कांटे जैसी चुभती तपिश उस पर राहत के लिए बंदे पड़े पंखे और कूलर। कटौती से करवटें बदलते कटती रात। हाल तब और बुरा हो जाता है जब हलक तर करने को पानी तक न पिले। जिले भर में कुछ यही हाल है। आमोखाश, सबकी जुबां पर पूरे दिन बस एक ही चर्चा, ‘अब तो नर्क हो गई जिंदगी’। हर दिन कहीं न कहीं लोकल फाल्ट व ग्रिड से आपूर्ति में कटौती ने लोगों को बेदम कर दिया है। अघोषित कटौती से उद्योग और व्यापार तो प्रभावित हो ही रहा है, छात्र-छात्राओं की पढ़ाई भी चौपट हो रही है। इतना ही नहीं, पूरे घर की जिम्मेदारी संभाले गृहणियों भी उस वक्त आपे से बाहर हो जाती हैं जब राहत की आस में घर में दाखिल होते ही ‘अपनों’ को वो गर्मी से कराहते हुए देखती हैं। जिले के पिहानी,सांडी,मल्लावां में तो और भी बुरा हाल है। कहीं लोग आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं तो कहीं लोग सड़कों पर अपने गुस्से का इजहार कर रहे हैं।