हरदोई। रेल यात्रियों को शीतल पेय के नाम पर मीठा जहर बेचा जा रहा है। धड़ल्ले से चल रहे इस गोरखधंधे में रोजाना लाखों की कमाई होती है। यह सब चोरी छिपे नहीं खुलेआम होता हैं और ऐसा नहीं किजिम्मेदारों को इसकी जानकारी नहीं है। उनकी नजर में ही सब काम होता है और इसका वह नजराना लेते हैं। अवैध वेंडरों की इस काली कमाई का खामियाजा रोजाना ट्रेनों पर चलने वाले हजारों यात्रियों को भुगतना पड़ता है। रेलवे स्टेशनों के आसपास नकली शीतल पेय बनाने का काम होता है और इसके कुछ अड्डे भी बनाए गए हैं। जहां पर रोजाना सैकड़ों की संख्या में बोतलें तैयार की जाती हैं। शीतल पेय के कारोबार की कड़वी सच्चाई को ‘अमर उजाला’ ने आंखों देखा।
गर्मी के मौसम में ट्रेन यात्रियों को सूखा गला तर करने के लिए दो बूंद पानी की अमृत के सामान लगता है। ट्रेनों में ज्यादातर आम के स्वाद वाली नकली शीतल पेयों को बनाकर बेचा जाता है। कुछ खास कंपनी वाली शीतल पेय की खाली बोतलों को कम कीमत पर तैयार कर उसमें पदार्थ भरा जाता है। गोरखधंधे से जुड़े लोगों के अनुसार एक पैकेट रसना या पीले, नारंगी रंग में सेक्रीन मिलाकर उसका शीतल पेय तैयार कर लिया जाता है। एक बोतल की कीमत बर्फ समेत करीब दो से तीन रुपए आती है और ऊपर से अन्य खर्चा जोड़कर यह बोतल पांच से छह रुपए में पड़ती है। जिसे वह 10 से 12 रुपए में बेचते हैं। इस काम से जुड़े एक अवैध बेंडर ने बताया कि उनका सीजन चल रहा है। जितना कमा लेें कम है। स्टेशन के पास एक स्थान पर कुछ खास शीतल पेय बनाने वाले युवक को काफी विश्वास में लेने पर उसने बताया कि यह आसानी से बन जाते हैं। ठंडी बोतल का यात्री स्वाद भी ज्यादा नहीं जान पाते और सबसे खास बात यह है कि बंद बोतल में कोई गैस नहीं होती है। जिससे आसानी से कोई अनुमान नहीं लगा पाता। उसका कहना था कि वह लोग ट्रेन में बोतलें बेचते हैं। यात्रियों को पहले बेंच दी और बाद में खाली बोतल एकत्रित कर लेते। सबसे खास बात यह है कि बोतल में जो डाट लगी होती है वह ठोकी गई होती है उसे वे अपने पास ही एकत्रित करते रहते हैं। अगर कहीं बीच में बोतलें समाप्त हो जाती हैं उसका भी इंतजाम रखते हैं। जिस पीपे में बोतलें रखी होती हैं उसमें बर्फ भी भरी होती है और गली हुई बर्फ में पहले से ही रखा गया पदार्थ व सेक्रीन मिलाकर स्टेशन पर किसी सुनसान स्थान पर जाकर उसे फिर से बोतलों में भर लेते हैं और वही बिक्री करते हैं। कमाई पूछने पर बताया कि जो मिल जाए कम है। वैसे तो रोजाना एक वेंडर 100 से 200 बोतलें बेचता है। आधी कमाई को खर्चा में निकल जाती है लेकिन औसतन एक बोतल पर पांच रुपए बच जाते हैं।
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साहब काम के लिए खुलवानी पड़ती है लाइन
हरदोई। काली कमाई के बारे में एक बेंडर ने बताया कि इसके लिए उन लोगों को लाइन खुलवानी पड़ती है। मसलन हरदोई से बालामऊ चलने का रेट अलग है और हरदोई से संडीला तक चलने का दूसरा रेट है। ऐसा ही ही शाहजहांपुर की तरफ होता है। लाइन खुलवाने के बाद ही कोई अपना कारोबार कर सकता है और उसी लाइन पर चलेगा। इसके साथ ही कोच में चलने के बाद जिस स्टेशन पर डिब्बा लेकर उतरते हैं। साहबों की नजर में वह लोग रहते हैं और 30 से 50 रुपए प्रति चक्कर अलग से देने पड़ते हैं। हालांकि उसका कहना था कि जो रेट लेते हैं वह सुरक्षा की जिम्मेदारी भी लेते हैं हालांकि कहीं बाहर की टीम की वह भी कोई जिम्मेदारी नहीं लेते और खुद बचाव करने की बात कहते हैं।
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लीवर और आंतों की होती बीमारी
हरदोई। नकली शीतल पेय मीठे जहर का काम करते हैं। जिला अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डा.विष्णु कुमार के अनुसार जो घातक रसायन मिलाए जाते हैं उनका सीधा असर लीवर पर पड़ता है। सेक्रीन का अधिक सेवन भी घातक होता है। इस प्रकार के शीतल पेय पीने से लीवर, आंत की बीमारी तो हो ही जाती है। गला भी खराब हो जाता है।