हरदोई। भले ही ग्रहों की विशेष चाल का ही नतीजा हो या फिर रविवार के दिन को विशेष महत्व ही मिलना हो। कारण कुछ भी हों, पर 20 साल के बाद ऐसा अद्भुत संयोग देखने को मिला कि एक ही दिन अमावस्या, वट सावित्री व्रत व शनि जयंती पड़ी। सूर्यग्रहण भी इसी दिन हुआ।
ज्योतिषियों की माने तो खास बात यह है कि ग्रहण ने अपने समय से कहीं भी वट पूजन को प्रभावित नहीं किया। इधर शनि जयंती को भी श्रद्धापूर्वक मनाया गया। यह बात और है कि सूर्य ग्रहण को यहां देखा नहीं जा सका, पर यह संयोग 20 साल बाद देखने को मिल रहा कि सूर्य ग्रहण, वट सावित्री व्रत एवं शनि जयंती एक ही दिन पड़ीं। ज्योतिषियों के मुताबिक अमावस्या पर सावित्री व्रत कथा सुनने के बाद वट व्रत पूजन किया गया। पूजन को सुबह नौ बजकर 36 मिनट से विशेष समय बताया गया, जो दोपहर सवा दो बजे तक होना बताया गया। शास्त्री उमाकांत अवस्थी का कहना है कि अबकी ग्रहण ने कहीं भी वट पूजन को प्रभावित नहीं किया। सूर्य ग्रहण सुबह 3.40 बजे से सुबह 7 बजे तक हुआ, जबकि इसके बाद से वट व्रत पूजन का समय शुरू हो गया। नौ बजे के बाद विशेष योग बना। उनका कहना है कि शनि जयंती, सूर्य ग्रहण व वट वृक्ष पूजा तीनों एक साथ 20 सालों के बाद संयोग आया है। यह संयोग किसी भी राशि के लिए बहुत नुकसान दायक नहीं है, बल्कि यदि यह कहें कि किसी न किसी राशि को खास लाभ पहुंचाएगी तो गलत न होगा। उधर, शनि जयंती श्रद्धापूर्वक मनाई गई। जानकारों का कहना है कि मेहनत व ईमानदारी की कोशिशें करने पर भी जब बार-बार लक्ष्य की पूर्ति कोई नहीं होती, तो ऐसे व्यक्ति के लिए शनि देव से अच्छा कोई लाभ नहीं दे पाता। अवस्थी का कहना है कि भगवान शनि भाग्य विधाता भी है। विपरीत हालत में भी असंभव लगने वाली चीजें संभव हो जाती है।
इसी उद्देश्य को लेकर इस विशेष दिन शनि जयंती पर विशेष आयोजन किया गया और आरती आदि के साथ पूजन किया गया। श्रद्धालुओं ने भगवान शनि की पूजा में गंध, अक्षत, फूल, काला वस्त्र, काली उड़द आदि चढ़ाई। उधर, बावन में वट सावित्री पूजा को लेकर सुहागिनों में विशेष उत्साह देखा गया। तड़के से ही वट वृक्ष पर पूजन को सुहागिनों की कतारें लगनी शुरू हो गई। इस पर्व पर वट पूजा के साथ ही प्राचीन माता कुसमा देवी, नकटी देवी आदि मंदिरों में भी महिलाओं ने पूजा की।