हरदोई। दुखों से अगर चोट खाई न होती तो तुम्हारी प्रभू याद आई न होती...। इन जैसी भावपूर्ण पंक्तियों को सुनकर जहां कई भक्त परमपिता परमेश्वर में लीन से हो गए, तो कई इन पंक्तियों के भावार्थ समझ कर हामी सी मिलाने को मजबूर हो गए। स्वामी अक्षयानंद महाराज के श्रीमुख से ऐसी अमृत वर्षा होती दिखी कि पूरा पंडाल ही भक्ति रस में ओतप्रोत सा दिखा।
नगर के विष्णुपुरी मोहल्ले में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में हरिद्वार से पधारे स्वामी अक्षयानंद महाराज ने कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए भागवत के प्रथम स्कंध में प्रवेश किया। स्वामी ने भागवत के स्वरूप को समझाते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत वेद रूपी कल्पवृक्ष का पका हुआ फल ही श्रीमद्भागवत है और भागवत श्रवण के लिए व्यासजी महाराज ने दो तरह के श्रोताओं को निमंत्रित किया है, रसिक और भावुक। उन्होंने यहां तक कहा कि जो भक्त एक दो बार कथा श्रवण करके तृप्ती का अनुभव कर लेते हैं, तो उनके लिए यह कहा जा सकता है कि वह कथा का अब तक असली मजा चख ही नहीं पाए।
कुंती स्तुति का प्रसंग सुनाकर भी उनके द्वारा भक्तों को भाव विभोर कर दिया गया। उन्होंने कहा कि कुंती ने भगवान से वरदान में दुख मांगा और वास्तव में सुख से ज्यादा दुख की महिमा हमारे संतों ने, वेदों ने, ग्रंथों ने गाई है। इसके लिए स्वामी अक्षयानंद ने परिक्षित जन्म, परिक्षित को श्राप से मुक्ति लगना एवं उनका एवं उनका शुक्रतालगमन, शुक्रदेव का परिक्षित को श्राप से मुक्ति के लिए उपदेश देने के लिए आना, परिक्षित के अनेकानेक प्रश्नों का उत्तर देना तथा विदुर चरित्र सुनाते हुए निश्चल प्रेम की महिमा बताई।
उन्होंने भक्तों से कहा कि हमारा धन, हमारी संपत्ति कुछ नहीं चाहिए, अगर उन्हें कुछ समर्पित करना चाहते हैं तो निस्वार्थ प्रेम, समर्पित करो, भगवान भाव के भूखे हैं। इस मौके पर यजमान पवन मिश्रा, पीयूष मिश्रा, ईश्वर चंद्र मिश्रा एडवोकेट, रामा, जागेश्वरी त्रिवेदी आदि मौजूद थे।
हरदोई। दुखों से अगर चोट खाई न होती तो तुम्हारी प्रभू याद आई न होती...। इन जैसी भावपूर्ण पंक्तियों को सुनकर जहां कई भक्त परमपिता परमेश्वर में लीन से हो गए, तो कई इन पंक्तियों के भावार्थ समझ कर हामी सी मिलाने को मजबूर हो गए। स्वामी अक्षयानंद महाराज के श्रीमुख से ऐसी अमृत वर्षा होती दिखी कि पूरा पंडाल ही भक्ति रस में ओतप्रोत सा दिखा।
नगर के विष्णुपुरी मोहल्ले में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में हरिद्वार से पधारे स्वामी अक्षयानंद महाराज ने कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए भागवत के प्रथम स्कंध में प्रवेश किया। स्वामी ने भागवत के स्वरूप को समझाते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत वेद रूपी कल्पवृक्ष का पका हुआ फल ही श्रीमद्भागवत है और भागवत श्रवण के लिए व्यासजी महाराज ने दो तरह के श्रोताओं को निमंत्रित किया है, रसिक और भावुक। उन्होंने यहां तक कहा कि जो भक्त एक दो बार कथा श्रवण करके तृप्ती का अनुभव कर लेते हैं, तो उनके लिए यह कहा जा सकता है कि वह कथा का अब तक असली मजा चख ही नहीं पाए।
कुंती स्तुति का प्रसंग सुनाकर भी उनके द्वारा भक्तों को भाव विभोर कर दिया गया। उन्होंने कहा कि कुंती ने भगवान से वरदान में दुख मांगा और वास्तव में सुख से ज्यादा दुख की महिमा हमारे संतों ने, वेदों ने, ग्रंथों ने गाई है। इसके लिए स्वामी अक्षयानंद ने परिक्षित जन्म, परिक्षित को श्राप से मुक्ति लगना एवं उनका एवं उनका शुक्रतालगमन, शुक्रदेव का परिक्षित को श्राप से मुक्ति के लिए उपदेश देने के लिए आना, परिक्षित के अनेकानेक प्रश्नों का उत्तर देना तथा विदुर चरित्र सुनाते हुए निश्चल प्रेम की महिमा बताई।
उन्होंने भक्तों से कहा कि हमारा धन, हमारी संपत्ति कुछ नहीं चाहिए, अगर उन्हें कुछ समर्पित करना चाहते हैं तो निस्वार्थ प्रेम, समर्पित करो, भगवान भाव के भूखे हैं। इस मौके पर यजमान पवन मिश्रा, पीयूष मिश्रा, ईश्वर चंद्र मिश्रा एडवोकेट, रामा, जागेश्वरी त्रिवेदी आदि मौजूद थे।