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हरदोई। दो हजार से ज्यादा आबादी वाले गांवों में लोगों को घर बैठे बैंकिंग सेवाएं दिलाने का सपना अभी भी पूरी तरह से साकार नहीं हो पाया है। आंक ड़ों की बाजीगरी में कागजों पर गांवों में सुविधाएं पहुंच गई हैं, पर हकीकत कुछ और है। एलडीएम कार्यालय के पास ही जानकारी नहीं कि किस बैंक शाखा का सुविधादाता किस गांव में किस दिन मौजूद रहकर गांवों वालों को बैंकिंग सेवाएं मुहैया करा रहा है।
केंद्र सरकार की इस योजना पर बैंकों द्वारा करोड़ों रुपए खर्च कर बायोमैट्रिक मशीनें तथा बायोमैट्रिक कार्ड आदि की प्रक्रिया पूरी की गई, पर घर बैठे बैंकिंग सेवाएं पाने का सपना अभी भी सुनहरा ख्वाब बना हुआ है। ज्ञात हो कि केंद्र सरकार एवं रिजर्व बैंक द्वारा गांव के लोगों को घर बैठे बैंकिंग सेवाओं के लिए वर्ष 2010 में सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों को दो हजार से ज्यादा आबादी वाले गांवों में बैंकिंग सेवाएं पहुंचाने के निर्देश दिए थे। इसके बाद से गांव के लोग घर बैठे की बैंकिंग सेवाएं मिलने का सपना देखने लगे थे। सार्वजनिक क्षेत्र की सभी बैंकों को अपनी शाखाओं के सेवा क्षेत्र के तहत आने वाले दो हजार से ज्यादा आबादी वाले गांवों में बैंकिंग सेवाएं पहुंचानी हैं।
जिले में दो हजार से ज्यादा आबादी वाले गांवों की संख्या 496 है। इन गांवों में बीओआई को 121, एजीबी को 202, एसबीआई को 49, इलाहाबाद बैंक को 40, बीओबी 2, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया को 29, इंडियन बैंक को 2, ओबीसी को 1, पीएनबी को 33, यूनियन बैंक को 16, यूनाइटेड बैंक को में बैकिंग सेवाएं पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई थी। इन गांवों में सेवाएं पहुंचाने को बैंकों द्वारा सुविधादाता की नियुक्ति एवं बायोमैट्रिक कार्ड तथा बायोमैट्रिक मशीनों के लिए करोड़ों खर्च कर अपनी बैंक शाखाओं के अंतर्गत आने वाले गांवों में बैंकिंग व्यवस्था की तैयारियां पूरी की गई।
बैंकों के आंकड़ों की मानें तो शत प्रतिशत गांवों के लिए सुविधादाता की नियुक्ति होने के साथ गांवों में बैंकिंग सेवाएं पहुंच रही हैं, पर हकीकत कुछ और है। दो हजार से ज्यादा आबादी वाले जिले के इन 496 गांवों में सुविधादाता किस दिन और किस समय कहां मिलेंगे, इसकी जानकारी न तो ग्रामीणों को है और न ही एलडीएम कार्यालय को। हालांकि, कुछ बैंकों द्वारा इस ओर सजगता से कार्य किया जा रहा, पर कुछ बैंकों के जिम्मेदारों की उदासीनता से केंद्र की इस महत्वपूर्ण योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है।
इंसेट---
‘यह सही है कि कुछ सुविधादाताओं के गांवों में नियमित रूप से न पहुंचने एवं कार्यस्थल पर बोर्ड आदि न लगाने की सूचनाएं मिली हैं, पर इसका यह मतलब नहीं कि सभी लोग कार्य नहीं कर रहे है। सभी बैंकों के जिला समन्वयकों से बात की जाएगी। जल्द ही बैंकों से इस बारे में रोडमैप लेकर जरूरी कार्रवाई कराएंगे।’
