हाथरस। चुनाव में अब केवल एक माह शेष बचा है। ऐसे में यहां प्रत्याशी तरह-तरह के फार्मूले अपना कर वोट मांग रहे हैं। जात-बिरादरी का फार्मूला तो लंबे समय से चल ही रहा है, साथ ही नाते, रिश्तेदारी, गली, मोहल्ले व क्षेत्रवाद ही दुहाई भी दी जा रही है। कोई तुम्हारा अपना है और कोई तुम्हारा पराया है। यह लोगों को समझाने की कोशिश की जा रही है। इतना ही नहीं कुछ प्रत्याशी तो यह तक पता लगा रहे हैं कि कुछ प्रभावशाली लोग, जिनका राजनीति से कोई वास्ता नहीं है, उन तक कैसे अपनी पकड़ बनाई जाए। प्रत्याशी चाहते हैं कि खुलकर सामने न आने वाले यह लोग अंदरखाने ही उन्हें सपोर्ट कर दें, ताकि उनकी जीत की राह आसान हो जाए। चुनाव नजदीक है और प्रत्याशियों की कोशिश किसी भी तरह जीत हासिल करना है। इसके लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। जात-बिरादरी, गांव, मोहल्ले का वास्ता दिया जा रहा है। प्रत्याशी जगह-जगह जनसंपर्क में जाकर लोगों को यह बता रहे हैं कि वह उनके क्षेत्र के हैं। उनका क्षेत्र से बरसों से नाता रहा है। कुछ यह बता रहे हैं कि उन्हें तो अब यहीं जीना और यहीं मरना है तो कुछ यह बता रहे हैं कि वह तो पैदा ही यहां हुए थे। यही नहीं जनसंपर्क के दौरान प्रत्याशी एक दूसरे पर तीखे कटाक्ष भी कर रहे हैं। अपनी मिट्टी और क्षेत्र की दुहाई दी जा रही है। साथ ही जहां जरूरत पड़ रही हैं, वहां अपने समर्थकों की नाते-रिश्तेदारी व जुड़ाव का भी हवाला दिया जा रहा है। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनका समाज में प्रभाव तो है लेकिन वह राजनीति से दूर हैं। इन प्रत्याशियों की कोशिश है कि ऐसे गैर राजनीतिक लोग उनके समर्थक में चुपचाप आ जाएं। खुलकर न सही अंदरखाने ही सपोर्ट कर दें। इसके लिए भी तरह-तरह की कोशिशें हो रही हैं। इन गैर राजनीतिक प्रभावशाली लोगों के खासमखास लोगों से भी संपर्क किया जा रहा है।
हाथरस। चुनाव में अब केवल एक माह शेष बचा है। ऐसे में यहां प्रत्याशी तरह-तरह के फार्मूले अपना कर वोट मांग रहे हैं। जात-बिरादरी का फार्मूला तो लंबे समय से चल ही रहा है, साथ ही नाते, रिश्तेदारी, गली, मोहल्ले व क्षेत्रवाद ही दुहाई भी दी जा रही है। कोई तुम्हारा अपना है और कोई तुम्हारा पराया है। यह लोगों को समझाने की कोशिश की जा रही है। इतना ही नहीं कुछ प्रत्याशी तो यह तक पता लगा रहे हैं कि कुछ प्रभावशाली लोग, जिनका राजनीति से कोई वास्ता नहीं है, उन तक कैसे अपनी पकड़ बनाई जाए। प्रत्याशी चाहते हैं कि खुलकर सामने न आने वाले यह लोग अंदरखाने ही उन्हें सपोर्ट कर दें, ताकि उनकी जीत की राह आसान हो जाए। चुनाव नजदीक है और प्रत्याशियों की कोशिश किसी भी तरह जीत हासिल करना है। इसके लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। जात-बिरादरी, गांव, मोहल्ले का वास्ता दिया जा रहा है। प्रत्याशी जगह-जगह जनसंपर्क में जाकर लोगों को यह बता रहे हैं कि वह उनके क्षेत्र के हैं। उनका क्षेत्र से बरसों से नाता रहा है। कुछ यह बता रहे हैं कि उन्हें तो अब यहीं जीना और यहीं मरना है तो कुछ यह बता रहे हैं कि वह तो पैदा ही यहां हुए थे। यही नहीं जनसंपर्क के दौरान प्रत्याशी एक दूसरे पर तीखे कटाक्ष भी कर रहे हैं। अपनी मिट्टी और क्षेत्र की दुहाई दी जा रही है। साथ ही जहां जरूरत पड़ रही हैं, वहां अपने समर्थकों की नाते-रिश्तेदारी व जुड़ाव का भी हवाला दिया जा रहा है। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनका समाज में प्रभाव तो है लेकिन वह राजनीति से दूर हैं। इन प्रत्याशियों की कोशिश है कि ऐसे गैर राजनीतिक लोग उनके समर्थक में चुपचाप आ जाएं। खुलकर न सही अंदरखाने ही सपोर्ट कर दें। इसके लिए भी तरह-तरह की कोशिशें हो रही हैं। इन गैर राजनीतिक प्रभावशाली लोगों के खासमखास लोगों से भी संपर्क किया जा रहा है।
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