बरेली। यशपाल और अन्य कैदियों को पाकिस्तान की जेलों में अनगिनत यातनाएं झेलनी पड़ीं हैं। उनकी हालत देखकर ऐसा ही लगता है। यशपाल को लेने वाघा बार्डर पहुंचे डॉ. प्रदीप, डॉ. संजय सक्सेना और संजय गुप्ता ने फोन पर बातचीत के दौरान कहा कि पाकिस्तान से छूट कर लौटे इन लोगों को किस्म-किस्म की शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ा है। देखने से यह सभी मानसिक तौर पर असंतुलित और अस्वस्थ लग रहे हैं। इन्हें चिकित्सीय जांच और इलाज की जरूरत लग रही है।
डॉ. संजय ने बताया कि यशपाल ही नहीं, अन्य कैदियों का हाल भी बुरा है। रिहा हुए एक अन्य कैदी से जब उन्होंने बातचीत की उसने दिल दहला देने वाली जानकारियां दीं। इस कैदी ने बताया कि भारतीय नागरिकों को पाकिस्तान की जेलों में बुरी तरह से पीटा जाता है। वहां की जेलों में भारतीय कैदियों को नंगा कर उल्टा लटकाया ही नहीं जाता, कई कई दिन तक उन्हें खाना और पीने के लिए पानी भी नहीं दिया जाता है। कैदियों में शामिल दो मुस्लिमों के साथ भी पाकिस्तान में बुरा सलूक हुआ है। पश्चिम बंगाल के मो. लतीफ फुलहक कहते हैं कि पाकिस्तानी कहते हैं कि तुम दुश्मन मुल्क के नागरिक हो हमें कौम से मतलब नहीं।
लगता है यादाश्त कमजोर हो गई यशपाल की
बरेली। वाघा बार्डर पर जैसे ही यशपाल ने पिता बाबूराम को देखा, वह उन्हें पहचान गया। यशपाल को देखकर पिता की भी आंखें छलक पड़ीं। हालांकि बातचीत में यशपाल की मानसिक स्थिति सामान्य नहीं महसूस हुई। ऐसा लग रहा है यातनाओं के चलते उसकी याददाश्त कमजोर हो गई है। डॉ. प्रदीप ने बताया कि यशपाल पिता को तो पहचान गया लेकिन जब बहन और अन्य परिवार वालों के नाम पूछे तो वह बता नहीं पाया। यशपाल कभी बातचीत में जवाब दे रहा है, तो कभी गुमसुम हो जाता है। कुल मिलाकर उसका व्यवहार असामान्य कहा जा सकता है। इस सिलसिले में संजय गुप्ता का कहना है कि केंद्र सरकार रिहा होने वाले कैदियों का समुचित इलाज कराना चाहिए। उन्होंने यह भी मांग की कि सरकार पाकिस्तान की जेलों में बंद निर्दोष भारतीयों को चिह्नित कर इन्हें छुड़ाने के लिए विदेश मंत्रालय स्तर पर बातचीत करे।
बरेली। यशपाल और अन्य कैदियों को पाकिस्तान की जेलों में अनगिनत यातनाएं झेलनी पड़ीं हैं। उनकी हालत देखकर ऐसा ही लगता है। यशपाल को लेने वाघा बार्डर पहुंचे डॉ. प्रदीप, डॉ. संजय सक्सेना और संजय गुप्ता ने फोन पर बातचीत के दौरान कहा कि पाकिस्तान से छूट कर लौटे इन लोगों को किस्म-किस्म की शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ा है। देखने से यह सभी मानसिक तौर पर असंतुलित और अस्वस्थ लग रहे हैं। इन्हें चिकित्सीय जांच और इलाज की जरूरत लग रही है।
डॉ. संजय ने बताया कि यशपाल ही नहीं, अन्य कैदियों का हाल भी बुरा है। रिहा हुए एक अन्य कैदी से जब उन्होंने बातचीत की उसने दिल दहला देने वाली जानकारियां दीं। इस कैदी ने बताया कि भारतीय नागरिकों को पाकिस्तान की जेलों में बुरी तरह से पीटा जाता है। वहां की जेलों में भारतीय कैदियों को नंगा कर उल्टा लटकाया ही नहीं जाता, कई कई दिन तक उन्हें खाना और पीने के लिए पानी भी नहीं दिया जाता है। कैदियों में शामिल दो मुस्लिमों के साथ भी पाकिस्तान में बुरा सलूक हुआ है। पश्चिम बंगाल के मो. लतीफ फुलहक कहते हैं कि पाकिस्तानी कहते हैं कि तुम दुश्मन मुल्क के नागरिक हो हमें कौम से मतलब नहीं।
लगता है यादाश्त कमजोर हो गई यशपाल की
बरेली। वाघा बार्डर पर जैसे ही यशपाल ने पिता बाबूराम को देखा, वह उन्हें पहचान गया। यशपाल को देखकर पिता की भी आंखें छलक पड़ीं। हालांकि बातचीत में यशपाल की मानसिक स्थिति सामान्य नहीं महसूस हुई। ऐसा लग रहा है यातनाओं के चलते उसकी याददाश्त कमजोर हो गई है। डॉ. प्रदीप ने बताया कि यशपाल पिता को तो पहचान गया लेकिन जब बहन और अन्य परिवार वालों के नाम पूछे तो वह बता नहीं पाया। यशपाल कभी बातचीत में जवाब दे रहा है, तो कभी गुमसुम हो जाता है। कुल मिलाकर उसका व्यवहार असामान्य कहा जा सकता है। इस सिलसिले में संजय गुप्ता का कहना है कि केंद्र सरकार रिहा होने वाले कैदियों का समुचित इलाज कराना चाहिए। उन्होंने यह भी मांग की कि सरकार पाकिस्तान की जेलों में बंद निर्दोष भारतीयों को चिह्नित कर इन्हें छुड़ाने के लिए विदेश मंत्रालय स्तर पर बातचीत करे।