चित्रकूट। राजनीति में बड़े-बड़े ज्योतिषी गलत हो जाते हैं। पूर्वानुमान ध्वस्त हो जाते हैं। ये बातें अगर सही नहीं होतीं तो आज जिला पंचायत प्रांगण में होने वाला समारोह सपामय होता पर हर जगह बसपाइयों की खुशी साफ कर रही थी कि राजनीति में अनुमान कभी नहीं लगाने चाहिए। पूरे घटनाक्रम पर चलिए एक सरसरी नजर डाली जाए। 16 जुलाई को जिला पंचायत अध्यक्ष (बसपा) रमेश पटेल के खिलाफ 14 में से 10 सदस्यों ने अविश्वास प्रस्ताव अपर जिलाधिकारी केशव दास को सौंपा। इसके बाद 7 अगस्त को अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान में 10 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष और 4 सदस्यों ने विपक्ष में मतदान किया। 15 जनवरी को उपचुनाव के लिए सपा की ओर से ममता सिंह और बागी प्रत्याशी के रूप में शिवशंकर यादव ने पर्चा भरा। 21 जनवरी को सात-सात वोट दोनों को मिले और फिर पर्ची से शिवशंकर यादव विजयी घोषित किए गए। वीर सिंह की अगुवाई में जब 10 सदस्यों ने रमेश पटेल के खिलाफ मतदान किया था तो कोई दूर दूर तक सोच भी नहीं सकता था कि आज वीर सिंह के पाले में नजर आ रहे शिवशंकर यादव, शिवशंकर सिंह, अर्जुन शुक्ला कल उन्हीं रमेश पटेल के साथ एक नया खेमा बना लेंगे, जिसमें शिवशंकर यादव को प्रत्याशी बनाकर सपा के लिए मूंछ की लड़ाई की तैयारी होगी। पर होइहै सोई जो राम रचि राखा... की तर्ज पर ऐसा ही हुआ। कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षा और कुछ अनसोची और बिना बिचारे की गई गलतियों ने पासा इस तरह पलटा कि खेल बनने से पहले ही बिगड़ गया। वीर सिंह आज भी अपने चाचा बालकुमार और चचेरे भाई राम सिंह के साथ उस घड़ी को कोस रहे होंगे, जब उन्होंने यूपीटी में शिवशंकर सिंह के साथ बात की थी। अपहरण हुआ या नहीं, इस पर मैं नहीं जाना चाहता, क्योंकि वह जांच का विषय है। बसपा के ब्लाक प्रमुखों के पदच्युत होने, जिला पंचायत अध्यक्ष रमेश पटेल की कुर्सी छिनने के पूरे लंबे घटनाक्रम के बाद भी तत्कालीन ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद कहीं भी परिदृश्य में नजर नहीं आए। जबकि इनको सीट पर बैठाने में इनका काफी या कहा जाए तो पूरा योगदान और रणनीति इन्हीं की थी। उनकी अनुपस्थिति को लेकर कई तरह की बातें की गईं। शुक्रवार को बहुत लोगों के लिए अप्रत्याशित ही था कि दद्दू प्रसाद पूरे लावलश्कर के साथ वहां नजर आ रहे थे। शपथ ग्रहण के काफी पहले कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे दद्दू के चेहरे पर लंबी मुस्कराहट काफी कुछ कह रही थी। शपथ ग्रहण के बाद वह भी बोले। उन्होंने कहा कि विरोधी तरफ से धन की बौछार हो रही थी पर ये सातों लोग नहीं डिगे। उन्होंने शिवशंकर की बहादुरी की जमकर प्रशंसा की। अपनी आगामी रणनीति को लेकर बोले कि कुछ भ्रम के बादल मुझे लेकर खड़े किए गए थे, जो छंटने लगे हैं। मेरे अपने उसूल हैं। कार्यक्रम में बसपाइयों की भारी संख्या काफी कुछ आगत की बातें कह रही थी, क्योंकि राजनीति के मंच पर हर बात के अपने मायने होते हैं। रमेश पटेल के बारे में तमाम बातें वोटिंग वाले दिन कही सुनी गईं पर अगर वह इसके बाद भी शिवशंकर यादव के खेमे में नजर आए तो इसके भी मायने हैं। लंबे अरसे बाद दद्दू प्रसाद नजर आए, वह भी पूरी तैयारी के साथ तो इसके भी मायने हैं। मंच पर शिवशंकर के साथ दद्दू प्रसाद की कानाफूसी और गलबहियां हो रही थीं, तो इसके भी मायने हैं, पर इंतजार है तो समय का जब इस रणनीति के परिणाम सामने आएंगे।
