बरेली। शरई कौंसिल के तहत शनिवार की सुबह पहली बैठक हुई, जिसमें इस्लामिक कानून के नए मुद्दों पर विचार विमर्श किया गया। पहली नशिस्त में शव्वाल में उमरा करने वालों पर हज की शरई हैसियत विषय पर परिचर्चा की गई। जिसमें उमरा या कि सी और काम से हज गए व्यक्ति ने अगर हज में शव्वाल यानि हज के महीने का चांद देखा तो उस पर हज फर्ज हो गया, लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति इतनी नहीं है और वीजा की मुद्दत भी इतनी नहीं की वह और ज्यादा दिन वहां ठहर सके, दुनिया का कानून उसे वहां ठहरने की इजाजत नहीं दे रहा है और इस्लामी कानून के मुताबिक उसे वहां ठहरना जरूरी है, तो ऐसी स्थिति में क्या किया जाए। इस मसले पर मुफ्तियान ए इकराम ने चर्चा कर हल निकाला जिसपर फैसला सुरक्षित रख लिया गया है। दूसरी बैठक में मदरसों में फीस की शरई हैसियत , मदरसों में फीस लेना जायज या नाजायज पर विचार विमर्श किया। मदरसों में फीस लेना नाजायज करार दिया गया। काजी गुलाम मुस्तफा ने बताया कि दोनों मुद्दों पर फैसला सुरक्षित रख लिया गया है और फैसला इतवार को सुनाया जाएगा। इस फैसले की कापी पूरे भारत से सेमिनार में भाग लेने आए मुफ्तियों को भी दी जाएगी और पूरे विश्व के सभी दारूल इफ्ता में भी एक-एक कापी भेजी जाएगी। फैसले के बाद से सभी फतवे इस कापी के आधार पर सुनाए जाएंगे। सेमिनार में शरई कौंसिल के फांउडर ताजिश्शरिया अख्तर रजा अजहरी मियां, मुहद्दिसे कबीर जियाउल मुस्तफा कादरी, मुफ्ती अख्तर हुसैन अलीमी, मुफ्ती मोहम्मद नाजिम अली कादरी, मोहम्मद आले मुस्तफा कादरी, आलमगीर नियाजी आदि मौजूद रहे।