{"_id":"7492","slug":"Hathras-7492-7","type":"story","status":"publish","title_hn":"फाइलों में अभयारण का प्रोजेक्ट, खतरे में ब्लैक बक","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
हाथरस। सिकंदराराऊ के जंगलों में विचरण करने वाले दुर्लभ काले हिरण (ब्लैक बक) या चिंकारा का अस्तित्व खतरे में है। ब्लैक बग के प्रोटेक्शन के लिए सिकंदराराऊ के जंगलों में अभ्यारण बनाने का प्लान पिछले छह सालों से सरकारी फाइलों में दबा पड़ा है, लेकिन वन विभाग की अनदेखी से इस प्लान को अभी तक शासन की मंजूरी नहीं मिल पाई है। करीब दो करोड़ के इस प्लान को अगर शासन की मंजूरी मिल जाती तो न केवल सिकंदराराऊ के जंगलों में विचरण करने वाले इस दुर्लभ वन्य जीव की हिफाजत का इंतजाम हो जाता, बल्कि घूमने-फिरने के लिए एक रमणीक स्थल पर भी तैयार हो जाता। तत्कालीन डीएम डॉ. एके वर्मा ने काले हिरण के संरक्षण के लिए यहां अभ्यारण विकसित करने की योजना बनाई थी। सालों से इस काले हिरण की हिफाजत का जिम्मा सिकंदराराऊ के ग्रामीण खुद संभाल रहे हैं। जिस दुर्लभ वन्य जीव की हिफाजत का काम वन विभाग को करना चाहिए, उसे शिकारियों से बचाने के लिए यहां के ग्रामीणों को खुद जूझना पड़ता है। ग्रामीणों की सजगता से ही काले हिरणों का अस्तित्व यहां बचा हुआ है, वरना तो शिकारियों ने इनका नाम-ओ-निशान ही मिटा दिया होता। वन विभाग ने तो मानो इस दुर्लभ वन्य जीव को शिकारियों का शिकार बनने के लिए छोड़ रखा है। वन विभाग के अफसर कभी सिकंदराराऊ के जंगलों में जाकर यह देखना जरूरी नहीं समझे कि जिस काले हिरण के शिकार पर इस मुल्क की सरकार ने भी पाबंदी लगा रखी है, वह इन असुरक्षित जंगलों में किस तरह सुरक्षित है। वन विभाग की इस अनदेखी का शिकारी पूरा फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। ग्रामीणों की नजर बचते ही कभी न कभी इन हिरणों को अपना शिकार बना ही लेते हैं।
सिकंदराराऊ के गांव टटी डंडिया, डंडेसरी, मुबारिकपुर कपसिया और आसपास के गांवों में ब्लैक बग (काला हिरण) पाया जाता है। एक सर्वे के अनुसार इन गांवों के जंगलों में ब्लैक बक की तादाद 100 से 110 के लगभग है। करीब एक दशक पहले इन हिरणों की तादाद यहां करीब 150 के लगभग होती थी, लेकिन सुरक्षा की कमी से कई हिरण शिकारियों का निवाला बन चुके हैं। इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए बजट की कमी की दलील हरगिज नहीं मानी जा सकती थी, क्योंकि शासन ने वन विभाग के सभी कामों को मनरेगा में शामिल कर लिया है, जिसमें पैसे की कोई कमी नहीं है। वैसे भी अभयारण के जितने भी काम हैं, वह सभी मनरेगा का हिस्सा हैं, लेकिन विभागीय अधिकारियों ने इस प्लान में कभी दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। अगर दिखाते तो शायद यह अभ्यारण कबका विकसित हो चुका होता। पैसा होते हुए भी जिस तरह विभाग ने इस प्लान की अनदेखी की है, उससे पता चलता है कि वन विभाग नहीं चाहता कि यह अभयारण तैयार हो। अगर अभयारण तैयार होगा तो उसे ब्लैक बग की हिफाजत की जिम्मेदारी मुस्तैदी से निभानी होगी और फिर शिकारियों से जो फायदा मिलता है, वह बंद हो जाएगा।
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