चित्रकूट। राजनीति में बड़े-बड़े ज्योतिषी गलत हो जाते हैं। पूर्वानुमान ध्वस्त हो जाते हैं। ये बातें अगर सही नहीं होतीं तो आज जिला पंचायत प्रांगण में होने वाला समारोह सपामय होता पर हर जगह बसपाइयों की खुशी साफ कर रही थी कि राजनीति में अनुमान कभी नहीं लगाने चाहिए।
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पूरे घटनाक्रम पर चलिए एक सरसरी नजर डाली जाए। 16 जुलाई को जिला पंचायत अध्यक्ष (बसपा) रमेश पटेल के खिलाफ 14 में से 10 सदस्यों ने अविश्वास प्रस्ताव अपर जिलाधिकारी केशव दास को सौंपा। इसके बाद 7 अगस्त को अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान में 10 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष और 4 सदस्यों ने विपक्ष में मतदान किया। 15 जनवरी को उपचुनाव के लिए सपा की ओर से ममता सिंह और बागी प्रत्याशी के रूप में शिवशंकर यादव ने पर्चा भरा। 21 जनवरी को सात-सात वोट दोनों को मिले और फिर पर्ची से शिवशंकर यादव विजयी घोषित किए गए। वीर सिंह की अगुवाई में जब 10 सदस्यों ने रमेश पटेल के खिलाफ मतदान किया था तो कोई दूर दूर तक सोच भी नहीं सकता था कि आज वीर सिंह के पाले में नजर आ रहे शिवशंकर यादव, शिवशंकर सिंह, अर्जुन शुक्ला कल उन्हीं रमेश पटेल के साथ एक नया खेमा बना लेंगे, जिसमें शिवशंकर यादव को प्रत्याशी बनाकर सपा के लिए मूंछ की लड़ाई की तैयारी होगी। पर होइहै सोई जो राम रचि राखा... की तर्ज पर ऐसा ही हुआ। कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षा और कुछ अनसोची और बिना बिचारे की गई गलतियों ने पासा इस तरह पलटा कि खेल बनने से पहले ही बिगड़ गया। वीर सिंह आज भी अपने चाचा बालकुमार और चचेरे भाई राम सिंह के साथ उस घड़ी को कोस रहे होंगे, जब उन्होंने यूपीटी में शिवशंकर सिंह के साथ बात की थी। अपहरण हुआ या नहीं, इस पर मैं नहीं जाना चाहता, क्योंकि वह जांच का विषय है। बसपा के ब्लाक प्रमुखों के पदच्युत होने, जिला पंचायत अध्यक्ष रमेश पटेल की कुर्सी छिनने के पूरे लंबे घटनाक्रम के बाद भी तत्कालीन ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद कहीं भी परिदृश्य में नजर नहीं आए। जबकि इनको सीट पर बैठाने में इनका काफी या कहा जाए तो पूरा योगदान और रणनीति इन्हीं की थी। उनकी अनुपस्थिति को लेकर कई तरह की बातें की गईं। शुक्रवार को बहुत लोगों के लिए अप्रत्याशित ही था कि दद्दू प्रसाद पूरे लावलश्कर के साथ वहां नजर आ रहे थे। शपथ ग्रहण के काफी पहले कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे दद्दू के चेहरे पर लंबी मुस्कराहट काफी कुछ कह रही थी। शपथ ग्रहण के बाद वह भी बोले। उन्होंने कहा कि विरोधी तरफ से धन की बौछार हो रही थी पर ये सातों लोग नहीं डिगे। उन्होंने शिवशंकर की बहादुरी की जमकर प्रशंसा की। अपनी आगामी रणनीति को लेकर बोले कि कुछ भ्रम के बादल मुझे लेकर खड़े किए गए थे, जो छंटने लगे हैं। मेरे अपने उसूल हैं। कार्यक्रम में बसपाइयों की भारी संख्या काफी कुछ आगत की बातें कह रही थी, क्योंकि राजनीति के मंच पर हर बात के अपने मायने होते हैं। रमेश पटेल के बारे में तमाम बातें वोटिंग वाले दिन कही सुनी गईं पर अगर वह इसके बाद भी शिवशंकर यादव के खेमे में नजर आए तो इसके भी मायने हैं। लंबे अरसे बाद दद्दू प्रसाद नजर आए, वह भी पूरी तैयारी के साथ तो इसके भी मायने हैं। मंच पर शिवशंकर के साथ दद्दू प्रसाद की कानाफूसी और गलबहियां हो रही थीं, तो इसके भी मायने हैं, पर इंतजार है तो समय का जब इस रणनीति के परिणाम सामने आएंगे।
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