तिर्वा (कन्नौज)। उमर्दा ब्लाक क्षेत्र के अलमापुर गांव के बाहर बना पशु चिकित्सालय खुद बीमार है। यहां न तो चिकित्सक ही नियमित रूप से आते हैं और न ही पर्याप्त हवाएं मुहैया कराई जाती हैं। इस चिकित्सालय में सात महीने पहले शासन की ओर से एक चिकित्सक की तैनाती कर दी गई थी, लेकिन अभी तक फार्मासिस्ट और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का पद सृजन नहीं किया गया है। इसीलिए स्वास्थ्य सेवाएं चौपट हैं।
पांच साल पहले बने इस अस्पताल की देखरेख नहीं हो रही है। इसका फायदा उठाते हुए अराजकतत्वों ने कई कक्षों के दरवाजे ही उखाड़ डाले। खिड़कियां भी उखाड़ ले गए। कई खिड़कियों के शीशे गायब हो चुके हैं। फर्श का प्लास्टर कई जगह उखड़ चुका है। परिसर में गंदगी की भरमार है। शौचालय भवन जर्जर हो चुका है। सोख्ता टैंक धंसकने लगा है। करीब पांच लाख रुपये की लागत से बना यह अस्पताल पशुओं को कोई खास राहत नहीं पहुंचा पा रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि तत्कालीन विधायक कैलाश राजपूत की पहल पर वर्ष 2011 अक्तूबर में यहां डा. आशीष उमराव की तैनाती हुई। महीने भर में वह अस्पताल में मात्र चार-पांच दिन ही आते हैं।
भगतपुरवा निवासी शील राजपूत, रामचंद्र ने बताया कि चिकित्सक चंद घंटों के लिए ही अस्पताल आते हैं। महीने में ज्यादातर दिन लोग झोला छाप डाक्टरों की शरण में जाते हैं। सरकारी अस्पताल आने पर उन्हें ताला बंद मिलता है। अलमापुर निवासी राजेश का कहना है कि चिकित्सालय में पशुओ की बीमारी की दवाइयां भी नहीं मिलती हैं। कुछ कहने पर ऊपर से ही दवाएं न आने की बात बताई जाती है।
अस्पताल की दुर्दशा के संबंध में डा. आशीष उमराव का कहना है कि वह प्रतिदिन अस्पताल जाते हैं। अन्य कर्मचारी की तैनाती न होने के कारण अराजकतत्वों ने सामान गायब कर दिया है। इस पशु चिकित्सालय में नियमित रूप से पशुओं का परीक्षण कर उपचार किया जाता है। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. एके वर्मा कहते हैं कि डाक्टर के गायब रहने के आरोप झूठे हैं। गांवों में टीककारण कराने की वजह से डाक्टर को जाना पड़ता है। चतुर्थ श्रेणी कर्मी का अभी पद ही सृजित नहीं हो पाया है। फार्मासिस्ट तैनात करने का काम शासन स्तर पर लंबित है।