बरेली। वार्ड के चुनाव के महारथी माने जाने वाले सईद उल हसन ‘असलम’, गुलशन आनंद और सतीश कातिब ‘मम्मा’ इस बार मैदान में नहीं दिखेंगे। ये तीनों ही तीन-तीन बार चुनाव जीत चुके हैं। वार्ड आरक्षित होने के चलते सईद ने, विधानसभा चुनाव की हार की टीस के चलते सतीश कातिब ने और हैट्रिक से संतुष्ट हो चुके गुलशन आनंद ने सभासद पद के लिए चुनाव न लड़ने का फैसला लिया है।
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विधानसभा के बाद वार्ड नहीं लड़ूंगा
सन् 89, 2001 और 2006 के चुनावों में जीता। सन् 96 में खुद नहीं लड़ा था, लेकिन अपनी पत्नी को लड़ाया था और वह अच्छे मतों से जीती थीं। अब बस! बहुत हो गया। विडंबना देखिए, सभासद के चुनाव में 4800 मत पाए थे और विधानसभा चुनाव में महज 2082 मत। विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद अब वार्ड का चुनाव लड़ने का इरादा नहीं है। यह सही है कि मेरा वार्ड 29 ओबीसी के लिए आरक्षित हो गया है, लेकिन वार्ड 55 में आज भी मेरा पैतृक मकान है, वहां से भी लड़ने का मन नहीं है।- सतीश कातिब ‘मम्मा’
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समर्थक बड़ा चुनाव लड़ाने के इच्छुक
पिछले तीन चुनाव वार्ड 16 से मुसलसल जीता। हर बार ज्यादा मत मिले। पिछली बार चुनाव जीतने के बाद ही मैंने ऐलान कर दिया था कि अब वार्ड का चुनाव नहीं जीतूंगा। मतदाताओं से संपर्क के दौरान भी कहा था कि सभासद पद के लिए वोट मांगने आखिरी बार आ रहा हूं। लोगों ने भी उस समय सुझाव दिया था कि भविष्य में मुझे वार्ड स्तर से बड़ा कोई चुनाव लड़ना चाहिए। भाजपा से मेयर पद का टिकट मांगा है। पार्टी ने भरोसा जताया तो समर्थकों की इच्छा के मुताबिक बड़ा चुनाव भी जीतकर दिखाऊंगा।- गुलशन आनंद
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आरक्षित हो गया मेरा वार्ड
सन् 89 से 2006 तक लगातार तीन बार वार्ड 60, घेर जाफर खां के लोगों ने मुझमें भरोसा जताया। चौथी बार बसपा का नामित सभासद रहा। वार्ड स्तर से ऊपर का चुनाव लड़ने की मैंने नहीं सोची, क्योंकि लोकतंत्र में वार्ड एक अहम् इकाई है। हर वार्ड का विकास होने पर पूरे सूबे का विकास हो जाएगा। लेकिन, इस बार मेरा वार्ड ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया है। सामान्य जाति का होने के चलते यहां से चुनाव नहीं लड़ सकता। दूसरे वार्ड से चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं है।- सईद उल हसन ‘असलम’