हरदोई। हर व्यक्ति द्वारा किए हुए कर्मों का फल स्वयं भोगना पड़ता है, इसलिए कर्म करने से पहले दस बार सोचो और उसके बाद ही कर्म करो। विष्णुपुरी में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन भक्तों को कथा प्रसंग सुनाते समय हरिद्वार से आए स्वामी अक्षयानंद ने यह बात कही। उन्होंने भगवान की बाल लीलाओं का श्रवण कराते हुए बताया कि भगवान ने किस तरह पहले पूतना को मारा और उसके बाद शकटासुर और तृणावर्त का उद्धार किया। माखन चोरी सहित कई बाल लीलाओं का वर्णन कर उनके द्वारा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया गया। स्वामी ने ब्रह्माजी की स्तुति के तीन सूत्र बताए। हर व्यक्ति द्वारा किए हुए कर्मों का फल स्वयं भोगना पड़ता है, इसलिए कर्म करने से सावधान रहो, फल तो कर्म के अनुसार ही मिलेगा। उन्होंने कहा कि प्रकृति के नियम में यह बात शामिल है और हर व्यक्ति के जीवन में ऐसा मौका कई बार आता है कि यह तथ्य स्वयं ही सिद्ध हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि जो और जैसा कर्म हम कर रहे हैं, उसका कई गुना हमें वापस उसी जन्म में मिल जाता है। इसलिए कर्म अच्छा या बुरा करना है, यह हमारे विवेक पर है। भगवान का सच्चा भक्त वही है, जो हर परिस्थित में प्रसन्न बना रहे और अपने ईष्ट का ध्यान करता रहे, क्योंकि उसका सच्चा ईश प्रेम न सिर्फ उसके संकल्प को अडिग रखेगा, बल्कि उसका भगवान भी अपने भक्त के प्रेम को देखकर उसे लगातार दुख के पहाड़ों तले दबाकर नहीं रखेगा, इसलिए भक्त और भगवान के बीच का प्रेम ही मनुष्य को हर परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति और सही पथ पर चलने की राह दिखाता है। स्वामी ने काली दहन की लीला के साथ गोवर्धन लीला का भी श्रवण कराया। भगवान ने गोवर्धन लीला करके देवराज इंद्र का मानमर्दन किया। इस मौके पर प्रमुख यजमान ईश्वर चंद्र मिश्र, पवन मिश्र, पीयूष, प्रकाश मिश्र, केशव, श्याम, स्पर्श, देवेंद्र सिंह, पीयूष बाजपेई, हृदेश श्रीवास्तव, अभय यादव, विनीश शुक्ला, देवेश द्विवेदी आदि मौजूद थे।
हरदोई। हर व्यक्ति द्वारा किए हुए कर्मों का फल स्वयं भोगना पड़ता है, इसलिए कर्म करने से पहले दस बार सोचो और उसके बाद ही कर्म करो।
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विष्णुपुरी में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन भक्तों को कथा प्रसंग सुनाते समय हरिद्वार से आए स्वामी अक्षयानंद ने यह बात कही। उन्होंने भगवान की बाल लीलाओं का श्रवण कराते हुए बताया कि भगवान ने किस तरह पहले पूतना को मारा और उसके बाद शकटासुर और तृणावर्त का उद्धार किया। माखन चोरी सहित कई बाल लीलाओं का वर्णन कर उनके द्वारा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया गया। स्वामी ने ब्रह्माजी की स्तुति के तीन सूत्र बताए। हर व्यक्ति द्वारा किए हुए कर्मों का फल स्वयं भोगना पड़ता है, इसलिए कर्म करने से सावधान रहो, फल तो कर्म के अनुसार ही मिलेगा। उन्होंने कहा कि प्रकृति के नियम में यह बात शामिल है और हर व्यक्ति के जीवन में ऐसा मौका कई बार आता है कि यह तथ्य स्वयं ही सिद्ध हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि जो और जैसा कर्म हम कर रहे हैं, उसका कई गुना हमें वापस उसी जन्म में मिल जाता है। इसलिए कर्म अच्छा या बुरा करना है, यह हमारे विवेक पर है। भगवान का सच्चा भक्त वही है, जो हर परिस्थित में प्रसन्न बना रहे और अपने ईष्ट का ध्यान करता रहे, क्योंकि उसका सच्चा ईश प्रेम न सिर्फ उसके संकल्प को अडिग रखेगा, बल्कि उसका भगवान भी अपने भक्त के प्रेम को देखकर उसे लगातार दुख के पहाड़ों तले दबाकर नहीं रखेगा, इसलिए भक्त और भगवान के बीच का प्रेम ही मनुष्य को हर परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति और सही पथ पर चलने की राह दिखाता है। स्वामी ने काली दहन की लीला के साथ गोवर्धन लीला का भी श्रवण कराया।
भगवान ने गोवर्धन लीला करके देवराज इंद्र का मानमर्दन किया। इस मौके पर प्रमुख यजमान ईश्वर चंद्र मिश्र, पवन मिश्र, पीयूष, प्रकाश मिश्र, केशव, श्याम, स्पर्श, देवेंद्र सिंह, पीयूष बाजपेई, हृदेश श्रीवास्तव, अभय यादव, विनीश शुक्ला, देवेश द्विवेदी आदि मौजूद थे।
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