डॉ. अनिल लवानिया, एलडीएम
हरदोई। दो हजार से ज्यादा आबादी वाले गांवों में लोगों को घर बैठे बैंकिंग सेवाएं दिलाने का सपना अभी भी पूरी तरह से साकार नहीं हो पाया है। आंक ड़ों की बाजीगरी में कागजों पर गांवों में सुविधाएं पहुंच गई हैं, पर हकीकत कुछ और है। एलडीएम कार्यालय के पास ही जानकारी नहीं कि किस बैंक शाखा का सुविधादाता किस गांव में किस दिन मौजूद रहकर गांवों वालों को बैंकिंग सेवाएं मुहैया करा रहा है।
केंद्र सरकार की इस योजना पर बैंकों द्वारा करोड़ों रुपए खर्च कर बायोमैट्रिक मशीनें तथा बायोमैट्रिक कार्ड आदि की प्रक्रिया पूरी की गई, पर घर बैठे बैंकिंग सेवाएं पाने का सपना अभी भी सुनहरा ख्वाब बना हुआ है। ज्ञात हो कि केंद्र सरकार एवं रिजर्व बैंक द्वारा गांव के लोगों को घर बैठे बैंकिंग सेवाओं के लिए वर्ष 2010 में सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों को दो हजार से ज्यादा आबादी वाले गांवों में बैंकिंग सेवाएं पहुंचाने के निर्देश दिए थे। इसके बाद से गांव के लोग घर बैठे की बैंकिंग सेवाएं मिलने का सपना देखने लगे थे। सार्वजनिक क्षेत्र की सभी बैंकों को अपनी शाखाओं के सेवा क्षेत्र के तहत आने वाले दो हजार से ज्यादा आबादी वाले गांवों में बैंकिंग सेवाएं पहुंचानी हैं।
जिले में दो हजार से ज्यादा आबादी वाले गांवों की संख्या 496 है। इन गांवों में बीओआई को 121, एजीबी को 202, एसबीआई को 49, इलाहाबाद बैंक को 40, बीओबी 2, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया को 29, इंडियन बैंक को 2, ओबीसी को 1, पीएनबी को 33, यूनियन बैंक को 16, यूनाइटेड बैंक को में बैकिंग सेवाएं पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई थी। इन गांवों में सेवाएं पहुंचाने को बैंकों द्वारा सुविधादाता की नियुक्ति एवं बायोमैट्रिक कार्ड तथा बायोमैट्रिक मशीनों के लिए करोड़ों खर्च कर अपनी बैंक शाखाओं के अंतर्गत आने वाले गांवों में बैंकिंग व्यवस्था की तैयारियां पूरी की गई।
बैंकों के आंकड़ों की मानें तो शत प्रतिशत गांवों के लिए सुविधादाता की नियुक्ति होने के साथ गांवों में बैंकिंग सेवाएं पहुंच रही हैं, पर हकीकत कुछ और है। दो हजार से ज्यादा आबादी वाले जिले के इन 496 गांवों में सुविधादाता किस दिन और किस समय कहां मिलेंगे, इसकी जानकारी न तो ग्रामीणों को है और न ही एलडीएम कार्यालय को। हालांकि, कुछ बैंकों द्वारा इस ओर सजगता से कार्य किया जा रहा, पर कुछ बैंकों के जिम्मेदारों की उदासीनता से केंद्र की इस महत्वपूर्ण योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है।
इंसेट---
‘यह सही है कि कुछ सुविधादाताओं के गांवों में नियमित रूप से न पहुंचने एवं कार्यस्थल पर बोर्ड आदि न लगाने की सूचनाएं मिली हैं, पर इसका यह मतलब नहीं कि सभी लोग कार्य नहीं कर रहे है। सभी बैंकों के जिला समन्वयकों से बात की जाएगी। जल्द ही बैंकों से इस बारे में रोडमैप लेकर जरूरी कार्रवाई कराएंगे।’
डॉ. अनिल लवानिया, एलडीएम