हरदोई। ‘युनाइटेड वी स्टैंड, डिवाइडेड वी फॉल, अनेकता में एकता, जाति न पूछो साधु की’। इन पंक्तियां को अंगीकार कर चुके अपने समाज के लिए आने वाला वक्त बड़े ही बदलाव वाला हो सकता है। अब तक किसी भी सरकार ने स्वतंत्र भारत में अधिकृत रूप से कभी नागरिकों की जाति नहीं पूछी। लेकिन, एक जून से हो रही आर्थिक सामाजिक जनगणना में जाति का भी सर्वेक्षण होगा। खास बात यह है कि गणना में एक-एक हिंदुस्तानी से उसकी जाति भी पूछी जाएगी। यह बात और है कि गणना में थोड़ी सी शालीनता दिखाकर जाति की जगह एक विकल्प इंसान या भारतीय बताए जाने का दे दिया गया है। जिसको जानकर कुछ वर्ग ने राहत की सांस ली है।
जनगणना को लेकर निकलने वाले जिम्मेदारों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। बहरहाल इस गणना का उद्देश्य भले ही अलग अलग वर्गों की एक संख्या सामने लाकर उनके उत्थान के बारे में सोचना हो, लेकिन इससे देश को जाति-पाति से दूर रखने वाली सूक्तियां, वाक्य एवं गीतों हिंद देश के निवासी सभी जन एक हैं, जाति धर्म वेश भूषा एक हैं.......आदि बेमतलब साबित होगी।
जानकारों की माने तो ब्रिटिश काल में 80 वर्ष पूर्व यानी वर्ष 1932 के लगभग इसी तरह की जातिगणना की गई थी। पर बताया गया कि प्रक्रिया इससे कुछ जुदा थी। लेकिन मौजूदा प्रक्रिया में बहुत सा वर्ग अपनी जाति बताने में झिझक महसूस करेगा तो इनका ख्याल करते हुए इसमें जाति छिपाने का ख्याल विशेष रूप से रखा गया है। कहना गलत न होगा और यहां नाम देने की भी जरूरत नहीं लेकिन, घोर जातिवादी दौर में भी एक बहुत बड़ा तबका ऐसे लोगों का भी है जो इसके विरुद्ध अपनी प्रतिबद्धता रखते हैं। इसे देखते हुए जातिगणना में विकल्प रखा गया है कि कोई व्यक्ति यदि अपनी जाति को छिपाना चाहे तो उस वाक्य में इंसान या भारतीय लिख सकता है। जिलों को भेजे गए निर्देशों में यह भी बताया गया है कि जो टीमें गणना करने निकलेगी, जिम्मेदारों को इस बात की हिदायत दी जा रही है कि जाति न बताने के इच्छुक नागरिकों की भावनाओं का इस बाबत ख्याल रखा जाए।