नंदगंज। स्वतंत्रता की लड़ाई में इस क्षेत्र के वीर सपूतों का नाम भी बड़ी अदब के साथ लिया जाता है। अंग्रेजों के अंधाधुंध फायरिंग में इस धरती के 100 से अधिक क्रांतिकारी शहीद हुए तथा हजारों घायल हुए। लेकिन सर्वाधिक दुखद तो ये है कि आज तक इन शहीदों के सम्मान में एक स्मारक तक नहीं बना सका है।
अगस्त क्रांति का ऐलान होने के बाद नंदगंज की धरती के सपूतों का खून भी जोश मारने लगा। समाजसेवी भोला सिंह के नेतृत्व में नैसारा के पहलवान रामधारी यादव समेत हजारों लोग भारत माता की जय का उद्घोष करते हुए 18 अगस्त को नंदगंज थाने पर तिरंगा फहराने पहुंच गए। लेकिन इसी बीच वहां के थानाध्यक्ष विजयशंकर पांडेय ने होशियारी दिखाई और स्टेशन पर खड़ी मालगाड़ी की ओर इशारा करते हुए क्रांतिकारियों को उसे लूट को प्रेरित कर दिया। जोश से भरी भीड़ थानाध्यक्ष की इस चाल में फंस गई और मालगाड़ी की ओर बढ़ गई। इधर मैनपुर से श्याम नारायण सिंह, करंडा से बचाई सिंह और बलुआ से राम परीक्षा सिंह आदि भी टोलियां लेकर वहां पहुंच गए। बेलासी के डोमा लोहार ने हथौड़े एवं छेनी से मालगाड़ी के सभी 52 डिब्बों के ताले तोड़ डाले और उनमें लूटपाट शुरू कर दी गई। स्टेशन से पूरब की तरफ तीन किलोमीटर पुलिया तोड़ दिया गया जिससे रेलमार्ग अवरुद्ध हो गया था। लेकिन उसे ठीक करते हुए अंग्रेज भी वहां पहुंच गए। उधर थानाध्यक्ष ने पूरे वाकये की सूचना तत्कालीन डीएम तथा एसपी को दे दी। ऐसे में मौके पर अंग्रेजों की फोर्स पहुंच गई और गोलीबारी होने लगी। दर्जनों लोगों को पुलिस ने कतार में खड़ा करके गोलियों से भून डाला।
उल्लेखनीय है कि नंदगंज गोलीकांड के संबंध में 80 लोगों के शहीद होने की पुष्टि भारत छोड़ो आंदोलन के स्वर्ण जयंती के अवसर पर मुंबई दूरदर्शन ने भी किया था। आजादी की जंग में इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी यह स्थान अब तक उपेक्षित पड़ा है। शहीदों की याद में यहां एक इंटर कालेज की स्थापना भर की गई है। हर साल यहां एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कर वीर शहीदों को याद कर लिया जाता है।
नंदगंज। स्वतंत्रता की लड़ाई में इस क्षेत्र के वीर सपूतों का नाम भी बड़ी अदब के साथ लिया जाता है। अंग्रेजों के अंधाधुंध फायरिंग में इस धरती के 100 से अधिक क्रांतिकारी शहीद हुए तथा हजारों घायल हुए। लेकिन सर्वाधिक दुखद तो ये है कि आज तक इन शहीदों के सम्मान में एक स्मारक तक नहीं बना सका है।
अगस्त क्रांति का ऐलान होने के बाद नंदगंज की धरती के सपूतों का खून भी जोश मारने लगा। समाजसेवी भोला सिंह के नेतृत्व में नैसारा के पहलवान रामधारी यादव समेत हजारों लोग भारत माता की जय का उद्घोष करते हुए 18 अगस्त को नंदगंज थाने पर तिरंगा फहराने पहुंच गए। लेकिन इसी बीच वहां के थानाध्यक्ष विजयशंकर पांडेय ने होशियारी दिखाई और स्टेशन पर खड़ी मालगाड़ी की ओर इशारा करते हुए क्रांतिकारियों को उसे लूट को प्रेरित कर दिया। जोश से भरी भीड़ थानाध्यक्ष की इस चाल में फंस गई और मालगाड़ी की ओर बढ़ गई। इधर मैनपुर से श्याम नारायण सिंह, करंडा से बचाई सिंह और बलुआ से राम परीक्षा सिंह आदि भी टोलियां लेकर वहां पहुंच गए। बेलासी के डोमा लोहार ने हथौड़े एवं छेनी से मालगाड़ी के सभी 52 डिब्बों के ताले तोड़ डाले और उनमें लूटपाट शुरू कर दी गई। स्टेशन से पूरब की तरफ तीन किलोमीटर पुलिया तोड़ दिया गया जिससे रेलमार्ग अवरुद्ध हो गया था। लेकिन उसे ठीक करते हुए अंग्रेज भी वहां पहुंच गए। उधर थानाध्यक्ष ने पूरे वाकये की सूचना तत्कालीन डीएम तथा एसपी को दे दी। ऐसे में मौके पर अंग्रेजों की फोर्स पहुंच गई और गोलीबारी होने लगी। दर्जनों लोगों को पुलिस ने कतार में खड़ा करके गोलियों से भून डाला।
उल्लेखनीय है कि नंदगंज गोलीकांड के संबंध में 80 लोगों के शहीद होने की पुष्टि भारत छोड़ो आंदोलन के स्वर्ण जयंती के अवसर पर मुंबई दूरदर्शन ने भी किया था। आजादी की जंग में इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी यह स्थान अब तक उपेक्षित पड़ा है। शहीदों की याद में यहां एक इंटर कालेज की स्थापना भर की गई है। हर साल यहां एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कर वीर शहीदों को याद कर लिया जाता है।