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फर्रुखाबाद। गंगा की चमकीली धवल रेत पर आस्था की चादर बिछी गई है। गंगा की भक्ति में डुबकी लगाने के लिए भक्त आतुर दिखते हैं। दूर-दूर तक पतेल की झोपड़ी। झोपड़ियों पर लहराती पताका। झोपड़ियों में गूंजते मंत्र और अलग-बगल चल रहा कीर्तन। बीच-बीच में गंगा मां के जयकारे। आंखों में ज्यादा से ज्यादा पुण्य हासिल करने की लालसा। जिसे भी देखो, उसके कदम गंगा तट की ओर बढ़ते जा रहे हैं। जहां तमाम बुजुर्ग कल्पवास के लिए पहुंच रहे हैं, वहीं उनके परिजन उन्हें कल्पवास की विदाई देने भी आए हैं। विदाई के वक्त कोई खुश है कि चलो पुण्य प्राप्त करने का मौका उसे भी मिला तो कई लोग परिजनों को गंगा तट पर छोड़कर जाते समय सुबकते भी दिखे। कुछ ऐसे ही नजारों के साथ शुरू हुआ मेला रामनगरिया।
रामनगरिया मेले में कल्पवास के लिए जुटे सैकड़ों लोगों में गजब की आस्था है। वे इस आस्था के दम पर पूर्व में किए गए गुनाहों का प्रायश्चित करना चाहते हैं तो उनमें ज्यादा से ज्यादा पुण्य हासिल करने की ललक भी है। उन्हें विश्वास है कि गंगा की रेती में माहभर तक कल्पवास उनके जीवन को धन्य कर देगा। यही वजह है कि गंगा की रेत पर दूर-दूर कर पतेल की झोपड़ी उग आई हैं। इन झोपड़ियों में नाम मात्र का बिस्तर है और सोने के लिए सर्द रेत। तमाम कल्पवासियों का कहना है कि यहां न तो सर्दी असर करेगी और न ही धूप। क्योंकि गंगा की महिमा ही निराली है। गंगा मां की गोद में 30 दिन तक रातदिन बिताना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन जैसा लगता है, लेकिन कल्पवासी इस नामुमकिन को मुमकिन में बदलने को तैयार हैं। वे कहते हैं कि यहां चलने वाली आस्था की लहरें सर्दी के मिजाज को कमजोर कर देती हैं। दिन रात भजन और कीर्तन में ही बीतेगा।
कल्पवासियों में कुछ लोग तो पहली बार आए हैं तो तमाम ऐसे भी लोग हैं, जो चौथी, पांचवी बार कल्पवास में धूनी जमाने पहुंचे हैं। पीलीभीत के बारखेरा निवासी धन्ना राम कहते हैं कि गंगा मइया की इच्छा पर चार बार से कल्पवास कर रहा हूं। मां की इच्छा होगी तो अगली बार भी आऊंगा। शाहजहांपुर से आए बजरंगी सिंह का भी गंगा में अटूट आस्था है। वह कहते हैं कि तीन साल पहले वह कल्पवास करने आए। दूसरे दिन ही उन्हें खुशखबरी मिली। लेकिन वह पूरे माह कल्पवास करने के बाद वापस लौटे। दंडी संप्रदाय के संत विवेकाधर कहते हैं कि माघ मास में यहां कल्पवास की परंपरा काफी पुरानी है। गंगा तट पर कल्पवास करने से सारे पाप धुल जाते हैं।
फर्रुखाबाद। गंगा की चमकीली धवल रेत पर आस्था की चादर बिछी गई है। गंगा की भक्ति में डुबकी लगाने के लिए भक्त आतुर दिखते हैं। दूर-दूर तक पतेल की झोपड़ी। झोपड़ियों पर लहराती पताका। झोपड़ियों में गूंजते मंत्र और अलग-बगल चल रहा कीर्तन। बीच-बीच में गंगा मां के जयकारे। आंखों में ज्यादा से ज्यादा पुण्य हासिल करने की लालसा। जिसे भी देखो, उसके कदम गंगा तट की ओर बढ़ते जा रहे हैं। जहां तमाम बुजुर्ग कल्पवास के लिए पहुंच रहे हैं, वहीं उनके परिजन उन्हें कल्पवास की विदाई देने भी आए हैं। विदाई के वक्त कोई खुश है कि चलो पुण्य प्राप्त करने का मौका उसे भी मिला तो कई लोग परिजनों को गंगा तट पर छोड़कर जाते समय सुबकते भी दिखे। कुछ ऐसे ही नजारों के साथ शुरू हुआ मेला रामनगरिया।
रामनगरिया मेले में कल्पवास के लिए जुटे सैकड़ों लोगों में गजब की आस्था है। वे इस आस्था के दम पर पूर्व में किए गए गुनाहों का प्रायश्चित करना चाहते हैं तो उनमें ज्यादा से ज्यादा पुण्य हासिल करने की ललक भी है। उन्हें विश्वास है कि गंगा की रेती में माहभर तक कल्पवास उनके जीवन को धन्य कर देगा। यही वजह है कि गंगा की रेत पर दूर-दूर कर पतेल की झोपड़ी उग आई हैं। इन झोपड़ियों में नाम मात्र का बिस्तर है और सोने के लिए सर्द रेत। तमाम कल्पवासियों का कहना है कि यहां न तो सर्दी असर करेगी और न ही धूप। क्योंकि गंगा की महिमा ही निराली है। गंगा मां की गोद में 30 दिन तक रातदिन बिताना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन जैसा लगता है, लेकिन कल्पवासी इस नामुमकिन को मुमकिन में बदलने को तैयार हैं। वे कहते हैं कि यहां चलने वाली आस्था की लहरें सर्दी के मिजाज को कमजोर कर देती हैं। दिन रात भजन और कीर्तन में ही बीतेगा।
कल्पवासियों में कुछ लोग तो पहली बार आए हैं तो तमाम ऐसे भी लोग हैं, जो चौथी, पांचवी बार कल्पवास में धूनी जमाने पहुंचे हैं। पीलीभीत के बारखेरा निवासी धन्ना राम कहते हैं कि गंगा मइया की इच्छा पर चार बार से कल्पवास कर रहा हूं। मां की इच्छा होगी तो अगली बार भी आऊंगा। शाहजहांपुर से आए बजरंगी सिंह का भी गंगा में अटूट आस्था है। वह कहते हैं कि तीन साल पहले वह कल्पवास करने आए। दूसरे दिन ही उन्हें खुशखबरी मिली। लेकिन वह पूरे माह कल्पवास करने के बाद वापस लौटे। दंडी संप्रदाय के संत विवेकाधर कहते हैं कि माघ मास में यहां कल्पवास की परंपरा काफी पुरानी है। गंगा तट पर कल्पवास करने से सारे पाप धुल जाते हैं।