गोरखपुर। रमजान के पहले जुमे पर शहर की छोटी-बड़ी सभी मस्जिदें नमाजियों से पूरी तरह भरी रहीं। दोपहर 12.25 से नमाज पढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ जो दोपहर ढाई बजे तक चलता रहा। भीड़ का आलम यह था देर से पहुंचने वाले बहुत से नमाजियों को मस्जिदों के अंदर जगह ही नहीं मिली। जुमे की नमाज से आधे घंटे पहले ही शहर की लगभग सभी मस्जिदें नमाजियों से भर गई थीं। सुबह से ही बड़ी संख्या में रोजेदार नमाज अदा करने की तैयारी में लगे हुए थे। शहर के जामा मस्जिद घंटाघर, हकीम साहब की मस्जिद, जामा मस्जिद गोरखनाथ, जामा मस्जिद रसूलपुर, मदीना मस्जिद, मस्जिद अस्करगंज, शिया जामा मस्जिद , संगी मस्जिद , दरगाह मुबारक खां शहीद में नमाजियों का हुजूम दिखा। नमाज से पहले पेश इमाम ने अपने तकरीर में रोजा और रमजान की फजीलत के बारे में बताया और मुसलमानों को रोजा का असल मकसद समझने की ताकीद की। नमाज बाद सामूहिक दुआ में मुसलमानों की बेहतरी, उनकी हिफाजत, मुल्क की खुशहाली, दुनिया में अमन और गरीबों एवं बेसहारों की बेहतरी के लिए दुआ मांगी गई। इस बीच मस्जिदों के बाहर बैठे फकीरों को नमाजियों ने देने में कंजूसी नहीं दिखाई। जामा मस्जिद घंटाघर के पेश इमाम मौलाना अब्दुल जलील मजाहिरी ने फरमाया कि इस महीने रोजे का सवाब अल्लाह खुद देता है। इन्होंने कहा कि हदीस में जिक्र है कि इस महीने के एक रोजा छोड़ने के बदले अगर सारी उमर रोजा रखा जाए तो भी बराबरी नहीं हो सकती। सच्चे मोमिन के लिए यह जरूरी है कि वह अपने दिल में अल्लाह तआला की मोहब्बत हमेशा रखे और और इसे अमल के जरिए भी साबित करे। उन्होंने कहा कि हमें इससे कभी अपने को दूर नहीं रखना चाहिए क्योंकि यही ईमान की सही बुनियाद है। जब बुनियाद ही सही नहीं होगी तो भला उस पर ईमान का महल कैसे मजबूती से तैयार हो सकता है। अस्करगंज मस्जिद के पेश इमाम मुफ्ती वलीउल्लाह ने कहा कि रमजान में सिर्फ इबादत करना, झूट से बचना तथा बुराई की ओर नजर डालना ही नहीं बताया गया है बल्कि बंदों को सारी जिंदगी इस पर अमल करने की सीख दी गई है। तभी हम अल्लाह और उसके रसूल के महबूब बंदे कहलाएंगे।
गोरखपुर। रमजान के पहले जुमे पर शहर की छोटी-बड़ी सभी मस्जिदें नमाजियों से पूरी तरह भरी रहीं। दोपहर 12.25 से नमाज पढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ जो दोपहर ढाई बजे तक चलता रहा। भीड़ का आलम यह था देर से पहुंचने वाले बहुत से नमाजियों को मस्जिदों के अंदर जगह ही नहीं मिली।
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जुमे की नमाज से आधे घंटे पहले ही शहर की लगभग सभी मस्जिदें नमाजियों से भर गई थीं। सुबह से ही बड़ी संख्या में रोजेदार नमाज अदा करने की तैयारी में लगे हुए थे। शहर के जामा मस्जिद घंटाघर, हकीम साहब की मस्जिद, जामा मस्जिद गोरखनाथ, जामा मस्जिद रसूलपुर, मदीना मस्जिद, मस्जिद अस्करगंज, शिया जामा मस्जिद , संगी मस्जिद , दरगाह मुबारक खां शहीद में नमाजियों का हुजूम दिखा। नमाज से पहले पेश इमाम ने अपने तकरीर में रोजा और रमजान की फजीलत के बारे में बताया और मुसलमानों को रोजा का असल मकसद समझने की ताकीद की। नमाज बाद सामूहिक दुआ में मुसलमानों की बेहतरी, उनकी हिफाजत, मुल्क की खुशहाली, दुनिया में अमन और गरीबों एवं बेसहारों की बेहतरी के लिए दुआ मांगी गई। इस बीच मस्जिदों के बाहर बैठे फकीरों को नमाजियों ने देने में कंजूसी नहीं दिखाई।
जामा मस्जिद घंटाघर के पेश इमाम मौलाना अब्दुल जलील मजाहिरी ने फरमाया कि इस महीने रोजे का सवाब अल्लाह खुद देता है। इन्होंने कहा कि हदीस में जिक्र है कि इस महीने के एक रोजा छोड़ने के बदले अगर सारी उमर रोजा रखा जाए तो भी बराबरी नहीं हो सकती। सच्चे मोमिन के लिए यह जरूरी है कि वह अपने दिल में अल्लाह तआला की मोहब्बत हमेशा रखे और और इसे अमल के जरिए भी साबित करे। उन्होंने कहा कि हमें इससे कभी अपने को दूर नहीं रखना चाहिए क्योंकि यही ईमान की सही बुनियाद है। जब बुनियाद ही सही नहीं होगी तो भला उस पर ईमान का महल कैसे मजबूती से तैयार हो सकता है। अस्करगंज मस्जिद के पेश इमाम मुफ्ती वलीउल्लाह ने कहा कि रमजान में सिर्फ इबादत करना, झूट से बचना तथा बुराई की ओर नजर डालना ही नहीं बताया गया है बल्कि बंदों को सारी जिंदगी इस पर अमल करने की सीख दी गई है। तभी हम अल्लाह और उसके रसूल के महबूब बंदे कहलाएंगे।
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