चित्रकूट। बैजनाथ भारद्वाज सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज का छात्र सोनू सिंह का चयन दिल्ली के हंसराज कालेज में बायोकेमिस्ट्री के शोध छात्र के रूप में हुआ है। सोनू ने पौधों के रसों से कीटनाशक बनाकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुका है।
सोनू सिंह के प्राकृतिक कीटनाशक को मप्र सरकार ने पेटेंट के तौर पर लिया है। सोनू ने बताया कि उसके मन में कीटनाशक बनाने की इच्छा हाईस्कूल के बाद जागी। उसने देखा था कि बुंदेलखंड में खासतौर पर चना, सरसों, मसूर के साथ गुलदाउदी के फूलों में छोटे-छोटे कीटों (लासी) का प्रकोप बहुत होता है। ये कीट पौधे का रस चूस लेते हैं और फल आने की संभावना खत्म हो जाती है। बताया कि उसने आक के पत्तों और नीम के गुल्लों को सुखाकर इनको पीसा और फिर सीरम निकाला इसके बाद पौधों में छिड़काव किया तो पाया कि ये हरे कीट लाल होकर मर जाते हैं। पौधों को साइड इफेक्ट से बचाने के लिए उसने इसमें निर्गुंडी पौधे के पत्तों का रस भी मिला दिया। उसने बताया कि उसके प्राकृतिक कीटनाशक को फूल आने के बाद भी पौधे पर छिड़का जा सकता है, जबकि आम तौर पर प्रचलित कीटनाशक इंडोसल्फान को फूल आने के बाद नहीं डाला जा सकता। सोनू अपने पिता बाबूपुर (पहाड़ी) निवासी राम किंकर सिंह और मां चुन्नी देवी और शिक्षकों के अलावा शुभम शुक्ल, पवन और प्रकाश को अपनी सफलता का श्रेय देता है।
चित्रकूट। बैजनाथ भारद्वाज सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज का छात्र सोनू सिंह का चयन दिल्ली के हंसराज कालेज में बायोकेमिस्ट्री के शोध छात्र के रूप में हुआ है। सोनू ने पौधों के रसों से कीटनाशक बनाकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुका है।
सोनू सिंह के प्राकृतिक कीटनाशक को मप्र सरकार ने पेटेंट के तौर पर लिया है। सोनू ने बताया कि उसके मन में कीटनाशक बनाने की इच्छा हाईस्कूल के बाद जागी। उसने देखा था कि बुंदेलखंड में खासतौर पर चना, सरसों, मसूर के साथ गुलदाउदी के फूलों में छोटे-छोटे कीटों (लासी) का प्रकोप बहुत होता है। ये कीट पौधे का रस चूस लेते हैं और फल आने की संभावना खत्म हो जाती है। बताया कि उसने आक के पत्तों और नीम के गुल्लों को सुखाकर इनको पीसा और फिर सीरम निकाला इसके बाद पौधों में छिड़काव किया तो पाया कि ये हरे कीट लाल होकर मर जाते हैं। पौधों को साइड इफेक्ट से बचाने के लिए उसने इसमें निर्गुंडी पौधे के पत्तों का रस भी मिला दिया। उसने बताया कि उसके प्राकृतिक कीटनाशक को फूल आने के बाद भी पौधे पर छिड़का जा सकता है, जबकि आम तौर पर प्रचलित कीटनाशक इंडोसल्फान को फूल आने के बाद नहीं डाला जा सकता। सोनू अपने पिता बाबूपुर (पहाड़ी) निवासी राम किंकर सिंह और मां चुन्नी देवी और शिक्षकों के अलावा शुभम शुक्ल, पवन और प्रकाश को अपनी सफलता का श्रेय देता है।