कन्नौज। जिला पंचायत राज विभाग में एनजीओ के जरिए चयनित होकर आए कंप्यूटर आपरेटर सात माह से मानदेय के लिए तरस रहे हैं। जिस एनजीओ के जरिए चयनित होकर ये आपरेटर आए हैं, उनकी संविदा सीमा 31 मार्च को समाप्त हो गई थी। इसके बावजूद दो महीने से अनाधिकृत तरीके से काम कराया जा रहा है।
लखनऊ के एक एनजीओ ने संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत वर्ष 2011 में पंचायत राज विभाग के तत्कालीन निदेशक से मिलकर कंप्यूटर पांच कंप्यूटर आपरेटर चयनित किए। इनमें जिलाधिकारी के आदेश पर दो आपरेटर अजय और जयचंद्र को कार्यभार ग्रहण करा दिया। इनका 10 हजार रुपये प्रति माह की दर से मानदेय निर्धारित किया गया। सूत्रों की मानें तो नियम-कानूनों को ताक पर रखकर एनजीओ के जरिए रखे गए आपरेटरों के भुगतान की कवायद शुरू होते ही वित्तीय नियम आड़े आ गए। सरकार बदलने के बाद जब निदेशक बदले तो छानबीन के दौरान गड़बड़झाला प्रतीत होते ही भुगतान लटक गया। आपरेटरों को नौकरी स्थाई हो जाने का झांसा देकर 50 हजार से लेकर एक लाख रुपये तक वसूली की गई।
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निदेशक के आदेश पर काम कराया, मार्च तक का भुगतान देंगे
कन्नौज। डीपीआरओ इंद्रपाल सोनकर का कहना है कि निदेशक के आदेश पर काम कराया गया है। भरती नियमानुसार हुई थी। कहीं कोई गड़बड़ी नहीं है। दोनों आपरेटरों को मार्च महीने तक का मानदेय का भुगतान जल्द किया जाएगा। पत्रावली बनकर तैयार हो गई है। जिलाधिकारी से अनुमोदन के लिए जल्द भेजी जाएगी। भुगतान सीधे आपरेटरों के खाते में भेजा जाएगा। संस्था को कोई भुगतान नहीं किया जाएगा। उन्होंने बताया कि अब किसी आपरेटर से कोई काम नहीं कराया जा रहा है। वे अपनी मरजी से दफ्तर में आकर बैठ रहे हैं।
डेढ़ महीने काम कराया, नहीं दिया पूरा भुगतान
कन्नौज। जिला पंचायत राज विभाग में काम करने वाला एक और आपरेटर भुगतान के लिए चक्कर काट रहा है। गांव बलही निवासी अर्पित पाल ने बताया कि उसने वर्ष 2011 में डीपीआरओ कार्यालय में दो महीने कंप्यूटर संबंधी कार्य किया। उसे 3000 रुपये मासिक मानदेय देने का वायदा किया गया, लेकिन डेढ़ महीने काम कराने के बाद सिर्फ पांच सौ रुपये थमाकर हटा दिया गया। उसने तहसील दिवस में उच्चाधिकारियों को प्रार्थनापत्र देकर भुगतान दिलाने की गुहार की पर कुछ नतीजा नहीं निकला।