फर्रुखाबाद। चुनाव प्रचार सामग्री के उपयोग पर आयोग की लगाम लगने से छपाई कारोबार पर पावर ब्रेक लग गया है। छपाई व्यापार करने वाले लोगों को यह नहीं सूझ रहा कि वे धंधे की इस मंदी से कैसे उबरें। तो छोटे स्तर पर धंधा करने वाले पेंटर भी अब कोई और रोजगार की तलाश करने लगे हैं। व्यापारियों और पेंटरों का कहना है कि चुनाव अब उन्हें खुशी नहीं तनाव देने लगा है।
मालूम हो कि राज्य निर्वाचन आयोग के नियमों के अनुसार चुनावी सामग्री जैसे, होर्डिंग्स, कट आउट, पम्पलेट, स्टीकर, बैनर तथा विजटिंग कार्ड आदि पर प्रिंटर का नाम या फर्म और मोबाइल नंबर जरूर होना चाहिए। प्रत्याशियों की खर्च सीमा पर लगाम के तहत व्यय की सच्चाई का पता लगाने के लिए आयोग ने यह नियम बनाए हैं। इस नियम के चलते प्रत्याशी भी अब चुनाव प्रचार सामग्री बनवाने से कतराने लगे हैं। इसीलिए प्रत्याशियों ने प्रचार सामग्री की मात्रा काफी कम कर दी है। पूर्व में हुए विधानसभा चुनाव की तरह निकाय चुनाव में भी परिस्थिति लगभग एक जैसी है। केवल हैंडविल, पोस्टर और स्टीकर ही छपवाकर प्रत्याशी अपना काम चला रहे हैं। प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह भी मिलने में लगभग दस दिन हैं। ऐसे मे कोई अभी प्रचार सामग्री भरपूर नहीं छपवा रहा है।
धंधे की इस मंदी पर फतेहगढ़ के सायवर प्रिंटर्स के प्रोपराइटर मनीष अग्रवाल कहते हैं कि धंधे में लगभग 75 फीसदी की गिरावट आ गई है। पहले चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही पानी पीने की फुर्सत नहीं मिलती थी, काम ज्यादा होने के कारण रात को सो भी नहीं पाते थे लेकिन अब ग्राहक के आने की घंटों प्रतीक्षा करनी पड़ रही है। फर्रुखाबाद स्थित नियाती प्रिंटर्स के प्रोपराइटर अरविंद पांडे ने बताया कि चुनाव में कमाई करना तो अब सपने सरीखा हो गया है। बताया कि पहले की अपेक्षा अब तीस से चालीस फीसदी काम ही मिल रहा है। वहीं सड़क पर पेंटिंग की दुकान करने वाले फर्रुखाबाद के पेंटर जमील ने कहा कि विधानसभा चुनाव में काम नही मिला था वही हाल इस बार भी है। बताया कि चुनाव का ही पांच साल तक इंतजार रहता था जिसमें अच्छी कमाई होती थी। अब लग रहा है कि धंधा बदलकर कोई अन्य रोजगार कर लेना चाहिए।