ब्यूरो, अमर उजाला, जौनपुर
Updated Sun, 06 Mar 2016 07:44 PM IST
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विधान परिषद सदस्य चुनाव में अपने ही गढ़ में सपा की करारी हार लोगों के गले से नहीं उतर रही है। अब मंत्रियों के सामने लालबत्ती बचाना चुनौती बन गई है। कारण सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने पहले ही इस बात की चेतावनी दे दी थी कि अगर सीट नहीं निकली तो मंत्रियों की लाल बत्ती छिन जाएगी। सपा प्रत्याशी लल्लन यादव ने भी चुनाव से पहले मुख्यमंत्री को इस बात का संकेत दे दिया था कि कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
मुख्यमंत्री ने कुछ नेताओं को इशारा भी किया, लेकिन कुछ खास असर नहीं हुआ। जिले में एक कैबिनेट सहित तीन मंत्री और तीन दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री, चार विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष और तकरीबन डेढ़ दर्जन ब्लाक प्रमुख समाजवादी पार्टी के ही हैं। बावजूद इसके वे जिले में समाजवादी पार्टी की लाज बचाने कामयाब नहीं हो सके।
विधान परिषद सदस्य का टिकट मांगने वालों ने भी चुनाव में कोई रुचि नहीं ली। जबकि कई टिकट मांगने वाले सपा के बड़े नेताओं के काफी करीब बताते हैं। भितर घात व गुटबाजी के चलते सपा को हार का सामना करना पड़ा। जबकि पिछली बार बसपा शासन में लल्लन यादव मात्र 158 वोट से हारे थे। उस वक्त सपा के सिर्फ तीन विधायक थे और सरकार भी नहीं थी।
इस बार सात विधायक और अपनी सत्ता रहते भी जमकर किरकिरी हुई है। 765 मतों से पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा। यह संयोग ही है कि विकास खंडवार गिनती नहीं हुई। अगर ऐसा हुआ होता तो सपा के कई दिग्गजों का असली चेहरा समाज के सामने आ गया होता। चर्चा है कि नेताओं के गठजोड़ की वजह से ही ऐसा हुआ।
विधान परिषद सदस्य चुनाव में अपने ही गढ़ में सपा की करारी हार लोगों के गले से नहीं उतर रही है। अब मंत्रियों के सामने लालबत्ती बचाना चुनौती बन गई है। कारण सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने पहले ही इस बात की चेतावनी दे दी थी कि अगर सीट नहीं निकली तो मंत्रियों की लाल बत्ती छिन जाएगी। सपा प्रत्याशी लल्लन यादव ने भी चुनाव से पहले मुख्यमंत्री को इस बात का संकेत दे दिया था कि कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
मुख्यमंत्री ने कुछ नेताओं को इशारा भी किया, लेकिन कुछ खास असर नहीं हुआ। जिले में एक कैबिनेट सहित तीन मंत्री और तीन दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री, चार विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष और तकरीबन डेढ़ दर्जन ब्लाक प्रमुख समाजवादी पार्टी के ही हैं। बावजूद इसके वे जिले में समाजवादी पार्टी की लाज बचाने कामयाब नहीं हो सके।
विधान परिषद सदस्य का टिकट मांगने वालों ने भी चुनाव में कोई रुचि नहीं ली। जबकि कई टिकट मांगने वाले सपा के बड़े नेताओं के काफी करीब बताते हैं। भितर घात व गुटबाजी के चलते सपा को हार का सामना करना पड़ा। जबकि पिछली बार बसपा शासन में लल्लन यादव मात्र 158 वोट से हारे थे। उस वक्त सपा के सिर्फ तीन विधायक थे और सरकार भी नहीं थी।
इस बार सात विधायक और अपनी सत्ता रहते भी जमकर किरकिरी हुई है। 765 मतों से पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा। यह संयोग ही है कि विकास खंडवार गिनती नहीं हुई। अगर ऐसा हुआ होता तो सपा के कई दिग्गजों का असली चेहरा समाज के सामने आ गया होता। चर्चा है कि नेताओं के गठजोड़ की वजह से ही ऐसा हुआ।