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35 सदस्यों का परिवार एक साथ

Jaunpur Updated Tue, 15 May 2012 12:00 PM IST
सिकरारा। आज जहां रिश्ते क्षणभंगुर हो गए हैं, वहीं परिवार की परिभाषा पति, पत्नी और बच्चों तक सीमित हो चुकी है। यदि किसी परिवार में तीन दर्जन सदस्य एक रसोई में बना भोजन कर रहे हों तो यह एक सुखद आश्चर्य जैसा होगा। ऐसा ही एक परिवार है खानापट्टी गांव के स्व. राम गोपाल सिंह के पुत्रों का। तीन दर्जन लोग एक ही छत के नीचे रह कर प्रेम, सौहार्द और आपसी संबंधों की समरसता की मिसाल पेश कर रहे हैं।

पारिवारिक प्रेम और प्रगाढ़ता को किस सूत्र से अक्षुण बनाया है इसके जवाब में परिवार के मुखिया तथा चार भाइयों में सबसे बड़े डा. जोखन सिंह कहते हैं कि मैं, मेरा की जगह हम हमारा का भाव संयुक्त परिवार की सफलता की कुंजी है। डा. सिंह ने बताया कि उनके पिता स्व. राम गोपाल सिंह जिला परिषद के अवर अभियंता थे। अपने समय में वे परिवार के सभी सदस्यों को एक सूत्र में बांध कर रखते थे। पिता के असामयिक निधन के बाद मां स्व. शारदा देवी ने संघर्षमय परिस्थितियों में बड़ी हिम्मत और धैर्य से बच्चों का पालन पोषण कर बेहतर शिक्षा दी। बड़ी बहू भाग्यवानी सिंह ने गृहस्थी की जिम्मेदारी बखूबी संभाली। रात का भोजन परिवार के सभी सदस्य एकसाथ करते हैं। खाने की टेबल पर ही विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती है। अगले दिन किसे क्या काम निपटाने हैं यह भी यहां तय हो जाता है। उम्र में छोटे लोगों की भी राय का सम्मान होता है। डा. सिंह के अलावा तीन अन्य भाइयों में विजय बहादुर सिंह शिक्षक हैं। उन्हें राष्ट्रपति सम्मान मिल चुका है और दो दशक से अधिक समय से वे प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष हैं। परिवार की एकजुटता में उनकी भी अहम भूमिका है। तीसरे भाई जगदीश नारायण सिंह दीवानी के जाने माने अधिवक्ता और मां शारदा इंटर कालेज के प्रबंधक हैं। सबसे छोटे प्रेम नारायण सिंह प्रधानाचार्य हैं। तीनों भाइयों की पत्नियां क्रमश: नैना सिंह, संध्या सिंह, गायत्री सिंह गृहणी हैं। परिवार में डा. जोखन सिंह के बड़े पुत्र डा. दुष्यंत सिंह होमियोपैथिक चिकित्सालय चलाते हैं और उनकी पत्नी अवंतिका सिंह प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका हैं। दुष्यंत के छोटे भाई डा. अमित सिंह भी शिक्षक हैं। विजय बहादुर सिंह के पुत्र शरद सिंह पत्रकार हैं तो उनकी पत्नी अंकिता शिक्षिका। छोटे पुत्र आशुतोष निबंधन कार्यालय में स्टांप वेंडर हैं। जगदीश सिंह के बड़े बेटे गौरव सिंह व्यवसाय करते हैं और छोटे बेटे सौरभ सिंह ऊसर भूमि सुधार में कार्यरत हैं। बेटी शालिनी सिंह शिक्षिका है। प्रेम नारायण के दो पुत्र अश्विनी, प्रवीण अच्छी नौकरियों में हैं। डा. जोखन सिंह और उनके भाइयों के पौत्र पौत्रियाें में देवांश, परी, राजवीर, श्रेयांश, अंकुर आदि अभी छोटे हैं। आशुतोष की पत्नी अर्चना सिंह भी शिक्षिका हैं। गर्मी की छुट्टियों में विवाहित बेटियां अपने बच्चों के साथ गांव आती हैं। परिवार के मुखिया डा. जोखन व उनकी पत्नी भाग्यवानी समाज के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। परिवार की सुख शांति का श्रेय वे माता, पिता के आशीर्वाद और ईश्वर की कृपा को देते हैं। साल में एक बार दो जनवरी को माता, पिता की पुण्यतिथि पर धार्मिक अनुष्ठान और भोज का आयोजन होता है। जिसमें खानदान के सभी लोग और ईष्ट मित्र जुटते हैं। डा. जोखन एक कवि के मुक्तक को स्वयं से जोड़ते हुए कहते हैं-

बनाया है मैंने यह घर धीरे-धीरे, खुला मेरे ख्वाबों का पर धीरे-धीरे। किसी को दबाया न खुद को उछाला, कटा जिंदगी का सफर धीरे-धीरे।
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