उरई(जालौन)। जिले में पिछले आठ से चल रहा डाट्स कार्यक्रम अपने मकसद को पूरा नहीं कर पा रहा है।
इलाज की बुनियादी सविधाओं और योजना के प्रचार प्रसार के अभाव और बजट की कमी कार्यक्रम कामयाबी की राह में रोड़ा साबित हो रही है। इस वजह से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर क्षय रोगी अपेक्षित संख्या में नहीं पहुंच रहे हैं। इसके अलावा पुराने रोगियों में कमी आने के बजाय जिला अस्पताल के रजिस्टर में नए मरीजों के नाम और दर्ज हो गए हैं।
जिले में मार्च 2005 से चलाए जा रहे डाट्स कार्यक्रम के तहत क्षय रोगी को चिकित्सक, एएनएम या फिर आशा बहू अपने सामने ही दवा खिलाती है। जिले में लगभग 19,778 लोग क्षय रोग से पीड़ित हैं। जिले में प्रचार प्रचार के अभाव में डाटस कार्यक्रम दम तोड़ता नजर आ रहा है। जालौन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जांच की सुविधा ही नहीं है। मलिन बस्ती, बीहड़ क्षेत्र के सुदूर ग्रामीण अंचलों में क्षय रोगी आज भी दवा के अभाव में मौत के मुंह में समा रहे हैं। अतिपिछडे़ क्षेत्र माधौगढ़, रामपुरा, कदैरा एवं नदीगांव के दर्जनों गांवों में क्षय रोगी हैं। इन लोगों को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया नहीं है। डाट्स कार्यक्रम इनके लिए मुफीद नहीं है। मरीजों को दवा खाने सेंटर तक आना पड़ता है। माधौगढ़ ब्लाक के हरौली गांव का मजरा कपूरेकापुरा में कई लोग क्षय रोग से पीड़ित हैं लेकिन यातायात सुविधा न होने से मरीज इलाज नहीं करवा पा रहे हैं। हिम्मतपुरा का गांव मीगनीं में तो वर्षों में कई क्षय रोगी हैं। असहना ग्राम पंचायत का गांव गीधन की खोड़ में पूर्व प्रधान रामसेवक के तीन पुत्रों की वर्ष 2007 में क्षय रोग से मौत हो चुकी है। कदौरा के हांसा गांव, डकोर के कई गांव में क्षय रोगी निजी नर्सिंग होम में इलाज करवाने को मजबूर है। वहीं कई मरीजों का कहना है डाटस की दवा से उन्हें आराम नहीं मिल रहा है। समाजसेवी संजय सिंह का कहना है लोगों को इस रोग के प्रति जागरुक करना होगा। कई लोग प्रारंभिक अवस्था में समझ नहीं पाते हैं और क्षय रोगी बन जाते हैं। कई नवयुवक नश की लत से भी क्षय रोग के शिकार बन रहे हैं। बहरहाल डाटस कार्यक्रम की सार्थकता पर क्षय रोगियों की बाढ़ सवाल उठा रही है।
उरई(जालौन)। जिले में पिछले आठ से चल रहा डाट्स कार्यक्रम अपने मकसद को पूरा नहीं कर पा रहा है।
इलाज की बुनियादी सविधाओं और योजना के प्रचार प्रसार के अभाव और बजट की कमी कार्यक्रम कामयाबी की राह में रोड़ा साबित हो रही है। इस वजह से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर क्षय रोगी अपेक्षित संख्या में नहीं पहुंच रहे हैं। इसके अलावा पुराने रोगियों में कमी आने के बजाय जिला अस्पताल के रजिस्टर में नए मरीजों के नाम और दर्ज हो गए हैं।
जिले में मार्च 2005 से चलाए जा रहे डाट्स कार्यक्रम के तहत क्षय रोगी को चिकित्सक, एएनएम या फिर आशा बहू अपने सामने ही दवा खिलाती है। जिले में लगभग 19,778 लोग क्षय रोग से पीड़ित हैं। जिले में प्रचार प्रचार के अभाव में डाटस कार्यक्रम दम तोड़ता नजर आ रहा है। जालौन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जांच की सुविधा ही नहीं है। मलिन बस्ती, बीहड़ क्षेत्र के सुदूर ग्रामीण अंचलों में क्षय रोगी आज भी दवा के अभाव में मौत के मुंह में समा रहे हैं। अतिपिछडे़ क्षेत्र माधौगढ़, रामपुरा, कदैरा एवं नदीगांव के दर्जनों गांवों में क्षय रोगी हैं। इन लोगों को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया नहीं है। डाट्स कार्यक्रम इनके लिए मुफीद नहीं है। मरीजों को दवा खाने सेंटर तक आना पड़ता है। माधौगढ़ ब्लाक के हरौली गांव का मजरा कपूरेकापुरा में कई लोग क्षय रोग से पीड़ित हैं लेकिन यातायात सुविधा न होने से मरीज इलाज नहीं करवा पा रहे हैं। हिम्मतपुरा का गांव मीगनीं में तो वर्षों में कई क्षय रोगी हैं। असहना ग्राम पंचायत का गांव गीधन की खोड़ में पूर्व प्रधान रामसेवक के तीन पुत्रों की वर्ष 2007 में क्षय रोग से मौत हो चुकी है। कदौरा के हांसा गांव, डकोर के कई गांव में क्षय रोगी निजी नर्सिंग होम में इलाज करवाने को मजबूर है। वहीं कई मरीजों का कहना है डाटस की दवा से उन्हें आराम नहीं मिल रहा है। समाजसेवी संजय सिंह का कहना है लोगों को इस रोग के प्रति जागरुक करना होगा। कई लोग प्रारंभिक अवस्था में समझ नहीं पाते हैं और क्षय रोगी बन जाते हैं। कई नवयुवक नश की लत से भी क्षय रोग के शिकार बन रहे हैं। बहरहाल डाटस कार्यक्रम की सार्थकता पर क्षय रोगियों की बाढ़ सवाल उठा रही है।