जौनपुर। गर्मी की छुट्टी का लंबा इंतजार अब खत्म होने को है। कुछ कानवेंट स्कूल 12 मई से बंद हो गए तो कुछ 15 से बंद होंगे। सरकारी विद्यालयों में 19 मई से छुट्टी होनी है। छुट्टी करीब होने से बच्चों के चेहरे खिल उठे हैं। पूरा दिन मौज मस्ती और खेलकूद में बीतेगा। धमाचौकड़ी तो खूब होगी लेकिन घर के अंदर ही। शहर ही नहीं पूरे जिले में पार्क या पिकनिक स्पॉट का कहीं नामोनिशान नहीं है।
शहर से सटे भूपतपट्टी में वर्ष 1981 में आठ एकड़ जमीन पर वन विहार का निर्माण कराया गया। 1981 से 1985 तक प्रति वर्ष वन विहार की देखरेख के लिए करीब पांच लाख रुपये आते थे। वन विहार परिसर में छायादार और सुंदर फूलों वाले पौधे लगाए गए। चिडि़याघर बनने पर यहां हिरन, खरगोश, विलायती चूहे, चिडि़या, कबूतर, मोर, विदेशी बतख, अफ्रिकी बगुले बाहर से मंगा कर रखे गए। वन विहार में पार्क के पास 29 मई 1997 में पर्यटन केंद्र बनाया गया। जिसका उद्घाटन पूर्वी क्षेत्र वन संरक्षक डा. राम लखन ने किया। पशु, पक्षियों के लिए पिंजरे, तालाब और पर्यटकों के लिए छायादार झोपड़ी, कैंटीन का निर्माण हुआ। बच्चों के लिए झूले लगे। शुरुआत में कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक चला फिर देखरेख के अभाव में शुरू हुआ बदहाली का सिलसिला। खाने की समुचित व्यवस्था न होने से कुछ पशु पक्षी दम तोड़ने लगे। लिहाजा बचे हुए पशु, पक्षियों को वाराणसी और लखनऊ के चिडि़याघर भेजा जाने लगा। अब हालत यह है कि पिंजरे, झूले, झोपड़ी, कैंटीन का अस्तित्व ही खत्म हो चुका है। हरे भरे पेड़ों की जगह झाडि़यों ने ले ली हैं। कभी पशु-पक्षियों की चहचआहट और बच्चों की धमाचौकड़ी से गुलजार रहने वाला वन विहार आज वीरान है। सब्जी मंडी स्थित शहीद भगत सिंह पार्क, खरका कालोनी स्थित दीनदयाल पार्क, बदलापुर के पहितियापुर का बहरा पार्क, सीर में बना सिरवन पार्क और सीडा औद्योगिक क्षेत्र स्थित सतहरिया पार्क भी देखरेख के अभाव में उजाड़ हो चुका है। ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि गर्मी की छुट्टी में मौज मस्ती के लिए जिले से बाहर जाना ही एकमात्र रास्ता है। सुविधा संपन्न घरों के बच्चे तो परिजनों संग बाहर जा सकते हैं लेकिन निम्न तबके के लिए यह संभव नहीं। इस संबंध में डीएफओ चैतन्य नारायण का कहना है कि वन विहार को फिर से व्यवस्थित कराने का प्रयास जारी है।