छिबरामऊ (कन्नौज)। नगर के लोकभारती इंटर कालेज में श्री गोविंद सत साहित्य प्रचार समिति के तत्वावधान में चल रहे सत्संग एवं श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा के दौरान श्रीकृष्ण द्वारा रूक्मणी के गले में जयमाल डालते ही जमकर आतिशबाजी चली और फूलों की वर्षा की गई। इसके बाद कृष्ण सुदामा मिलन देख दर्शक भावविभोर हो गए।
कथा के दौरान सबसे पहले सखियों ने रूक्मणी के हाथों पर मेंहदी लगाई। इसके बाद पांडाल में श्रीकृष्ण का प्रवेश होते ही तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। श्रीकृष्ण ने रूक्मणी के गले में जैसे ही जयमाल डाली, पूरा परिसर आतिशबाजी के धमाकों से गूंज उठा। विवाह संपन्न होने के बाद श्रीकृष्ण से मिलने के लिए उनके बाल सखा सुदामा ने प्रवेश किया लेकिन द्वारपालों ने उन्हें दरवाजे पर ही रोक लिया। इस दौरान हुए गीत अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो पर श्रोता झूम उठे। आखिरकार बालसखा के आने की सूचना पाते ही श्रीकृष्ण नंगे पांव ही दौड़ पड़े और अपने मित्र सुदामा को गले लगा लिया। यह भावुक प्रसंग देख कई महिलाओं के आंसू निकल आए।
श्रीकृष्ण के स्वरूप में सुमित राजपूत, रूक्मणी के स्वरूप में शैलेंद्र उर्फ गोलू राजपूत, सखियां बनीं विकास दीक्षित व सुभांशु, सुदामा बने नंदन शुक्ला व द्वारपाल बने उत्कर्ष व निशांत का अभिनय सभी ने सराहा।
इस दौरान कथा का विस्तार करते हुए बाल संत भोले बाबा ने श्रीकृष्ण रूक्मणी विवाह का रोचक वर्णन किया। सुदामा चरित्र का बखान करते हुए कहा कि उन्होंने अपने बाल सखा कृष्ण से कपट किया इसलिए रंक हो गए। पत्नी सुशीला के आग्रह पर वह कृष्ण से मिलने गए। सुदामा की दीनहीन दशा देख प्रभू कृष्ण पिघल गए और पुराना वैभव फिर से वापस कर दिया।
छिबरामऊ (कन्नौज)। नगर के लोकभारती इंटर कालेज में श्री गोविंद सत साहित्य प्रचार समिति के तत्वावधान में चल रहे सत्संग एवं श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा के दौरान श्रीकृष्ण द्वारा रूक्मणी के गले में जयमाल डालते ही जमकर आतिशबाजी चली और फूलों की वर्षा की गई। इसके बाद कृष्ण सुदामा मिलन देख दर्शक भावविभोर हो गए।
कथा के दौरान सबसे पहले सखियों ने रूक्मणी के हाथों पर मेंहदी लगाई। इसके बाद पांडाल में श्रीकृष्ण का प्रवेश होते ही तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। श्रीकृष्ण ने रूक्मणी के गले में जैसे ही जयमाल डाली, पूरा परिसर आतिशबाजी के धमाकों से गूंज उठा। विवाह संपन्न होने के बाद श्रीकृष्ण से मिलने के लिए उनके बाल सखा सुदामा ने प्रवेश किया लेकिन द्वारपालों ने उन्हें दरवाजे पर ही रोक लिया। इस दौरान हुए गीत अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो पर श्रोता झूम उठे। आखिरकार बालसखा के आने की सूचना पाते ही श्रीकृष्ण नंगे पांव ही दौड़ पड़े और अपने मित्र सुदामा को गले लगा लिया। यह भावुक प्रसंग देख कई महिलाओं के आंसू निकल आए।
श्रीकृष्ण के स्वरूप में सुमित राजपूत, रूक्मणी के स्वरूप में शैलेंद्र उर्फ गोलू राजपूत, सखियां बनीं विकास दीक्षित व सुभांशु, सुदामा बने नंदन शुक्ला व द्वारपाल बने उत्कर्ष व निशांत का अभिनय सभी ने सराहा।
इस दौरान कथा का विस्तार करते हुए बाल संत भोले बाबा ने श्रीकृष्ण रूक्मणी विवाह का रोचक वर्णन किया। सुदामा चरित्र का बखान करते हुए कहा कि उन्होंने अपने बाल सखा कृष्ण से कपट किया इसलिए रंक हो गए। पत्नी सुशीला के आग्रह पर वह कृष्ण से मिलने गए। सुदामा की दीनहीन दशा देख प्रभू कृष्ण पिघल गए और पुराना वैभव फिर से वापस कर दिया।