हाथरस। हींग की खुशबू का ख्याल जेहन में आते ही अच्छे-अच्छों का हाजमा दुरुस्त हो जाता है। हींग के साथ हाथरस का जिक्र न हो, ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन हाथरस को देश भर में पहचान दिलाने वाले कारोबार का हाजमा समस्याओं ने बिगाड़ रखा है। दूसरे कारोबार की तरह हाथरस का हींग उद्योग भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है। बावजूद इसके शहर में हींग का यह कारोबार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है। शहर में हींग की फैक्ट्रियों की संख्या हर साल बढ़ रही है, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत यहां के कारोबारियों के सामने यह है कि वह अपने माल को देश से बाहर नहीं भिजवा पा रहे हैं। कस्टम ड्यूटी की वजह से यह कारोबार केवल देश के अंदर ही सिमटकर रह गया है। कारोबारी चाहते हैं कि भारत सरकार इस कुटीर उद्योग को लेकर लचीला रवैया अपनाए और करों में जरूरी रियायत दे, ताकि हाथरसी हींग विदेशियों का हाजमा भी दुरुस्त कर सके। हींग तैयार करने के लिए कच्चा माल (दूध) अफगानिस्तान से आयात होकर यहां तक पहुंचता है। इस दूध से ही पीएस एक्ट के अनुसार फ्लोर गम व अन्य जरूरी तत्व मिलाकर हींग तैयार कराई जाती है। पूरे देश के अलावा हींग की सप्लाई नेपाल, बर्मा (म्यांमार) और थाईलैंड जैसे देशों में भी होती है, लेकिन दिक्कत यह है कि हाथरस के कारोबारियों को वहां तक अपनी हींग पहुंचाने के लिए मुंबई, तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय कारोबारियों का सहारा लेना पड़ता है। अगर उन्हें सीधे निर्यात की सुविधा मिल जाए तो कारोबार में और जान पड़ सकती है।