बरेली। डीएम ने हाल ही में सांसद निधि से होने वाले कामों के लिए अपने स्तर से गाइड लाइन जारी की है। इसमें शामिल सारी बातें पहले भी कही जाती रही हैं, मगर एक नया बिंदु जोड़ा गया है। अब सांसद के प्रस्तावों की जांच के लिए डीआरडीए के इंजीनियर को भेजा जाएगा और उसके बाद ही तय होगा कि काम वहां कराया जाना है या नहीं। इस नई व्यवस्था को लेकर सांसद और पूर्व सांसद एकमत नहीं है। किसी को यह ठीक लग रही है तो कुछ इसे अधिकारों से परे जाकर आदेश जारी करना मान रहे हैं।
डीएम के आदेश को फौरन अमल में लाने के लिए डीआरडीए के पीडी (परियोजना निदेशक) ने अपने सभी मातहतों को निर्देश जारी कर दिए हैं। इसमें कहा गया है कि सांसद निधि के तहत आने वाले प्रस्तावों की आवश्यकता पर पहले सहायक अभियंता अपनी आख्या देंगे। जो भी काम स्वीकृत होंगे, उनके कार्य आदेशों की प्रतिलिपित सांसदों को मुहैया कराई जाएगी। कार्यदायी संस्था जो एस्टीमेट देगी, उसकी जांच पीएमजीएसवाई के अधिशासी अभियंता और डीआरडीए के सहायक अभियंता करेंगे। एस्टीमेट मिलने के 15 दिन के भीतर कार्यदायी संस्था को प्रथम किस्त जारी कर दी जाएगी। दूसरी किस्त की मांग भेजते समय तब तक हुए काम से संबंधित फोटो भी लगाए जाएंगे।
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यह है डीएम की गाइड लाइन
माननीय सांसद जी से जो प्रस्ताव प्राप्त होगा, उसकी मौके पर जाकर कार्य की आवश्यकता के संबंध में सहायक अभियंता, डीआरडीए द्वारा आख्या दी जाएगी। कार्यस्थल का फोटोग्राफ खींचा जाएगा।
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सांसद निधि से कराए जाने वाले सभी कार्यों को शुरू करने से पहले उनके बाबत रिपोर्ट ली जाएगी। कई बार आवश्यकता नहीं होने पर भी कार्य स्वीकृत कर दिए जाते हैं। कार्यों की आवश्यकता की जांच से मेरा मतलब है कि तकनीकी स्तर पर क्या खामियां हैं? काम वहां कराया जा सकता है या नहीं? हालांकि, ज्यादातर कार्यों की आवश्यकता होती ही है। सांसद निधि से होने वाले कार्यों की जिम्मेदारी डीएम की होती है, इसलिए इस निधि का कार्यान्वयन किस तरह किया जा रहा है, यह भी मुझे देखना होगा। कई बार सड़क के निर्माण का प्रस्ताव होता है, लेकिन वह आम लोगों के लिए न होकर चंद लोगों के इस्तेमाल के लिए होती है।-मनीष चौहान, डीएम
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मेरा व्यक्तिगत मत है कि सांसद निधि खत्म होनी चाहिए, क्योंकि इसका दुरुपयोग हो रहा है। सांसद जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दों पर स्टडी करके इन्हें लोकसभा में उठाने के बजाय सांसद निधि को खर्च करने के बारे में ही ज्यादा रुचि ले रहे हैं। जहां तक सांसद निधि के तहत सांसद के प्रस्तावों के परीक्षण की बात है, तो डीएम द्वारा अपने स्तर पर कोई गाइड लाइन जारी नहीं की जा सकती। क्योंकि, गाइड लाइंस तय करना केंद्र सरकार का काम है।-संतोष गंगवार, पूर्व सांसद
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सांसद निधि के बाबत डीएम का इस तरह का आदेश सांसदों के हित में हैं। क्योंकि, अब कोई भी गड़बड़ होने पर उसके लिए डीएम और दूसरे संबंधित अफसर जिम्मेदार होंगे। इससे सांसदों का ही बचाव हुआ है, क्योंकि आम लोगों की मांग पर वे प्रस्ताव बनाकर भेज सकते हैं। ये काम कराए जा सकते हैं या नहीं, यह देखना अफसरों और इंजीनियरों की जिम्मेदारी होगी। केंद्र सरकार ने सांसद निधि के लिए पूरी तरह से डीएम को जिम्मेदार बना दिया है।-वीरपाल सिंह यादव, पूर्व सांसद
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हर हाल में हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सांसद निधि का दुरुपयोग न हो, क्योंकि यह आम लोगों का ही पैसा है। मैं तो कहती हूं कि सांसद निधि के प्रस्तावों की उपयोगिता की जांच डीआरडीए के इंजीनियर को ही नहीं, बल्कि मीडिया और आम लोगों को भी करना चाहिए। अगर डीएम ने ऐसा कोई आदेश जारी किया है, तो मैं यह नहीं कह रही कि इससे मैं बहुत खुश हूं, लेकिन इस पर मुझे कोई ऐतराज नहीं है। -मेनका गांधी, सांसद
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सांसद निधि के प्रस्तावों की आवश्यकता की जांच संबंधी इस तरह के किसी आदेश की मुझे कोई जानकारी नहीं है। अगर ऐसा आदेश जारी हुआ है, तो यह बेतुका है। जहां तक मैं समझता हूं, डीएम ने इस तरह का आदेश जारी नहीं किया होगा। अगर ऐसा किया गया है, फिर तो मैं यही कहूंगा कि सांसद निधि के काम तय करने की जिम्मेदारी भी सहायक अभियंताओं को ही दे देनी चाहिए।-प्रवीन सिंह ऐरन, सांसद