कानपुर। जानवरों की खाल की छीलन से निकलने वाली चर्बी से आंतों से ब्लीडिंग से लेकर कैंसर तक हो सकता है। हार्टफेल होने की आशंका भी 10 गुना बढ़ जाती है। डाक्टरों ने जिला प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से इस चर्बी के धंधे पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है।
हृदय रोग संस्थान के निदेशक प्रोफेसर विनय कृष्णा ने बताया कि ऐसी चर्बी के सेवन से लिपिड प्रोफाइल गड़बड़ हो जाता है। लीवर फंग्शन (एसजीपीटी) भी गड़बड़ाने लगता है। इन दोनों कारणों से खून की नसों में फैट जमा हो जाता है। इससे एनजाइना, हार्ट अटैक से लेकर ब्रेन अटैक तक पड़ सकता है। यदि चर्बी में तेजाब मिला है तो यह और भी ज्यादा खतरनाक हो जाती है।
जीएसवीएम मेडिकल कालेज की मेडिसिन विभाग की प्रोफेसर आरती लाल चंदानी के अनुसार जानवरों की खाल की छीलन में तेजाब डालकर तैयार की जा रही चर्बी फास्ट प्वाइजन की तरह होती है। इसमें ट्राईगिलसराइड होता है। इससे गेस्ट्रोइनट्राइटिस, आंतों में ब्लीडिंग, पेप्टिक अल्सर, उच्च रक्तचाप से लेकर शरीर में एलर्जी हो सकती है। दमा के साथ ही फेफड़े चिपक कर खराब (एम्फाइसीमा) हो जाते हैं। हार्ट की मांसपेशियां फैल जाती हैं। जिससे हार्ट अटैक की आशंका 10 गुना बढ़ जाती है। ब्रेन स्ट्रोक, कैंसर, ब्लड कैंसर भी हो सकता है। इसलिए इस तरह की मिलावट करने वालों के खिलाफ बहुत सख्त दंड होना चाहिए।
चूंकि खाद्य विभाग प्रशासन के पास है। इसलिए खाद्य पदार्थों में मिलावट की शिकायत आने पर जांच एवं कार्रवाई के लिए प्रशासन को लिखा जाएगा।
डा.रामायण प्रसाद यादव, मुख्य चिकित्साधिकारी।
देशी घी में चर्बी की मिलावट की शिकायत मिलने पर जांच कराकर कार्रवाई की जाएगी।
डीआर मिश्रा, औषधि अधिकारी, खाद विभाग।
ऐसे पहचानें नकली या मिलावटी घी
कानपुर। नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा.एलके तिवारी के अनुसार मिलावटी घी जमा हुआ होता है। यदि देशी घी में चर्बी की मिलावट है या चर्बी में एसेंस मिलाकर नकली देशी घी तैयार किया गया है तो ऐसे घी में सेचुरेटेड फैट ज्यादा होते हैं। इसलिए चर्बी नीचे की तरफ जमा हो जाएगी। सेचुरेटेड फैट की वजह से ही यदि ऐसे घी को एक बर्तन से थोड़ी ऊंचाई से दूसरे बर्तन में डालेंगे तो झाग निकलता है। पर वास्तव में मिलावट है या नहीं या क्या - क्या मिलाया गया है, इसकी जांच सीएसए अथवा राजकीय जनविश्लेषण प्रयोगशाला से कराने पर ही स्पष्ट हो पाएगा।
कानपुर। जानवरों की खाल की छीलन से निकलने वाली चर्बी से आंतों से ब्लीडिंग से लेकर कैंसर तक हो सकता है। हार्टफेल होने की आशंका भी 10 गुना बढ़ जाती है। डाक्टरों ने जिला प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से इस चर्बी के धंधे पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है।
हृदय रोग संस्थान के निदेशक प्रोफेसर विनय कृष्णा ने बताया कि ऐसी चर्बी के सेवन से लिपिड प्रोफाइल गड़बड़ हो जाता है। लीवर फंग्शन (एसजीपीटी) भी गड़बड़ाने लगता है। इन दोनों कारणों से खून की नसों में फैट जमा हो जाता है। इससे एनजाइना, हार्ट अटैक से लेकर ब्रेन अटैक तक पड़ सकता है। यदि चर्बी में तेजाब मिला है तो यह और भी ज्यादा खतरनाक हो जाती है।
जीएसवीएम मेडिकल कालेज की मेडिसिन विभाग की प्रोफेसर आरती लाल चंदानी के अनुसार जानवरों की खाल की छीलन में तेजाब डालकर तैयार की जा रही चर्बी फास्ट प्वाइजन की तरह होती है। इसमें ट्राईगिलसराइड होता है। इससे गेस्ट्रोइनट्राइटिस, आंतों में ब्लीडिंग, पेप्टिक अल्सर, उच्च रक्तचाप से लेकर शरीर में एलर्जी हो सकती है। दमा के साथ ही फेफड़े चिपक कर खराब (एम्फाइसीमा) हो जाते हैं। हार्ट की मांसपेशियां फैल जाती हैं। जिससे हार्ट अटैक की आशंका 10 गुना बढ़ जाती है। ब्रेन स्ट्रोक, कैंसर, ब्लड कैंसर भी हो सकता है। इसलिए इस तरह की मिलावट करने वालों के खिलाफ बहुत सख्त दंड होना चाहिए।
चूंकि खाद्य विभाग प्रशासन के पास है। इसलिए खाद्य पदार्थों में मिलावट की शिकायत आने पर जांच एवं कार्रवाई के लिए प्रशासन को लिखा जाएगा।
डा.रामायण प्रसाद यादव, मुख्य चिकित्साधिकारी।
देशी घी में चर्बी की मिलावट की शिकायत मिलने पर जांच कराकर कार्रवाई की जाएगी।
डीआर मिश्रा, औषधि अधिकारी, खाद विभाग।
ऐसे पहचानें नकली या मिलावटी घी
कानपुर। नगर स्वास्थ्य अधिकारी डा.एलके तिवारी के अनुसार मिलावटी घी जमा हुआ होता है। यदि देशी घी में चर्बी की मिलावट है या चर्बी में एसेंस मिलाकर नकली देशी घी तैयार किया गया है तो ऐसे घी में सेचुरेटेड फैट ज्यादा होते हैं। इसलिए चर्बी नीचे की तरफ जमा हो जाएगी। सेचुरेटेड फैट की वजह से ही यदि ऐसे घी को एक बर्तन से थोड़ी ऊंचाई से दूसरे बर्तन में डालेंगे तो झाग निकलता है। पर वास्तव में मिलावट है या नहीं या क्या - क्या मिलाया गया है, इसकी जांच सीएसए अथवा राजकीय जनविश्लेषण प्रयोगशाला से कराने पर ही स्पष्ट हो पाएगा।