गाजियाबाद। महानगर में कई खेल तेजी से बढ़ रहे हैं, मगर हाकी की हालत खराब है। ऐसा नहीं कि हाकी के खिलाड़ी शहर में नहीं हैं। खिलाड़ी हैं, मगर रोना तो इस बात का है कि खेलें तो खेलें कहां। पूरे महानगर में एक ऐसा मैदान नहीं है जहां हाकी खिलाड़ियों को सही ट्रेनिंग देकर उन्हें स्टेट या फिर नेशनल लेवल का खिलाड़ी बनाया जा सके। आज जहां एस्ट्रोटर्फ पर हाकी खेली जा रही है, वहीं, महानगर के खिलाड़ी उबड़-खाबड़ और गड्ढों से भरे मैदान पर हाकी खेलने को मजबूर हैं। जिला हाकी संघ भी इस बात को मानता है।
वहीं, दूसरी तरफ स्कूलों में कैंप लगाकर बच्चों को हाकी के टिप्स दिए जा रहे हैं। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि यह टिप्स खिलाड़ियों के कितने काम के हैं? बिना एस्ट्रोटर्फ और दूसरी सुविधाओं के खिलाड़ी अपनी हाकी को कितना आगे ले जा पाएंगे। ऐसे में सिर्फ बातों से काम नहीं चलने वाला, खिलाड़ियों के लिए पुख्ता इंतजाम करने होंगे।
हाकी खेलने के लिए महानगर में दो प्रमुख स्टेडियम हैं। एक महामाया स्टेडियम और दूसरा शास्त्रीनगर स्थित लाल बहादुर शास्त्री हाकी स्टेडियम। दोनों ही स्टेडियम में हाकी की स्थिति खस्ताहाल है। महामाया स्टेडियम में हाकी कोच नियुक्त है और 50 से ज्यादा खिलाड़ी भी हैं, लेकिन एस्ट्रोटर्फ न होने से उन्हें स्तरीय ट्रेनिंग नहीं मिल पा रही है। वहीं, लाल बहादुर शास्त्री हाकी स्टेडियम सिर्फ कहने को हाकी स्टेडियम है। पिछले लगभग 35 वर्ष से इस स्टेडियम में न तो पानी की व्यवस्था हो पाई है और न ही शौचालय की। आलम यह है कि यह स्टेडियम कम और कालोनी का पार्क ज्यादा जान पड़ता है। पार्क में लोग सुबह शाम वॉक करने पहुंचते हैं। हाकी संघ के सचिव राम अवतार त्यागी का कहना है कि अव्यवस्थाओं के कारण आज तक इस स्टेडियम में एक भी मैच नहीं खेला गया। ऐसे में महानगर के कई खिलाड़ियों को एस्ट्रोटर्फ की ट्रेनिंग के लिए दिल्ली का रुख करना पड़ता है। हालांकि ऐसे में भी विशाल ठाकुर और केशव त्यागी इस वर्ष नेशनल स्तर तक अपना प्रदर्शन कर सके हैं।