महेवा(इटावा)। बाबा जयगुरुदेव के निधन पर उनक ा पैतृक ग्राम शोक में डूब गया। अधिकांश लोग तो मथुरा निकल गए। गांव में मौजूद कुछ परिजन भी मथुरा जाने की तैयारी में थे। उनकी इच्छा थी कि बाबा जयगुरुदेव की समाधि उनके पैतृक गांव खितौरा में ही हो।
116 वर्ष की आयु पूरी कर चुके बाबा जयगुरुदेव का निधन शुक्रवार की रात को 9.55 बजे हो गया। इसकी सूचना जैसे ही उनके पैतृक गांव खितौरा में पहुंची तो पूरा गांव शोक में डूब गया। सुबह होते ही उनके अंतिम दर्शनों के लिए मथुरा रवाना हो गए। उनके ट्रस्ट द्वारा निर्माणाधीन मंदिर के मुख्य व्यवस्थापक सुनील यादव, देखरेखकर्ता राजेंद्र तथा मुनीम श्यामस्वरूप भी रवाना हुए।
गांव में उनके परिवारी जनों में भतीजे सोबरनसिंह, रामशंकर, सुखराम, श्रीकृष्ण, बदनसिह, एबरनसिंह आदि मिले जो मथुरा जाने की तैयारी कर रहे थे। मंदिर पर आधा दर्जन के करीब सेवादार मौजूद थे। इनमें पांच वर्ष से बाबा की सेवा में लगे ऊमड़सेंडा के जयराम तथा 25 वर्ष से सेवा में लगे याकूबपुर के नंदकिशोर सहित सभी परिजनों की इच्छा थी कि उनकी समाधि पैतृक गांव में ही बने। जानकारी पर पहुंचे उनके शिष्य पूर्व उप ब्लाक प्रमुख महेंद्र सिंह यादव उर्फ बड़े का भी कहना रहा कि समाधि गांव में ही बने।
बाबा जयगुरुदेव का जीवन परिचय
बाबा जयगुरुदेव का बचपन का नाम तुलसी था। अपने पिता रामसिंह की वह आठवीं संतान थे। पंचायत के रिकार्ड के अनुसार उनका जन्म 1896 में हुआ था। भाइयों में बलवंत सिंह, देवजीत सिंह, बालभ्यासी, द्वारिकाप्रसाद, उजागर सिंह, दुर्गाप्रसाद, महेंद्र सिंह थे। इनमें से बलवंत सिंह व तुलसीदास की शादी नहीं हुई थी। इनके माता पिता का निधन इनके जन्म के 5-6 माह बाद ही हो गया था। खितौरा में ही रहने वाली बुआ ने इनका पालन पोषण किया था। भतीजे सोवरन सिंह बताते हैं कि जब बाबा 11 वर्ष के थे तब बुआ को स्वपभन आया जिसमें कहा कि तुलसीदास की शादी नहीं करना। यह बड़े संत बनेंगे। उसी समय से तुलसीदास ने संयासी जीवन अपना लिया। बाबा जयगुरुदेव 6 मई को बीमार हुए थे। 16 मई को उन्होंने अंतिम बार अपने सेवकों को संबोधित किया और मथुरा चलने को कहा। 18 मई को मथुरा आए और रात में उनका निधन हो गया।
मथुरा में होगी समाधि
बाबा जयगुरुदेव की समाधि मथुरा में ही सोमवार को 4 बजे होगी। यह जानकारी खितौरा मंदिर के व्यवस्थापक सुनील यादव ने फोन पर दी।
महेवा(इटावा)। बाबा जयगुरुदेव के निधन पर उनक ा पैतृक ग्राम शोक में डूब गया। अधिकांश लोग तो मथुरा निकल गए। गांव में मौजूद कुछ परिजन भी मथुरा जाने की तैयारी में थे। उनकी इच्छा थी कि बाबा जयगुरुदेव की समाधि उनके पैतृक गांव खितौरा में ही हो।
116 वर्ष की आयु पूरी कर चुके बाबा जयगुरुदेव का निधन शुक्रवार की रात को 9.55 बजे हो गया। इसकी सूचना जैसे ही उनके पैतृक गांव खितौरा में पहुंची तो पूरा गांव शोक में डूब गया। सुबह होते ही उनके अंतिम दर्शनों के लिए मथुरा रवाना हो गए। उनके ट्रस्ट द्वारा निर्माणाधीन मंदिर के मुख्य व्यवस्थापक सुनील यादव, देखरेखकर्ता राजेंद्र तथा मुनीम श्यामस्वरूप भी रवाना हुए।
गांव में उनके परिवारी जनों में भतीजे सोबरनसिंह, रामशंकर, सुखराम, श्रीकृष्ण, बदनसिह, एबरनसिंह आदि मिले जो मथुरा जाने की तैयारी कर रहे थे। मंदिर पर आधा दर्जन के करीब सेवादार मौजूद थे। इनमें पांच वर्ष से बाबा की सेवा में लगे ऊमड़सेंडा के जयराम तथा 25 वर्ष से सेवा में लगे याकूबपुर के नंदकिशोर सहित सभी परिजनों की इच्छा थी कि उनकी समाधि पैतृक गांव में ही बने। जानकारी पर पहुंचे उनके शिष्य पूर्व उप ब्लाक प्रमुख महेंद्र सिंह यादव उर्फ बड़े का भी कहना रहा कि समाधि गांव में ही बने।
बाबा जयगुरुदेव का जीवन परिचय
बाबा जयगुरुदेव का बचपन का नाम तुलसी था। अपने पिता रामसिंह की वह आठवीं संतान थे। पंचायत के रिकार्ड के अनुसार उनका जन्म 1896 में हुआ था। भाइयों में बलवंत सिंह, देवजीत सिंह, बालभ्यासी, द्वारिकाप्रसाद, उजागर सिंह, दुर्गाप्रसाद, महेंद्र सिंह थे। इनमें से बलवंत सिंह व तुलसीदास की शादी नहीं हुई थी। इनके माता पिता का निधन इनके जन्म के 5-6 माह बाद ही हो गया था। खितौरा में ही रहने वाली बुआ ने इनका पालन पोषण किया था। भतीजे सोवरन सिंह बताते हैं कि जब बाबा 11 वर्ष के थे तब बुआ को स्वपभन आया जिसमें कहा कि तुलसीदास की शादी नहीं करना। यह बड़े संत बनेंगे। उसी समय से तुलसीदास ने संयासी जीवन अपना लिया। बाबा जयगुरुदेव 6 मई को बीमार हुए थे। 16 मई को उन्होंने अंतिम बार अपने सेवकों को संबोधित किया और मथुरा चलने को कहा। 18 मई को मथुरा आए और रात में उनका निधन हो गया।
मथुरा में होगी समाधि
बाबा जयगुरुदेव की समाधि मथुरा में ही सोमवार को 4 बजे होगी। यह जानकारी खितौरा मंदिर के व्यवस्थापक सुनील यादव ने फोन पर दी।