पिहानी (हरदोई)। मदरसा जामिआ उम्मुल मोमिनीन हजरत आयशा सिद्दीका में शिक्षणरत नौ छात्राओं को आलिमा की उपाधि से नवाजा गया। इस मौके पर तकरीर करते हुए मौलाना इस्लामुल हक ने कहा कि दीनी तालीम के जरिए दीन-दुनियां दोनों को संवारा जा सकता है। उन्होंने कहा कहा कि घरों को नमूना-ए-जन्नत बनाने के लिए मुसलमान अपनी बच्चियों को भी दीनी तालीम दिलाएं।
मोहल्ला नईबस्ती स्थित मदरसे में मंगलवार को नौ छात्राओं की बुखारी शरीफ मुकम्मल हुई थी। उन्हें ‘आलिमा’ के खिताब से नवाजा गया। इस उपलक्ष्य में मोहम्मदी की जामा मसजिद के इमाम मौलाना इस्लामुलहक असजद मियां ने कहा कि एक आलिम की बड़ी जिम्मेदारी होती है, उसे चाहिए कि खुद तो बुराई से बचे ही, दूसरों को भी बुराई से बचाए और अच्छाई की तरफ बुलाए। आलिम को सनद मिल जाने के बाद अपनी जिम्मेदारी को निभाना चाहिए। बच्चियों को दीनी तालीम दिलएं। इससे घरों का माहौल संवरता है। मौलाना ने समझाया महिलाओं को चाहिए कि वह अपने दिन रात दायरा-ए-इस्लाम में गुजारें। दायरा-ए-इसलाम क्या है, यह हमें दीनी तालीमात हासिल करने से ही पता चलेगा। ऐसी छात्राओं को जो आलिमत की सनद पा चुकी हैं, इस काम में पूरी जिम्मेदारी से लगना चाहिए कि वह महिलाओं को अच्छाई बुराई की तमीज सिखाएं। हमारा दीन हमें दिन रात किस तरह गुजारने की तालीम देता है, यह हमें दीनी किताबों के जरिए ही प्राप्त हो सकेगा। महिलाओें में जो जानकार हैं वह इस कार्य में लगें। तमाम मुसलिम महिलाओं को भी शबो-रोज के लिहाज से दीनी तालीमात के दायरे को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लेना चाहिए।