बरेली। इस्लाम में जो सामाजिक व्यवस्था दी गई है, वह एक सेहतमंद समाज में तामीर करने में सक्षम है। इसी व्यवस्था को अपनाकर आज से साढ़े चौदह साल पहले अनपढ़, लड़ाकू और कुरीतियों में जकड़ी अरब कौम ने अपनी तस्वीर, अपनी किस्मत बदल डाली और आठ सौ साल दुनिया की इमामत की। लखनऊ से तशरीफ लाए इस्लामिक विद्वान मौलाना जहांगीर आलम कासमी ने आईएमए हाल में पैगाम-ए-इंसानियत की ओर से आयोजित गोष्ठी में व्यक्त किए। वह ‘इस्लाह मुआशरा और हमारी जिम्मेदारी’ विषय पर आयोजित गोष्ठी में बोल रहे थे। मौलाना ने समाज में बढ़ते भ्रष्टाचार और कुरीतियों केे लिए समाज के नैतिक पतन को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कुरआन और हदीस का उदाहरण देते हुए बताया कि सामाजिक परिवर्तन तभी संभव है जब हम दूसरों पर उंगली उठाने से पहले अपना सुधार सुनिश्चित करें। हक और सच्चाई का साथ देने के लिए गवाही देते समय या फैसला सुनाते वक्त यह न देखें कि प्रभावित होने वाला व्यक्ति कौन है! उन्होंने कहा कि वह छोटी उम्र से ही अपने बच्चों को कुरआन और हदीस के जरिए नैतिक मूल्यों की जानकारी दें और बेईमानी, नाइंसाफी, सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ खड़े हों। इंजीनियर सैयद वजाहत हुसैन ने तीन जून से शुरू हो रहे पैगाम-ए-इंसानियत के समर क्लासेज के बारे में जानकारी दी। डॉ. एजाज हसन खां ने संगठन की ओर से आयोजित नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविरों की रिपोर्ट पेश की। कार्यक्रम का संचालन अहमद अजीज खां ने किया।