिक्षामित्र गोर्बधन सिंह और मामी रामादेवी शिक्षिका के यहां रहकर पढ़ाई करते थे। माता-पिता का देहांत हो चुका है। तंगहाली की तकलीफें ख्वाबों के आगे बौनी हो गईं। रात-दिन मेहनत की कामयाबी मिलेगी तो छोटे भाई को कायदे से पढ़ा पाएंगे। वह अपने जूनियर साथियों को पढ़ाते रहे। विकास कहते हैं कि मम्मी-पापा तो नहीं हैं, लेकिन उनको सपनों को साकार करना था। अब अपने छोटे भाई को भी आईआईटीजेईई की तैयारी कराएंगे। वह मेकेनिकल ब्रांच चाहते हैं।
कानपुर। ‘देख जिंदां (जेल) से परे रंग-ए-चमन, जोश-ए-बहार रश्क (नृत्य) करना है तो पांव की जंजीर न देख।’ गरीबों के बेटों ने तंगहाली की जंजीर को तोड़ सपनों को हकीकत में तब्दील कर दिया। आईआईटीजेईई में सफल होकर गुरबत झेल रहे इन बच्चों ने घरवालों की उम्मीदों को नई रोशनी दे दी। महाराजपुर के सैबसी गांव के कृष्ण कुमार अवस्थी के पिता कैलाश अवस्थी ब्रेन ट्यूमर के मरीज हैं और एसजीपीजीआई में भरती हैं। ऐेेसे मानसिक तनाव की स्थिति में कृष्ण कुमार ने मनोबल बनाए रखा और 11980वीं रैंक हासिल कर ली है।
इन गुदड़ी के लालों के ख्वाबों को परवाज दी है सुपर 35 ने। गाजियाबाद के मुरादनगर के प्रशांत सिद्धार्थ को देखिये पिता मंशाराम दिन में 140-150 रुपए कमाते हैं। फिर भी सिद्धार्थ जुटे रहे और अब आईआईटीयन हो जाएंगे। कच्ची मड़ैया निवासी दिहाड़ी मजदूर राम कुमार के 17 वर्षीय राहुल गौतम का चयन भी जेईई में हुआ है। उनकी रैंक 839वीं हैं। रोजाना की 120-130 रुपए की आय से परिवार चलाने वाले राम कुमार को बेटे की पढ़ाई कराने में दिक्कत जरूर हुई। कहते हैं कि अब दिन बहुरेंगे।
गांधी नगर के हिमांशु वाधवानी का किस्सा भी अजीब है। पिता हरी किशन सेल्स मैन हैं, लंबे समय से बीमार हैं। बहन इंदु वाधवानी ने बीए किया है, वही ट्यूशन करके परिवार चला रही हैं। हिमांशु को पढ़ाने में उन्हीं का योगदान है। हाईस्कूल, इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए फीस नहीं थी। इसे लेकर ओंकारेश्वर के प्रधानाचार्य से बात की तो उन्होंने फीस माफ कर दी। रावतपुर निवासी अमरजीत मैथ्यू (449 रैंक) ने तंगहाली की वजह से पिता से कभी जेब खर्च नहीं मांगा। कामयाबी ने कल्पना को पंख दे दिए। पढ़ाई और फीस का इंतजाम बैंक लोन से करेंगे।
रितेश सिंह चौहान (13794 रैंक) शुक्रवार सरेशाम से छोटे से औरास गांव की शान बन गए। पिता बलराम सिंह किसान हैं। तीन बीघा जमीन है। उसी से घर का खर्च चलता है। दो बड़े भाई बेरोजगार हैं। लेकिन रितेश ने हालात से उबरने के लिए हौसले को कम न होने दिया। सीमिक संसाधनों में जूझे और आज आगे निकल गए। ख्वाहिश एयरोनॉटिकल, मैकेनिकल या सिविल ब्रांच मिलने की है। थोड़ी फिक्र भी है कि आगे की पढ़ाई कैसे होगी। लेकिन हौसले बुलंद है। रितेश के दोस्त रोहित कुमार (2708 रैंक एससी) ने बताया कि उसके गांव में अभी तक कोई आईआईटी तक नहीं पढ़ा।
विकास कुमार को 1772वीं रैंक मिली है। यहीं काकादेव में मामा शिक्षामित्र गोर्बधन सिंह और मामी रामादेवी शिक्षिका के यहां रहकर पढ़ाई करते थे। माता-पिता का देहांत हो चुका है। तंगहाली की तकलीफें ख्वाबों के आगे बौनी हो गईं। रात-दिन मेहनत की कामयाबी मिलेगी तो छोटे भाई को कायदे से पढ़ा पाएंगे। वह अपने जूनियर साथियों को पढ़ाते रहे। विकास कहते हैं कि मम्मी-पापा तो नहीं हैं, लेकिन उनको सपनों को साकार करना था। अब अपने छोटे भाई को भी आईआईटीजेईई की तैयारी कराएंगे। वह मेकेनिकल ब्रांच चाहते हैं।