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ईमानदारी की मिसाल पूर्व विधायक भगौती प्रसाद की जिंदगी मुफलिसी व अभावों के बवंडर झेलते कटी पर मौत के बाद उनकी चिता को भी पर्याप्त लकड़ियां नसीब नहीं हो सकीं।
बेटों ने सड़क किनारे लगे ठूंठ काटकर तैयार की गई आधी-अधूरी चिता में भगौती प्रसाद पंचतत्व में विलीन हुए। जिला प्रशासन ने भी इस कदर कोताही बरती कि अंतिम संस्कार के एक घंटे बाद नायब तहसीलदार पूर्व विधायक के घर पहुंचे।
ब्यौरा नोट किया और चलते बने। जिला प्रशासन ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर देना भी मुनासिब नहीं समझा।
उत्तर प्रदेश विधानसभा में वर्ष 1967 और 1969 में जनता के प्यार दुलार से धमक बनाने वाले भगौती प्रसाद ने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
संघर्षपूर्ण जिंदगी जीते हुए दूसरों के लिए मिसाल बने। मामूली पेंशन से गुजारा न होने पर उन्होंने चाय और चने बेचकर पेट की आग बुझाई। लेकिन, इसे समय की मार ही कहेंगे कि सात जुलाई रविवार को जिला अस्पताल में इलाज के लिए वह घंटों तड़पे।
मंगलवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका शव जब पैतृक गांव मदारा (इकौना) पहुंचा तो वहां भी श्रावस्ती जिला प्रशासन ने भी उपेक्षात्मक रवैया अपनाया।
बुधवार को पूर्व विधायक की चिता जलाने के लिए उनके बेटों के पास लकड़ी का इंतजाम नहीं था। ऐसे में मदारा-इकौना मार्ग पर सड़क किनारे पीडब्ल्यूडी के सूखे ठूंठ को काटकर तीन बोटा लकड़ी का इंतजाम जैसे-तैसे हुआ।
इसके अलावा चिता जलाने के लिए फूस का भी सहारा लिया गया। पूर्व विधायक के बड़े पुत्र राधेश्याम का कहना है कि उन्हें आशा थी कि उनके पिता के शव को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाएगा लेकिन जिला प्रशासन ने इसके लिए कोशिश नहीं की।
थानाध्यक्ष सिर्फ एक पुलिसकर्मी के साथ मौके पर पहुंचे थे। चिता से दूर खड़े रहे। चिता जलने के एक घंटे बाद नायब तहसीलदार पूर्व विधायक के घर पहुंचे।
पुत्रों से ब्यौरा पूछकर डायरी में लिखा और चलते बने। न किसी प्रकार की सहायता न सहानुभूति और न ही सम्मान परिवार को मिल सका।
ईमानदारी की मिसाल पूर्व विधायक भगौती प्रसाद की जिंदगी मुफलिसी व अभावों के बवंडर झेलते कटी पर मौत के बाद उनकी चिता को भी पर्याप्त लकड़ियां नसीब नहीं हो सकीं।
बेटों ने सड़क किनारे लगे ठूंठ काटकर तैयार की गई आधी-अधूरी चिता में भगौती प्रसाद पंचतत्व में विलीन हुए। जिला प्रशासन ने भी इस कदर कोताही बरती कि अंतिम संस्कार के एक घंटे बाद नायब तहसीलदार पूर्व विधायक के घर पहुंचे।
ब्यौरा नोट किया और चलते बने। जिला प्रशासन ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर देना भी मुनासिब नहीं समझा।
उत्तर प्रदेश विधानसभा में वर्ष 1967 और 1969 में जनता के प्यार दुलार से धमक बनाने वाले भगौती प्रसाद ने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
संघर्षपूर्ण जिंदगी जीते हुए दूसरों के लिए मिसाल बने। मामूली पेंशन से गुजारा न होने पर उन्होंने चाय और चने बेचकर पेट की आग बुझाई। लेकिन, इसे समय की मार ही कहेंगे कि सात जुलाई रविवार को जिला अस्पताल में इलाज के लिए वह घंटों तड़पे।
मंगलवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका शव जब पैतृक गांव मदारा (इकौना) पहुंचा तो वहां भी श्रावस्ती जिला प्रशासन ने भी उपेक्षात्मक रवैया अपनाया।
बुधवार को पूर्व विधायक की चिता जलाने के लिए उनके बेटों के पास लकड़ी का इंतजाम नहीं था। ऐसे में मदारा-इकौना मार्ग पर सड़क किनारे पीडब्ल्यूडी के सूखे ठूंठ को काटकर तीन बोटा लकड़ी का इंतजाम जैसे-तैसे हुआ।
इसके अलावा चिता जलाने के लिए फूस का भी सहारा लिया गया। पूर्व विधायक के बड़े पुत्र राधेश्याम का कहना है कि उन्हें आशा थी कि उनके पिता के शव को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाएगा लेकिन जिला प्रशासन ने इसके लिए कोशिश नहीं की।
थानाध्यक्ष सिर्फ एक पुलिसकर्मी के साथ मौके पर पहुंचे थे। चिता से दूर खड़े रहे। चिता जलने के एक घंटे बाद नायब तहसीलदार पूर्व विधायक के घर पहुंचे।
पुत्रों से ब्यौरा पूछकर डायरी में लिखा और चलते बने। न किसी प्रकार की सहायता न सहानुभूति और न ही सम्मान परिवार को मिल सका।