मुगलसराय। बिहार में आपरेशन ग्रीन हंट के चलते दुर्दांत नक्सली मुन्ना विश्वकर्मा काफी दिनों से सोनभद्र में शरण लिए हुए था। पुलिस को लगातार उसकी मौजूदगी के निशान मिल रहे थे। अंतत: वह इलेक्ट्रानिक सर्विलांस और ह्यूमन इंटेलिजेंस के जाल में फंस गया। इनको पुराने नक्सली कमांडर लालब्रत कोल का सपोर्ट था। इसके चलते ये दोनों मामूली कारकून से कमांडर के ओहदे तक पहुंचने में कामयाब रहे थे।
मुन्ना विश्वकर्मा 20 नवंबर 2004 को नौगढ़ थाना क्षेत्र के हिनौत घाट लैंड माइंस आपरेशन का वांछित आरोपी है। इसके अलावा दोनों के ऊपर नौगढ़ थाने में चार मुकदमे दर्ज हैं। हिनौत लैंड माइंस आपरेशन के बाद यूपी के नक्सल बेल्ट में कोई वारदात न होने के चलते शांति छाई हुई थी। इस साइलेंट पीरियड में जोन में मुन्ना विश्वकर्मा का नाम बड़ी तेजी से उभरा था। इसके चलते उसे सब जोनल कमांडर के पद पर भाकपा के केंद्रीय कमेटी के लोगों ने नियुक्त कर दिया था। यूपी में शांति के बाद से बिहार तथा झारखंड में नक्सली गतिविधियों ने और तेजी पकड़ ली। इससे बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ उड़ीसा, आंध्रप्रदेश तथा महाराष्ट्र में आपरेशन ग्रीन हंट की घोषणा केंद्र सरकार ने की थी। अभियान के जोर पकड़ते ही नक्सली गतिविधियों ने भी जोर पकड़ लिया तथा अनेक प्रदेश में खूनी वारदातें हुईं। इसके बाद सरकार ने अर्ध सैनिक बलों की बड़ी खेप तैनात की तथा आपरेशन तेज कर दिया। आपरेशन के विरोध में नक्सली कमांडरों को पीएलजीए (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई। इसके चलते इन दोनों कमांडरों ने बिहार तथा झारखंड की कमान संभाल ली थी। उन्हें यूपी से सटे इलाकों की कमान ही दी गई थी। इसमें अनेक वारदातें हुईं। बिहार में जातीय आधार पर सशस्त्र संघर्ष के शुरू होने पर नक्सली कमांडरों के हाथ थम गए तथा सरकारों ने आपरेशन ग्रीन हंट को और धार दे दी। इसके चलते बड़े भूमिगत नक्सलियों को अपने इलाके में शरण लेने की मजबूरी हो गई। इसी के चलते मुन्ना विश्वकर्मा तथा अजीत कोल सोनभद्र में शरण लेने को मजबूर हुए तथा इलेक्ट्रानिक्स सर्विलांस तथा ह्यूमन इंटेलिजेंस की जाल में उलझ गए।