जौनपुर। धान की कटाई जोर पकड़ चुकी है। कंबाइन से कटाई के बाद बचे अवशेष का सही निस्तारण करने की बजाए किसान इसे जला दे रहे हैं। समय और श्रम के लिहाज से यह भले ही आसान हो, मगर खेती के लिए यह तरीके से हानिकारक है। पराली जलाने से सिर्फ मानव सेहत को ही नुकसान नहीं पहुंच रहा, बल्कि मृदा की उर्वरता भी नष्ट हो रही है। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो अगर पराली जलाने का यह तरीका लगातार होता रहा तो खेत बंजर भी हो सकते हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. संदीप के मुताबिक मिट्टी में तमाम मित्र कीट सूक्ष्म रूप में मौजूद रहते हैं। यह कीट भूमि से सूक्ष्म पोषक तत्वों को लेकर पौधे को पहुंचाते हैं, जिससे पौधे का विकास होता है। फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीट-पतंगों के नाश में भी इन मित्र कीटों का अहम योगदान होता है। पराली जलाने से न सिर्फ यह कीट नष्ट हो जाते हैं, बल्कि दो इंच तक मिट्टी के गर्म होने से उसमें मौजूद पोषक तत्वों का भी ह्रास होता है। वह धुएं के साथ उड़ जाते हैं। नतीजा जब हम खेत में उर्वरक डालते हैं तो उसका भरपूर लाभ फसल को नहीं मिल पाता। पराली जलाने से मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता कम होती है और जलस्तर भी नीचे चला जाता है। डॉ.संदीप ने बताया कि पराली जलाने से निकलने वाला हानिकारक धुआं नमी के चलते धरती से कुछ ऊपर जाकर धुंध के रूप में वातावरण को ढंक लेता है। इससे वायु की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसका सीधा असर मनुष्य सहित जीवों की सेहत पर पड़ता है। सांस, दमा के रोगियों के लिए परेशानी बढ़ जाती है। धुंध के कारण सूरज की रोशनी भी सही ढंग से जमीन पर नहीं आ पाती, जिससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया भी प्रभावित होती है।
जौनपुर। धान की कटाई जोर पकड़ चुकी है। कंबाइन से कटाई के बाद बचे अवशेष का सही निस्तारण करने की बजाए किसान इसे जला दे रहे हैं। समय और श्रम के लिहाज से यह भले ही आसान हो, मगर खेती के लिए यह तरीके से हानिकारक है। पराली जलाने से सिर्फ मानव सेहत को ही नुकसान नहीं पहुंच रहा, बल्कि मृदा की उर्वरता भी नष्ट हो रही है। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो अगर पराली जलाने का यह तरीका लगातार होता रहा तो खेत बंजर भी हो सकते हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. संदीप के मुताबिक मिट्टी में तमाम मित्र कीट सूक्ष्म रूप में मौजूद रहते हैं। यह कीट भूमि से सूक्ष्म पोषक तत्वों को लेकर पौधे को पहुंचाते हैं, जिससे पौधे का विकास होता है। फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीट-पतंगों के नाश में भी इन मित्र कीटों का अहम योगदान होता है। पराली जलाने से न सिर्फ यह कीट नष्ट हो जाते हैं, बल्कि दो इंच तक मिट्टी के गर्म होने से उसमें मौजूद पोषक तत्वों का भी ह्रास होता है। वह धुएं के साथ उड़ जाते हैं। नतीजा जब हम खेत में उर्वरक डालते हैं तो उसका भरपूर लाभ फसल को नहीं मिल पाता। पराली जलाने से मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता कम होती है और जलस्तर भी नीचे चला जाता है। डॉ.संदीप ने बताया कि पराली जलाने से निकलने वाला हानिकारक धुआं नमी के चलते धरती से कुछ ऊपर जाकर धुंध के रूप में वातावरण को ढंक लेता है। इससे वायु की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसका सीधा असर मनुष्य सहित जीवों की सेहत पर पड़ता है। सांस, दमा के रोगियों के लिए परेशानी बढ़ जाती है। धुंध के कारण सूरज की रोशनी भी सही ढंग से जमीन पर नहीं आ पाती, जिससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया भी प्रभावित होती है।