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सेटेलाइट से देख रहे गंगा की बदहाली

Kanpur Updated Tue, 15 May 2012 12:00 PM IST
कानपुर। निर्मल और अविरल गंगा के लिए गोमुख से गंगासागर तक आईटीबीपी के रिवर राफ्टिंग अभियान के दौरान जगह-जगह से इकट्ठा किए गए गंगा के सैंपल आंख खोलने वाले साबित हाेंगे। आईआईटी समेत अन्य सरकारी आंकड़े और फोटो जीआईएस और सेटेलाइट से खींचे गए हैं। ऐसे में आईटीबीपी के सैंपल और फोटो जमीनी हकीकत बयां करेंगे। यह हकीकत सोमवार को राज्य गंगा नदी अभिकरण के तकनीकी विशेषज्ञ आरपी शुक्ला ने आईटीबीपी के स्वर्ण जयंती समारोह के तहत हुए जागरूकता अभियान में बयां की। गंगा बैराज पर सोमवार को आयोजित समारोह में उन्होंने निबंध प्रतियोगिता के विजेता स्कूली बच्चों को भी पुरस्कृत किया।

आरपी शुक्ला ने कहा कि गंगा की हालत सुधारने के लिए देश की सातों आईआईटी संगठित रूप से प्रयासरत हैं। साथ ही पांच प्रांतों में राज्य गंगा नदी अभिकरण गठित हुए हैं। हालांकि, उन्होंने स्वीकारा कि आईआईटी, एनजीआरबीए या राज्य अभिकरण के पास जो आंकड़े, तथ्य और तस्वीरें हैं, वो सभी सेटेलाइट से लिए गए हैं। ऐसे में आईटीबीपी जवानों का 2525 किलोमीटर का अभियान और उस दौरान लिए गए पानी के नमूने और फोटो गंगा का वास्तविक हाल प्रस्तुत करेंगे। उन्होंने कहा कि कोई एजेंसी जोखिम लेकर गंगा से ऐसे सैंपल लेने को तैयार ही नहीं हुई। मुख्य अतिथि आईजी पीयूष आनंद ने लोगों से प्लास्टिक, कूड़ा, मुर्दे, पूजा का सामन, अस्थि विसर्जन आदि गंगा में न करने की अपील की। अभियान का नेतृत्व कर रहे आईटीबीपी के डीआईजी एसएस मिश्रा ने कहा कि फर्रुखाबाद से कानपुर तक सौ से अधिक अधजले शव, उनके वस्त्र, कंबल, रजाई, फूल आदि गंगा में मिले। इस मौके पर देव दीपावली समिति की ओर से अरुणपुरी चैतन्य महाराज बालयोगी ने गंगा आरती की। समारोह में डीआईजी अमिताभ यश, राज्य गंगा अभिकरण सदस्य जीडी सिंगल, पार्षद मदन भाटिया, कीर्ति अग्निहोत्री आदि मौजूद थे। इस दौरान फोटो प्रदर्शनी भी लगी।


यह पता चलेगा सैंपल से
मई-जून के दौरान गंगा और अन्य नदियों में जलस्तर कम हो जाता है जबकि सीवरेज और औद्योगिक कचरा बराबर गिरता है। किन क्षेत्रों के गंगा जल में जीवन के लिए पर्याप्त आक्सीजन है, पानी मछलियों या अन्य जल जीवों के लिए उपयुक्त है या नहीं, या फिर वो जहर बनता जा रहा है हकीकत सामने आएगी।

निबंध प्रतियोगिता के विजेता
उर्वशी अवस्थी डीपीएस कल्यानपुर को पहला, यश खंडवाल वीरेंद्र स्वरूप श्यामनगर को दूसरा, केडीएमए के अंबुज यादव को तीसरा और दुर्गाप्रसाद विद्या निकेतन के विवेक प्रताप सिंह, कृतिका मिश्रा को सांत्वना पुरस्कार मिला।

प्रदेश का हाल
1125 एमएलडी सीवरेज और औद्योगिक कचरा गंगा में गिरता है। प्रदेश में शोधन क्षमता 385 एमएलडी है। 825 एमएलडी क्षमता के शोधन प्लांट निर्माणाधीन।
2025 में 1554 एमएलडी कचरा रोज गंगा में गिरेगा। 345.02 एमएलडी के शोधन प्लांट की योजना बन रही है। योजना पूरी होने में अनुमानित पांच वर्ष लगेंगे।
बिजनौर से बनारस तक गंगा 900 किलोमीटर क्षेत्र में हैं। 23 जिलों और 26 शहरों से होकर गुजरती हैं।
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