बस्ती। बिजली की आंख मिचौली से स्वास्थ्य महकमे पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है। जिला मुख्यालयों पर अस्पताल में तो स्वतंत्र फीडर के माध्यम से चौबीस घंटे अनवरत आपूर्ति की जा रही है। लेकिन ग्रामीण इलाके में जनरेटर के सहारे स्वास्थ्य सेवाएं चल रही हैं। एडी हेल्थ व सीएमओ कार्यालय में भी काम जनरेटर के भरोसे हो रहा है। एक माह में डीजल पर करीब 12 हजार रुपये खर्च होता है।
प्रतिदिन सुबह 11 से चार बजे तक नियमित रोस्टरिंग हो रही है। इससे कार्यावधि में पूरे समय जनरेटर के सहारे ही काम होता है। परिवार कल्याण में 10 केवीए का जनरेटर लगा है। इसमें हर घंटे करीब 2 लीटर डीजल की खपत होती है। इस हिसाब से प्रतिदिन करीब पांच घंटे की रूटीन कटौती में 10 लीटर डीजल की जरूरत होती है। इससे महीने में करीब 12 हजार या उससे अधिक का अतिरिक्त आर्थिक बोझ विभाग पर पड़ रहा है। एडी हेल्थ व सीएमओ कार्यालय में भी अनापूर्ति के समय जेनरेटर चलाना मजबूरी है। ग्रामीण क्षेत्र के सीएचसी व पीएचसी पर अनियमित आपूर्ति की वजह से जनरेटर ही सहारा है। जिले में दो सीएचसी, 12 पीएचसी व करीब एक दर्जन अतिरिक्त पीएचसी हैं। इनमें ओपीडी तो बिजली के बगैर भी चला लिए जाते हैं लेकिन, रात में व आपरेशन के समय जनरेटर का सहारा लेना पड़ता है। सीएमओ डा. एसपी दोहरे ने बताया कि जिला अस्पताल, महिला व ओपेक कैली में स्वतंत्र फीडर से 24 घंटे निर्बाध रूप से आपूर्ति मिलती है। लेकिन कार्यालय व ग्रामीण क्षेत्र की सीएचसी, पीएचसी व अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्रों पर जनरेटर संचालित करने से विभाग पर अतिरिक्त बोझ तो पड़ ही रहा है लेकिन, मजबूरी में ऐसा किया जाता है।
बस्ती। बिजली की आंख मिचौली से स्वास्थ्य महकमे पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है। जिला मुख्यालयों पर अस्पताल में तो स्वतंत्र फीडर के माध्यम से चौबीस घंटे अनवरत आपूर्ति की जा रही है। लेकिन ग्रामीण इलाके में जनरेटर के सहारे स्वास्थ्य सेवाएं चल रही हैं। एडी हेल्थ व सीएमओ कार्यालय में भी काम जनरेटर के भरोसे हो रहा है। एक माह में डीजल पर करीब 12 हजार रुपये खर्च होता है।
प्रतिदिन सुबह 11 से चार बजे तक नियमित रोस्टरिंग हो रही है। इससे कार्यावधि में पूरे समय जनरेटर के सहारे ही काम होता है। परिवार कल्याण में 10 केवीए का जनरेटर लगा है। इसमें हर घंटे करीब 2 लीटर डीजल की खपत होती है। इस हिसाब से प्रतिदिन करीब पांच घंटे की रूटीन कटौती में 10 लीटर डीजल की जरूरत होती है। इससे महीने में करीब 12 हजार या उससे अधिक का अतिरिक्त आर्थिक बोझ विभाग पर पड़ रहा है। एडी हेल्थ व सीएमओ कार्यालय में भी अनापूर्ति के समय जेनरेटर चलाना मजबूरी है। ग्रामीण क्षेत्र के सीएचसी व पीएचसी पर अनियमित आपूर्ति की वजह से जनरेटर ही सहारा है। जिले में दो सीएचसी, 12 पीएचसी व करीब एक दर्जन अतिरिक्त पीएचसी हैं। इनमें ओपीडी तो बिजली के बगैर भी चला लिए जाते हैं लेकिन, रात में व आपरेशन के समय जनरेटर का सहारा लेना पड़ता है। सीएमओ डा. एसपी दोहरे ने बताया कि जिला अस्पताल, महिला व ओपेक कैली में स्वतंत्र फीडर से 24 घंटे निर्बाध रूप से आपूर्ति मिलती है। लेकिन कार्यालय व ग्रामीण क्षेत्र की सीएचसी, पीएचसी व अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्रों पर जनरेटर संचालित करने से विभाग पर अतिरिक्त बोझ तो पड़ ही रहा है लेकिन, मजबूरी में ऐसा किया जाता है।