मुहम्मदाबाद। सेमरा शिवराय का पुरा में घर उजाड़ने में बड़ों के साथ बच्चे भी लग गए हैं। गांव के प्राथमिक एवं जूनियर हाईस्कूल में राहत शिविर बना कर विस्थापितों को ठहराने से बच्चों की पढ़ाई बंद है। जुलाई का महीना शुरूहोने से जहां अन्य गांव के बच्चे बस्ता लेकर पढ़ने जा रहे हैं। वहीं कटान पीड़ित परिवार के बच्चे स्कूल जाने के बजाए अपने सिर पर घर गृहस्थी का सामान ढोने को मजबूर हैं।
बहुत छोटे छोटे बच्चे जो सिर पर सामान ले जाने में असमर्थ है, वे तीन चार मिलकर साइकिल पर ईंट रख कर उसे ले जा रहे हैं। गांव का दृश्य काफी हृदय विदारक हो गया है। लोग भरे मन से अपने आशियाने पर हथौड़ा चला रहे हैं। घर टूटने के साथ ही उनके भविष्य के सपने भी चकनाचूर हो रहे हैं। वे अपने बच्चों की पढ़ाई तथा लड़के लड़कियों की शादी को लेकर चिंतित हैं। बुजुर्ग उमाशंकर दूबे किसी के सामने फफक पड़ते हैं कि वह तीन बेटियों की शादी करें या घर बनाएं। जबकि उनके पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। प्रशासन से सहायता की गुहार लगा रहे हैं। घर तोड़ने के लिए बहुत से लोगों के पास मजदूरी नहीं है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करें, कहां जाए। कैसे उनका नया आशियाना बनेगा। उन्हें कोई बताने वाला नहीं है, आखिर गंगा के आक्रोश का शिकार इस गांव के लोगों का कसूर क्या है। इन्हें इस विपदा से कैसे बचाया जाएगा यह सभी के सामने यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है।
मुहम्मदाबाद। सेमरा शिवराय का पुरा में घर उजाड़ने में बड़ों के साथ बच्चे भी लग गए हैं। गांव के प्राथमिक एवं जूनियर हाईस्कूल में राहत शिविर बना कर विस्थापितों को ठहराने से बच्चों की पढ़ाई बंद है। जुलाई का महीना शुरूहोने से जहां अन्य गांव के बच्चे बस्ता लेकर पढ़ने जा रहे हैं। वहीं कटान पीड़ित परिवार के बच्चे स्कूल जाने के बजाए अपने सिर पर घर गृहस्थी का सामान ढोने को मजबूर हैं।
बहुत छोटे छोटे बच्चे जो सिर पर सामान ले जाने में असमर्थ है, वे तीन चार मिलकर साइकिल पर ईंट रख कर उसे ले जा रहे हैं। गांव का दृश्य काफी हृदय विदारक हो गया है। लोग भरे मन से अपने आशियाने पर हथौड़ा चला रहे हैं। घर टूटने के साथ ही उनके भविष्य के सपने भी चकनाचूर हो रहे हैं। वे अपने बच्चों की पढ़ाई तथा लड़के लड़कियों की शादी को लेकर चिंतित हैं। बुजुर्ग उमाशंकर दूबे किसी के सामने फफक पड़ते हैं कि वह तीन बेटियों की शादी करें या घर बनाएं। जबकि उनके पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। प्रशासन से सहायता की गुहार लगा रहे हैं। घर तोड़ने के लिए बहुत से लोगों के पास मजदूरी नहीं है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करें, कहां जाए। कैसे उनका नया आशियाना बनेगा। उन्हें कोई बताने वाला नहीं है, आखिर गंगा के आक्रोश का शिकार इस गांव के लोगों का कसूर क्या है। इन्हें इस विपदा से कैसे बचाया जाएगा यह सभी के सामने यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है।